"योद्धा जातियाँ": अवतरणों में अंतर
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'''योद्धा जातियाँ''', 1857 की क्रांति के बाद, ब्रिटिश कालीन भारत के सैन्य अधिकारियों बनाई गयी उपाधि थी। उन्होने समस्त जतियों को "योद्धा" व "गैर-योद्धा" जतियों के रूप मे वर्गीकृत किया था। उनके अनुसार, सुगठित शरीर व बहादुर "योदधा वर्ण" लड़ाई के लिए अधिक उपयुक्त था,<ref name=rand>{{Cite journal|last=Rand|first=Gavin|title=Martial Races and Imperial Subjects: Violence and Governance in Colonial India 1857–1914|journal= European Review of History|volume=13|issue=1|pages=1–20|publisher=Routledge|date=March 2006|url=|doi=10.1080/13507480600586726}}</ref> जबकि आराम पसंद जीवन शैली वाले "गैर-लड़ाकू वर्ण" के लोगों को ब्रिटिश सरकार लड़ाई हेतु अनुपयुक्त समझती थी। एक वैकल्पिक परिकल्पना यह भी है कि 1857 की क्रांति मे अधिकतर ब्रिटिश प्रशिक्षित गुर्जर जाति सैनिक ही थे जिसके फलस्वरूप सैनिक भर्ती प्रक्रिया उन लोगों की पक्षधर थी जो ब्रिटिश हुकूमत के बफादार रहे थे अतः बंगाल आर्मी में खाड़ी क्षेत्र से होने वाली भर्ती या तो कम कर दी गयी या रोक दी गयी थी।<ref name="Street">{{cite book |title=Martial Races: The military, race and masculinity in British Imperial Culture, 1857-1914 |last=Streets |first=Heather |authorlink= |coauthors= |year=2004 |publisher=Manchester University Press |location= |isbn=978-0-7190-6962-8 |page=241 |url=http://books.google.co.in/books?id=BscnZT_1po8C |accessdate=20 October 2010 |archive-url=https://web.archive.org/web/20120121173142/http://books.google.co.in/books?id=BscnZT_1po8C |archive-date=21 जनवरी 2012 |url-status=live }}</ref> उक्त धारणा भारत के वैदिक हिन्दू समाज की चतुर्वर्णीय व्यवस्था मे "क्षत्रिय वर्ण" के रूप मे पहले से ही विद्यमान थी जिसका शाब्दिक अर्थ "योद्धा जाति" है। योद्धा जाति में जाट यादव राजपूत गुर्जर थे लेकिन
==मानदण्ड==
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