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'''दशनामी''' शब्द [[संन्यास|संन्यासियों]] सरस्वती, गिरि, पुरी, बन,भारती, तीर्थ,सागर,अरण्य,पर्वत और 10वा आश्रम है) के एक संगठन विशेष गोस्वामियों के लिए प्रयुक्त होता है और प्रसिद्ध है कि उसे सर्वप्रथम स्वामी [[आदि शंकराचार्य|शंकराचार्य]] ने चलाया था, किंतु इसका श्रेय कभी-कभी [[स्वामी सुरेश्वराचार्य]] को भी दिया जाता है, जो उनके अनन्तर दक्षिण भारत के [[शृंगेरी शारदा पीठम|शृंगेरी मठ]] के तृतीय आचार्य थे। ("ए हिस्ट्री ऑव दशनामी नागा संन्यासीज़ पृ. 50")
इन दशनामी गोस्वामियों को आद्य शंकराचार्य जी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी भी माना जाता है
दशनामी सम्प्रदाय के साधु प्रायः भगवा वस्त्र पहनते, एक भुजवाली लाठी रखते और गले में चौवन रुद्राक्षों की माला पहनते हैं। हर सुबह वे ललाट पर राख से तीन या दो क्षैतिज रेखाएं बना लेते। तीन रेखाएं शिव के त्रिशूल का प्रतीक होती है, दो रेखाओं के साथ एक बिन्दी ऊपर या नीचे बनाते, जो शिवलिंग का प्रतीक होती है। इनमें निर्वस्त्रधारियों को नागा बाबा कहते हैं। इस संप्रदाय के लोग अभिवादन एवं तपस्या में "ॐ नमो नारायण" का प्रयोग करते हैं।
 
== परिचय ==