"भाषा-परिवार": अवतरणों में अंतर

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:२ शब्दानुरूपता- समान शब्दों का प्रचलन जिन भाषाओं में रहता है उन्हें एक कुल के अन्तर्गत रखा जाता है। यह समानता भाषा-भाषियों की समीपता पर आधारित है और दो तरह से सम्भव होती है। एक ही समाज, जाति अथवा परिवार के व्यक्तियों द्वारा शब्दों के समान रूप से व्यवहृत होते रहने से समानता आ जाती है। इसके अतिरिक्त जब भिन्न देश अथवा जाति के लोग सभ्यता और साधनों के विकसित हो जाने पर राजनीतिक अथवा व्यावसायिक हेतु से एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तो शब्दों के आदान-प्रदान द्वारा उनमें समानता आ जाती है। पारिवारिक वर्गीकरण के लिए प्रथम प्रकार की अनुरूपता ही काम की होती है। क्योंकि ऐसे शब्द भाषा के मूल शब्द होते हैं। इनमें भी नित्यप्रति के कौटुम्बिक जीवन में प्रयुक्त होनेवाले संज्ञा, सर्वनाम आदि शब्द ही अधिक उपयोगी होते हैं। इस आधार में सबसे बड़ी कठिनाई यह होती है कि अन्य भाषाओं से आये हुए शब्द भाषा के विकसित होते रहने से मूल शब्दों में ऐसे घुलमिल जाते हैं कि उनको पहचान कर अलग करना कठिन हो जाता है।
:३ अर्थगत समानता- इस कठिनाई का समाधान एक सीमा तक अर्थगत समानता है। क्योंकि एक परिवार की भाषाओं के अनेक शब्द अर्थ की दृष्टि से समान होते हैं और ऐसे शब्द उन्हें एक परिवार से सम्बन्धित करते हैं। इसलिए अर्थपरक समानता भी एक महत्त्वपूर्ण आधार है।
: ध्वनिसाम्य- प्रत्येक भाषा का अपना ध्वनि-सिद्धान्त और उच्चारण-नियम होता है। यही कारण है कि वह अन्य भाषाओं की ध्वनियों से जल्दी प्रभावित नहीं होती है और जहाँ तक हो सकता है उन्हें ध्वनिनियम के अनुसार अपनी निकटस्थ ध्वनियों से बदल लेती है। जैसे [[फारसी]] की क, ख, फ़ आदि ध्वनियाँ हिन्दी में निकटवर्ती क, ख, फ आदि में परिवर्तित होती है। अतः ध्वनिसाम्य का आधार शब्दावली-समता से अधिक विश्वसनीय है। वैसे कभी-कभी एक भाषा के ध्वनिसमूह में दूसरी भाषा की ध्वनियाँ भी मिलकर विकसित हो जाती हैं और तुलनात्मक निष्कर्षों को भ्रामक कर देती हैं। आर्य भाषाओं में वैदिक काल से पहले मूर्धन्य ध्वनियाँ नहीं थी, किन्तु द्रविड़ भाषा के प्रभाव से आगे चलकर विकसित हो गयीं।
 
४ व्याकरणगत समानता- भाषा के वर्गीकरण का व्याकरणिक आधार सबसे अधिक प्रामाणिक होता है। क्योंकि भाषा का अनुशासन करने के कारण यह जल्दी बदलता नहीं है। व्याकरण की समानता के अन्तर्गत धातु, धातु में प्रत्यय लगाकर शब्द-निर्माण, शब्दों से पदों की रचना प्रक्रिया तथा वाक्यों में पद-विन्यास के नियम आदि की समानता का निर्धारण आवश्यक है।
=== व्याकरणगत समानता ===
भाषा के वर्गीकरण का व्याकरणिक आधार सबसे अधिक प्रामाणिक होता है। क्योंकि भाषा का अनुशासन करने के कारण यह जल्दी बदलता नहीं है। व्याकरण की समानता के अन्तर्गत धातु, धातु में प्रत्यय लगाकर शब्द-निर्माण, शब्दों से पदों की रचना प्रक्रिया तथा वाक्यों में पद-विन्यास के नियम आदि की समानता का निर्धारण आवश्यक है।
 
यह साम्य-वैषम्य भी सापेक्षिक होता है। जहाँ एक ओर भारोपीय परिवार की भाषाएँ अन्य परिवार की भाषाओं से भिन्न और आपस में समान हैं वहाँ दूसरी ओर संस्कृत, फारसी, ग्रीक आदि भारोपीय भाषाएँ एक-दूसरे से इन्हीं आधारों पर भिन्न भी हैं।