"नंद वंश": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Nanda Empire.gif|right|300px|thumb|३२३ ईसा पूर्व में धनानन्द के शासनकाल में नन्दवंश का साम्राज्य अपनी चरम अवस्था में था]]
उसे महापद्म एकारात पूराण मे काहागया है, सर्व क्षत्रान्तक आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है । जिसने पाँचवीं-चौथी शताब्दी ईसा पूर्व उत्तरी भारत के विशाल भाग पर शासन किया। नंदवंश की स्थापना महापद्मनंद ने की थी। भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जो
==ऐतिहासिक स्रोत==▼
* नंदो को समस्त भारतीय एवं विदेशी साक्ष्य तत्कालीन महत्वपूर्ण क्षत्रिय नाई(न्यायी) होने का प्रमाणित करते हैं।<ref name="स्मिथ" />
* चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद का इतिहास उड़ीसा में उदयगिरि पर्वत माला से दक्षिणी भाग में एक प्राकृतिक गुफा है, इसे हाथी गुफा कहा जाता है उसमें प्राप्त पाली भाषा से मिलती-जुलती प्राकृत भाषा और ब्रम्ही लिपि के 17 पंक्तियों में लिखे अभिलेख से प्राप्त होता है जिसके पंक्ति 6 और 12 में नंदराज के बारे में कलिंग के राजा खारवेल द्वारा उत्कीर्ण कराया माना जाता है। इस हाथी गुफा अभिलेख को ईसा पूर्व पहली सदी का माना गया है।
* महाराष्ट्र में निजामाबाद जिले के पश्चिम में कुछ दूर पर "नौ नंद देहरा"( नांदेड़ वर्तमान में) नामक नगर स्थित है। इससे यह पता चलता है कि अश्मक वंश की प्राचीन भूमि भी नौ नंदो के राज्य के क्षेत्र में आ गई थी।
* कथासरित्सागर में एक स्थान पर अयोध्या में नंद के शिविर (कटक) का प्रसंग आया है।
* मैसूर के कई अभिलेखों के अनुसार कुंतलो पर नंदो का शासन था जिसमें बंबई प्रेसिडेंसी का दक्षिणी भाग तथा हैदराबाद राज्य का निकटतम क्षेत्र और मैसूर राज्य सम्मिलित था।
* बौद्ध ग्रंथ महाबोधीवंशम एवं अंगुत्तर निकाय में नंदवंश के अत्यधिक प्रमाण है।
* वायु पुराण की कुछ पांडुलिपियों के अनुसार नंद वंश के प्रथम राजा ने 28 वर्ष तक राज किया और उसके बाद उनके पुत्रों ने 12 वर्ष तक राज्य किया।
* महावंश के अनुसार नंदू ने 28 वर्ष तक शासन किया और उनके पुत्रों ने 22 वर्ष तक शासन किया।
* नंद वंश की महानता का विशद विवेचन महर्षि पतंजलि द्वारा रचित महाकाव्य
"महानंद" में किया गया था इसकी पुष्टि सम्राट समुद्रगुप्त द्वारा रचित महाकाव्य "कृष्ण चरित्र" के प्रारंभिक तीन श्लोको से होती है। मगर उक्त महाकाव्य का विवरण मात्र ही शेष है।
* बृहत्कथा के अनुसार नंदो के शासनकाल में पाटलिपुत्र में सरस्वती एवं लक्ष्मी दोनों का ही वास था।
* सातवीं सदी के महान विश्व विख्यात चीनी यात्री हुएनसांग ने अपनी यात्रा वर्णन में उल्लेख किया है कि "नंदराजा के पास खजाने थे इस में 7 प्रकार के कीमती पत्थर थे।"
* जैन ग्रंथों में लिखा है कि समुद्र तक समूचा देश नंद के मंत्री ने अपने अधीन कर लिया था-
समुद्र वसनां शेभ्य:है आस मुदमपि श्रिय:।
▲नंदवंश प्राचीन भारत का एक क्रूर राजवंश था।पुराणों में इसे महापद्मनंद कहा गया है ।
उपाय हस्तेैरा कृष्य:तत:शोडकृत नंदसात।।
== परिचय ==▼
[[इतिहास]] की जानकारी के अनेक विवरण [[पुराण|पुराणों]], जैन और बौद्ध ग्रंथों एवं यूनानी इतिहासकारों के वर्णन में प्राप्त होते हैं। तथापि इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि नंद एक राजवंश था जिसकी अधिकांश प्रकृतियाँ भारतीय शासन परंपरा की थी। कर्टियस कहता है कि सिकंदर के समय शाषक का पिता वास्तव में एक गरीब नाई का बेटा था, यूनानी लेखकों के वर्णनों से ज्ञात होता है कि वह "वर्तमान राजा" अग्रमस् अथवा जंड्रमस् (चंद्रमस ?) था, जिसकी पहचान धनानंद से की गई है। उसका पिता महापद्मनंद था, जो कर्टियस के उपयुक्त कथन से क्षत्रिय वर्ण का ठहरता है। कुछ पुराण ग्रंथ और जैन ग्रंथ "परिशिष्ट पर्वन् में भी उसे नाई का पुत्र कहा गया है। इन अनेक संदर्भों से केवल एक बात स्पष्ट होती है कि नंदवंश के राजा न्यायी क्षत्रिय वर्ण के थे।
▲उसे महापद्म एकारात पूराण मे काहागया है, सर्व क्षत्रान्तक आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है । जिसने पाँचवीं-चौथी शताब्दी ईसा पूर्व उत्तरी भारत के विशाल भाग पर शासन किया। नंदवंश की स्थापना महापद्मनंद ने की थी। भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जो शुद्र जाति सेे था तथा यह एक छोटा सा राज्य था जो मौर्यवंश के सम्राज्य के आगे कुछ भी नही था । यह साम्राज्य वस्तुतः स्वतंत्र राज्यों या सामंतों का शिथिल संघ ना था यह राज्य एक किसी कमजोर राजा के आधीन था। इस राज्य का राजा इतना लोभी था कि उसने सिकन्दर का भय दिखाकर आसपास के छोटे छोटे राज्यो से धन बटोरना शुरू कर दिया इस राजा के राज्य मि सिर्फ मगध ही शामिल था बाकी अन्य छोटे छोटे राज्य थे। नन्दवंश के लिए मगध ही सब कुछ था इन्हे अखंड भारत से कोई मतलब नही था। । महापद्म नन्द के प्रमुख राज्य उत्तराधिकारी हुए हैं- उग्रसेन, पंडूक, पाण्डुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, योविषाणक, दशसिद्धक, कैवर्त, धनानन्द , इसके शासन काल में भारत पर आक्रमण सिकन्दर द्वारा किया गया । सिकन्दर के भारत से जाने के बाद मगध साम्राज्य में अशान्ति और अव्यवस्था फैली । धनानन्द एक लालची और धन संग्रही शासक था, जिसे असीम शक्तिल और सम्पत्ति के बावजूद वह जनता के विश्वाास को नहीं जीत सका । उसने अपने शासनकाल मे ब्रह्मणो का बहुत अपमान किया और उसमे एक चाणक्य भी था।
नंदवंश का प्रथम और सर्वप्रसिद्ध राजा हुआ। पुराणग्रंथ उसकी गिनती शैशुनागवंश में ही करते हैं, किंतु बौद्ध और जैन अनुत्रुटियों में उसे एक नए वंश (नंदवंश) का प्रारंभकर्ता माना गया है, जो सही है। उसे जैन ग्रंथों में उग्रसेन (अग्रसेन) और पुराणों में महापद्मपति भी कहा गया है। पुराणों के कलियुगराजवृत्तांतवले अंशों में उसे अतिबली, महाक्षत्रांतक और और परशुराम की संज्ञाएँ दी गई हैं। स्पष्ट है, बहुत बड़ी सेनावाले (उग्रसेन) उस राज ने (यूनानी लेखकों का कथन है कि नंदों की सेना में दो लाख पैदल, 20 हजार घुड़सवार, दो हजार चार घोड़ेवाले रथ और तीन हजार हाथी थे) अपने समकालिक अनेक क्षत्रिय राजवंशों का उच्छेद कर अपने बल का प्रदर्शन किया। यह आश्चर्य नहीं कि उस अपार धन और सैन्यशक्ति से उसने हिमालय और नर्मदा के बीच के सारे प्रदेशों को जीतने का उपक्रम किया। उसके जीते हुए प्रदेशें में ऐक्ष्वाकु (अयोध्या और श्रावस्ती के आसपास का कोमल राज्य), पांचाल (उत्तरपश्चिमी उत्तर प्रदेश में बरेली और रामपुर के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), कौरव्य (इंद्रप्रस्थ, दिल्ली, कुरुक्षेत्र और थानेश्वर), काशी (वाराणसी के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), हैहय (दक्षिणापथ में नर्मदातीर के क्षेत्र), अश्मक (गोदावरी घाटी में पौदन्य अथवा पोतन के आसपास के क्षेत्र), वीतिहोत्र (दक्षिणपथ में अश्मकों और हैहयों के क्षेत्रों में लगे हुए प्रदेश), कलिंग (उड़ीसा में वैतरणी और वराह नदी के बीच का क्षेत्र), शूरसेन (मथुरा के आसपास का क्षेत्र), मिथिला (बिहार में मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिलों के बीचवाले क्षेत्र तथा नेपाल की तराई का कुछ भाग), तथा अन्य अनेक राज्य शामिल थे। हिमालय और विंध्याचल के बीच कहीं भी उसके शासनों का उल्लंघन नहीं हो सकता था। इस प्रकार उसने सारी पृथ्वी (भारत के बहुत बड़े भाग) पर "एकराट्, होकर राज्य किया। महापद्मनंद की इन पुराणोक्त विजयों की प्रामणिकता कथासरित्सागर, खारवेल के हाथी गुफावाले अभिलेख तथा मैसूर से प्राप्त कुछ अभिलेखों के कुछ बिखरे हुए उल्लेखों से भी सिद्ध होती है
जैन और बौद्ध ग्रंथों से ये प्राप्त होता हैं कि महापद्मनंद की दो रानियों थी (1) रानी अवंतिका और (2) रानीमुरा और दोनों महारानियां ही बेहद सुंदर और खूबसूरत थी महापद्मनंद की रानियों के बारे में अधिक जानकारी नही मिलती हैं
पुराणों में महापद्मनंद के दस पुत्र उत्तराधिकारी बताए गए हैं। वहाँ उनके नाम मिलते हैं
(1) गंगन पाल, (2) पंडुक, (3) पंडुगति, (4) भूतपाल, (5) राष्ट्रपाल, (6) गोविषाणक, (7) दशसिद्धक, (8) कैवर्त और (9) धननन्द, (10) चन्द नन्द (चन्द्रगुप्त मौर्य)
चन्द्रगुप्त मौर्य नन्द वंश के सस्थाषक चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद (नाई ) के (10)वे पुत्र थे जिनका वास्तविक नाम चंद्रनन्द था जिनकी मा (मुरा) एक
ब्राह्रमण परिवार से थी महापद्मनंद के बाद उनके पुत्र धननन्द राजा हुए जिनके डर से सिकन्दर भी भाग गया था। धननन्द ने मंत्री चाणक्य (विष्णुगुप्त) को पीटकर सभा से इसलिये बाहर निकाला दिया चाणक्य धननन्द से पहले सिंहासन पर बैठ गये थे ।
चाणक्य ने धननन्द के सौतेले भाई चन्द्रनन्द को भड़काकर धननन्द को धोखे से चन्द्रनन्द से मरवाकर चन्द्रनन्द क्रो राजा बनाया और चन्द्रनन्द क्रो चन्द्रगुप्त मौर्य नाम दिया । (चन्द्र नन्द के नाम से 'नन्द' हटाकर आपने नाम विष्णुगुप्त का 'गुप्त' जोडा और चंद्रनन्द की माँ का नाम मुरा के बदले मौर्य जोडा )
पुराणों के सुमाल्य को बौद्ध ग्रंथों में उल्लिखित महापद्म के अतिरिक्त अन्य आठ नामों में किसी से मिला सकना कठिन प्रतीत होता है। किंतु सभी मिलाकर संख्या की दृष्टि से नवनंद कहे जाते थे। इसमें कोई विवाद नहीं। पुराणों में उन सबका राज्यकाल 100 वर्षों तक बताया गया है - 88 वर्षों तक महापद्मनंद का और 12 वर्षों तक उसके पुत्रों का। किंतु एक ही व्यक्ति 88 वर्षों तक राज्य करता रहे और उसके बाद के क्रमागत 8 राजा केवल 12 वर्षों तक ही राज्य करें, यह बुद्धिग्राह्य नहीं प्रतीत होता। सिंहली अनुश्रुतियों में नवनंदों का राज्यकाल 40 वर्षों का बताया गया है और उसे हम सही मान सकते हैं। तदनुसार नवनंदों ने लगभग 364 ई. पू. से 324 ई. पू. तक शासन किया। इतना निश्चित है कि उनमें अंतिम राजा अग्रमस् (औग्रसैन्य (?) अर्थात् उग्रसेन का पुत्र) सिकंदर के आक्रमण के समय मगधा (प्रसाई-प्राची) का सम्राट् था, जिसकी विशाल और शक्तिशाली सेनाओं के भय से यूनानी सिपाहियों ने पोरस से हुए युद्ध के बाद आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। प्लूटार्क कहता है कि चंद्रगुप्त (सैंड्राकोट्टस) मौर्य ने सिकंदर से मिलकर उसकी नीचकुलोत्पत्ति और जनता में अप्रियता की बात कही थी। संभव है, धननंद को उखाड़ फेंकने के लिए चंद्रगुप्त ने उस विदेशी आक्रमणकारी के उपयोग का भी प्रयत्न किया हो। "महावंशटीका" से ज्ञात होता है कि अंतिम नंद कठोर शासक तथा लोभी और कृपण स्वभाव का व्यक्ति था। संभवत: इस लोभी प्रकृति के कारण ही उसे धननंद कहा गया। उसने चाणक्य का अपमान भी किया था। इसकी पुष्टि मुद्राराक्षस नाटक से होती है, जिससे ज्ञात होता है कि चाणक्य अपने पद से हटा दिया गया था। अपमानित होकर उसने नंद साम्राज्य के उन्मूलन की शपथ ली और राजकुमार चंद्रगुप्त मौर्य के सहयोग से उसे उस कार्य में सफलता मिली। उन दोनों ने उस कार्य के लिए पंजाब के क्षेत्रों से एक विशाल सेना तैयार की, जिसमें संभवत: कुछ विदेशी तत्व और लुटेरे व्यक्ति भी शामिल थे। यह भी ज्ञात होता है कि चंद्रगुप्त ने धननंद को उखाड़ फेंकने में पर्वतक (पोरस) से भी संधि की थी। उसने मगध पर दो आक्रमण किए, यह सही प्रतीत होता है, परंतु "दिव्यावदान" की यह अनुश्रुति कि पहले उसने सीधे मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर ही धावा बोल दिया तथा असफल होकर उसे और चाणक्य को अपने प्राण बचाने के लिए वेष बनाकर भागना पड़ा, सही नहीं प्रतीत होती। उन दोनों के बीच संभवत: 324 ई. पू. में युद्ध हुआ, जब मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में चंद्रगुप्त ने मौर्यवंश का प्रारंभ किया।
▲==ऐतिहासिक स्रोत==
▲== परिचय ==
==सैन्य शक्ति==
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==नंद शासन का महत्त्व==
नंद राजाओं का शासन काल भारतीय इतिहास के प्रश्न में अपना एक अलग महत्व रखता है। यह भारत के सामाजिक राजनीतिक आंदोलन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। सामाजिक दृष्टि से इसे निम्न वर्ग के उत्कर्ष का प्रतीक माना जा सकता है। उसका राजनीतिक महत्व इस तथ्य में निहित है किस वंश के राजाओं ने उत्तर भारत में सर्वप्रथम एकछत्र शासन की स्थापना की। उन्होंने एक ऐसी सेना तैयार कि जिसका उपयोग परवर्ती मगध राजाओं ने विदेशी आक्रमणकारियों को रोकने तथा भारतीय सीमा में अपने राज्य का विस्तार करने में किया।
नंद राजाओं के समय में मगध राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत शक्तिशाली तथा आर्थिक दृष्टि से अत्यंत समृद्धशाली साम्राज्य बन गया था। नंदो की अतुल संपत्ति को देखते हुए यह अनुमान करना स्वाभाविक है, कि हिमालय पार के देशों के साथ उनका व्यापारिक संबंध था साइबेरिया की ओर से भी स्वर्ण मंगाते थे, पता चलता है कि भारत का एक शक्तिशाली राजा पश्चिमी एशियाई देशों के झगड़ों की मध्यस्थता करने की इच्छा रखता था। इस शासक को अत्यंत धनी व्यक्ति कहा गया है जिसका संकेत नंद वंश के सम्राट धनानंद की ओर ही है सातवीं शती के चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी नंदों के अतुल संपत्ति की कहानी सुनी थी उनके अनुसार पाटलिपुत्र में पांच स्तूप थे जो नंद राजा के साथ वह अमूल्य पदार्थ द्वारा संचित कोषागारो का प्रतिनिधित्व करते थे।
मगध की आर्थिक समृद्धि ने राजधानी पाटलिपुत्र को शिक्षा एवं साहित्य का प्रमुख केंद्र बना दिया। व्याकरण आचार्य पाणिनि महापदम नंद के मित्र थे। और उन्होंने पाटलिपुत्र में ही रहकर शिक्षा पाई थी वर्ष, उपवर्ष,कात्यायन जैसे विद्वान भी नंद काल में ही उत्पन्न हुए थे।
इस प्रकार नंद राजाओं के काल में मगध साम्राज्य राजनीतिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से प्रगति के पथ पर अग्रसर हुआ।
==नंद वंश के उत्तराधिकारी==
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7.''' कैवर्त''' नंदराज महापद्मनंद के सातवें पुत्र थे जिनका वर्णन महाबोधि वंश में किया गया है ।यह एक महान सेनानायक एवं कुशल प्रशासक थे। अन्य पुत्रों की तरह कैवर्त किसी राजधानी के प्रशासक ना होकर बल्कि अपने पिता के केंद्रीय प्रशासन के मुख्य संचालक थे ।तथा सम्राट महापद्मनंद जहां कहीं भी जाते थे, मुख्य अंगरक्षक के रूप में उनके साथ साथ रहते थे प्रथम पत्नी से उत्पन्न दोनों छोटे पुत्र कैवर्त और घनानंद तथा दूसरी पत्नी पुरा से उत्पन्न चंद्रनंद अथवा चंद्रगुप्त तीनों पुत्र नंद राज के पास पाटलिपुत्र की राजधानी में रहकर उनके कार्यों में सहयोग करते थे। जिसमें चंद्रगुप्त सबसे छोटा व कम उम्र का था। कैवर्त की मृत्यु सम्राट महापद्मनंद के साथ ही विषयुक्त भोजन करने से हो गई जिससे उनका कोई राजवंश आगे नहीं चल सका।
8.''' सम्राट घनानंद'''सम्राट महापद्मनंद की प्रथम पत्नी महानंदिनी से उत्पन्न अंतिम पुत्र था। घनानंद जब युवराज था तब आनेको शक्तिशाली राज्यों को मगध साम्राज्य के अधीन करा दिया। नंदराज महापद्मनंद की मृत्यु के बाद 326 ईसवी पूर्व में घनानंद मगध का सम्राट बना। नंदराज एवं भाई कैवर्त की मृत्यु के बाद यह बहादुर योद्धा शोकग्रस्त रहने लगा। फिर भी इसकी बहादुरी की चर्चा से कोई भी इसके साम्राज्य की तरफ आक्रमण करने की हिम्मत नहीं कर सका। विश्वविजेता सिकंदर ने भी नंद साम्राज्य की सैन्यशक्ति एवं समृद्धि देख कर ही भारत पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं की और वापस यूनान लौट जाने में ही अपनी भलाई समझी। सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस की सैनिक मदद से इनका सौतेला भाई चंद्रगुप्त 322 ईसवी पूर्व में मगध की सत्ता प्राप्त करने की लड़ाई किया जिससे युद्ध के दौरान घनानंद की मृत्यु हो गई और मगध की सत्ता चंद्रगुप्त को प्राप्त हुई।
9.''' चंद्रनंद अथवा चंद्रगुप्त''' सम्राट महापदमनंद की मुरा नामक दूसरी पत्नी से उत्पन्न पुत्र का नाम चंद्रगुप्त चंद्रनंद था। जिसे मौर्य वंश का संस्थापक कहा गया है मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त को नंद की संतान तथा विष्णु पुराण में चंद्रगुप्त को नंदवंशी राजा कहा गया है।
== सारांश ==
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