"बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल": अवतरणों में अंतर

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आजादी के समय ज्यादातर जायदाद जमींदारों के पास थी और ज्यादातर जमींदार ऊंची जाति से थे। जिसके पास धन होता है वो आसानी से आगे बढ़ जाता है। ऐसा ही हो रहा था। पिछड़े समुदाय के लोग दिन-प्रतिदिन पिछड़ रहे थे। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संविधान के अनुच्छेद 340 पर देरी से कार्य किया  29 जनवरी 1953 को पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया। इसके पहले अध्यक्ष काका कालेलकर थे। लेकिन दुर्भाग्य यह हुआ कि गोविंद वल्लभ पंत तत्कालिन गृहमंत्री भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को लागू नहीं किया और इसे कूडे़ के ढेर में डाल दिया। इससे जितना नुक्शान वर्तमान के अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को हुआ क्योंकि वे सभी संवैधानिक अधिकारों से वंचित ही रहे। हिंदू धर्म की जाति-व्यवस्था की एक विचित्र विशेषता यह है कि विभिन्न जातियाँ एक समान स्तर पर खड़ी नहीं होती है। यह वह व्यवस्था जिसमें विभिन्न जातियों का स्थान एक-दूसरे के ऊपर ऊर्धवाकार क्रम में निश्चित किया गया है। कदाचित मनु जाति के निर्माण के लिए जिम्मेदार न हों, परंतु मनु ने वर्ण की पवित्रता का उपदेश दिया है। वर्ण व्यवस्था जाति की जननी है और इस अर्थ में मनु जाति-व्यवस्था का जनक न भी हो परंतु उसके पूर्वज होने का उस पर निश्चित ही आरोप लगाया जा सकता है। जाति-व्यवस्था के संबंध में मनु का दोष क्या है? इसके बारे में जो भी स्थिति हो, परंतु इस बारे में कोई प्रष्न ही नही उठता कि श्रेणीकरण और कोटि-निर्धारण का सिद्धंात प्रदान करने के लिए मनु ही जिम्मेदार है। इस रिपोर्ट का कुछ खास असर नहीं हुआ। क्योंकि सर्वण जातियों ने इसे जानबुझकर नकार दिया और तब के समाजवादियों ने अपनी अनपढ़ के कारण इसको सिरे तक नहीं चढ़ाया। जिससे बाबा साहब डाॅ आंबेडकर के द्वारा संविधान में सम्मिलित अनुच्छेद -340 को दरकिनार कर दिया गया। खैर समय बड़ा परिवर्तनशील है और परिवर्तन हमेशा परिवर्तन ही लेकर आता है। देश में 1977 में लगे आपातकाल के कारण मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार जनता दल ने 20 दिसंबर 1978 को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अगुवाई में नए आयोग की घोषणा की। जिसे मंडल आयोग के नाम से जाना गया। मंडल आयोग ने 12 दिसंबर 1980 को अपनी रिपोर्ट फाइनल किया तब तक मोरारजी देसाई की सरकार गिर चुकी थी। इंदिरा गांधी दौबारा सत्ता में आ चुकी थी। मंडल आयोग ने सामाजिक शैक्षिक आर्थिक कसौटियों पर तमाम जातियों को परखा। आयोग ने मालूम किया कि देश में कुल 3743 पिछड़ी जातियां हैं। पिछड़ी जातियां भारतीय जनसंख्या का आधे से ज्यादा हिस्सा थी। हालांकि जो जातियां काका कालेकर कमीशन में षामिल की गई थी उनमें से कई सवर्ण जातियाँ यूंही रखी गई और अनेक राज्यों की कई सवर्ण जातियों को इसमें शामिल करने की बातें प्रमुखता से उठती रही। इससे अन्य पिछड़े वर्गो की जातियों को ही अधिक नुक्शान उठाना पड़ा जो वर्तमान में भी उठा रहा है।
 
पिछड़ी जातियों का पैमाना अर्थात् समझा जायेगा
 
आसमान पर उड़ने वाले जब जमीन का नक्शा बनाते हैं तो हवाई जहाज से धरती का फोटो ले लेते हैं, इसी तरह विदेशी शासकों के विद्यालयों में शिक्षा लाभ करके विदेशी शासकों के साथ रहने वाले शिक्षित बाबू लोग, जो ऊपरी नज़र से अथवा हिंदू लेखकों की लिखी हुई अंग्रेजी पुस्तकों के माध्यम से हिंदू समाज को देखते है तो वे केवल इतना ही देख पाते हैं कि ‘अछूत होना’ अनूसूचित जातियों का पैमाना है और समाज से दूर ‘जगलों में रहना’ अनुसूचित जातियों की पहचान है। इन शिक्षित बाबुओं को ज्ञात नहीं है कि इसी तरह पिछड़ी जातियों की भी एक पहचान है जिसे हिंदू समाज के सर्वश्रेष्ठ विधायक तथा सर्वोतम स्मृतिकार ‘मनु भगवान’ अपनी स्मृति में लिख गये हैं तथा रामायण, महाभारत और पुराणों आदि समस्त हिंदू-धर्मग्रंथों में जिसे मान्यता दी गई है -
 
‘मनुभगवान’ स्पष्ट शब्दों में कहते है-
 
ब्रह्ममणः क्षत्रियों वैश्यस्त्रों वर्णः द्विजातयः।
 
चतुर्थ एक जातिस्तु शूद्रों नास्ति तु पंचमः।।
 
अर्थात् ब्राह्ममण, क्षत्रिय, और वैश्य ये तीन वर्ण द्विजाति हैं, चैथी एक जाति शूद्रों की है, पांचवा कोई  वर्ण नहीं है। ‘चैथी एक जाति शूद्र’ ही पिछड़ी जातियों का पैमाना है, जिसकी बदौलत ये जातियां सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक आदि समस्त क्षेत्रों में पिछड़ गई, इसलिए कि ‘मनु भगवान’ की इस रंग-भेदी एवं वर्णभेदी नीति के अनुसार, जो हजारों-सालों से हिंदू धर्म और हिंदू-संस्कृति के रूप में चली आ रही है जिसके कारण हिंदू समाज द्विज और शूद्र, एवं अतिशुद्र के नामों से दो भागों में बंटा है। व्यवस्था, न्याय (ब््राह्ममण), शासन युद्ध (क्षत्रिय), तथा व्यापार और महाजनी (वैश्य)- ये द्विजातियों के काम हैं; शेष छोटे-छोटे धंधें, बगुचा खोंचा, खेती, शिल्पकारी, सेवा और मजदूरी आदि अद्यम शूद्रों एवं अतिशुद्रों के नाम हैं। (यदि पाठकों को इस दिशा में अधिक गहराई से समझना है तो उन्हें बाबा साहब डाॅ भीमराव आंबेडकर द्वारा दो अनुसंधानपूर्ण प्रसिद्ध पुस्तकों को अध्ययन करना चाहिए। बाबा साहब की इन दोनों पुस्तकों के हिंदी नाम हैं- ‘‘शूद्रों की खोज’’ ओर ‘‘अछूत कौन और कैसे?’’ बाबा साहब ने इन पुस्तकों को वैदिक और संस्कृत साहित्य का गंभीर अध्ययन करके लिखा है। इन्हें सम्यक प्रकाशन नई दिल्ली से प्राप्त किया जा सकता है।)
 
कमीशन ने अपनी जांच का काम एक प्रश्नावली से आंरभ किया जिसमें 152 प्रश्न थे। जिनकों देशभर में घूम-घूमकर भरवाया गया इसके लिए पिछड़ी जातियों के लिए 16 पहचानें की गई थी। इस तरह जातियों की पहचान की गई। इनमें से दो-तीन की जांच का विवरण इस प्रकार से है- जिन जातियों का गाय, भैंस, बकरी, भेड़ी, सुअर पालना, दूध, दही, खोया और घी बनाना आदि जातिगत पैत्रिक पेशा है, वे सब पिछड़ी हुई जातियाँ हैं।
 
जिन जातियों में बड़े-बूढ़ों के मरने पर बिरादरी को भोज देने की अनिवार्य प्रथा है, दसवां, तेहरवां, स्यांपा आदि सूतक-पातक की पाबंदी नहीं है, वे सब पिछड़ी हुई जातियाँ हैं।
 
जिन जातियों का नमक, तेल, तंबाखू, ईंधन बेचना, दूध बेचना, रस बेचना, सब्जी बेचना, बगुचा लादना, टट्टू लादना, फरिहई करना, लढ़िया चलाना, फावड़ा-कुदाल चलाना, जंगल काटना, बाग लगाना, कुंआँ बनाना, मकान बनाना, छप्पर छाना, मजदूरी करना, सेवा टहल करना इत्यादि जाति-गत पैत्रिक पेशा है, वे सब पिछड़ी हुई जातियाँ मानी गई हैं।
 
इन वर्णोसंकर जातियों की जनसंख्या अस्सी प्रतिशत बताई जाती है। डाॅ आंबेडकर ने भी अपने अध्ययन में इन्हें 80 प्रतिशत माना है। काका कालेकर की अध्यक्षता में पिछड़ा वर्ग कमीशन की रिपोर्ट अंग्रेजी में, चार जिल्दों में, प्रकाशित होकर संसद के माननीय सदस्यों के विचार के लिए 31 अगस्त 1955 को अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति डाॅ राजेद्र प्रसाद को सौंपी, जो कि केंद्रीय गृहमंत्री के स्मृतिपत्र के साथ 31 अगस्त 1956 को प्रकाशित हुई। काका कालेकर आयोग ने देशभर में घूम-घूमकर अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों के बारे में पता लगाया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट के अनुसार अन्य पिछड़ा वर्ग की 3743 जातियों को पाया था। परंतु बहुत से विद्वानो ने माना है कि अन्य पिछड़े वर्गो की जातियों की संख्या 6743 के करीब है। परंतु गृहमंत्री पंतजी के स्मृतिपत्र के अनुसार केवल 923 पिछड़ी जातियों की जनसंख्या 11 करोड़ 21 लाख है। शेष 1486 जातियाँ की जनसंख्या कितनी हो सकती है, इसका अनुमान और हिसाब पाठक महोदयों को खुद लगाना होगा। इसके स्मृतिपत्र के अनुसार अनुसूचित जातियों की संख्या 7 करोड़ है।
 
 
मंडल आयोग की सिफारिशें
 
मंडल आयोग के रिपोर्ट में पिछडे़ वर्गों के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी (प्रतिनिधित्व) आरक्षण की सिफारिश की बात की गई। भारत में अनुसूचित जाति.जनजाति को पहले से 22.5 प्रतिशत (प्रतिनिधित्व) आरक्षण दिया जा रहा था। इसी कारण इंदिरा गांधी की सरकार इस सिफारिश को लागू करने से बचती रही। मंडल आयोग की सिफारिश को लागू करने का मतलब था 49.5 प्रतिशत सीटें आरक्षित कर देना। इंदिरा गांधी सरकार इसे लागू नहीं कर सकी।
 
सरकारी नौकरियों में आरक्षण के अलावा मंडल आयोग की प्रमुख सिफारिश थीं-
 
जमींदारी प्रथा को खत्म करने के लिए भूमि सुधार कानून लागू किया जाये क्योंकि पिछड़े वर्गों का सबसे बड़ा दुश्मन जमींदारी प्रथा थी।  
 
सरकार द्वारा अनुबंधित जमीन को न केवल अनुसूचित समाज को दिया जाये बल्कि पिछड़ांे को भी इसमें शामिल किया जाये।
 
केंद्र और राज्य सरकारों में पिछड़ा वर्गो के हितों की सुरक्षा के लिए अलग मंत्रालय विभाग बनाये जाये।
 
केंद्र और राज्य सरकारों के अधीन चलने वाली वैज्ञानिक तकनीकी तथा प्रोफेशनल शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए पिछड़ें वर्गों के छात्र-छात्राओं के लिए आरक्षण लागू किया जायें।
 
पिछड़ें समाज की आबादी वाले क्षेत्रों में वयस्क शिक्षा केंद्र तथा पिछड़ें वर्गों के छात्र.छात्राओं के लिए आवासीय विद्यालय खोले जाए तथा छात्रों को रोजगार परक शिक्षा दी जाये।
 
अब प्रश्न है कि मंडल कमीशन के अनुसार जो ओबीसी समाज को मिलना चाहिए था क्या वो उनको मिला?
 
क्या ओबीसी समाज अपने अधिकारों को लेने में सक्षम हुआ है ?
 
क्या ओबीसी समाज जिनकी देश में सबसे बड़ी जनसंख्या में भागीदारी है अपने अधिकारों को पाने में कामयाब होगा या पहले ही सबकुछ छिन लिया जायेगा ?