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नवाब आसफ़ुद्दौला को [[लखनऊ]] का मुख्य वास्तुशिल्पी माना जाता है। मुग़ल वास्तुशिल्प से भी अधिक चकाचौंध की चाहत में उन्होंने कई इमारतें बनवाईं और लखनऊ शहर को वास्तुशिल्प का एक अनोखा नमूना बना दिया। इनमें से कई इमारतें आज भी मौजूद हैं, इनमें मशहूर [[आसफ़ी इमामबाड़ा]] शामिल है जहाँ आज भी सैलानी आते हैं, और [[लखनऊ]] शहर का क़ैसरबाग़ इलाका, जहाँ हज़ारों लोग प्राचीन नवीनीकृत इमारतों में रहते हैं।
 
[[Image:Bara-imambara.jpg|thumbnail|300px|[[बड़ा इमामबाड़ा]], [[लखनऊ]], आसफ़ुद्दौला द्वारा निर्मित|निर्मित।]]
 
[[आसफ़ी इमामबाड़ा]] एक मशहूर गुंबददार इमारत है जिसके चारों ओर सुंदर बाग़ हैं। १७८४ के अकाल में रोजगार उत्पन्न करने के लिए नवाब ने एक खैराती परियोजना के तौर पर इसे शुरू किया था। इस अकाल में रईसों के पास भी पैसे खत्म हो गए थे। कहा जाता है कि नवाब आसफ़ ने इस परियोजना में २०,००० से ज़्यादा (आम व रईस दोनों ही) लोगों को काम दिया, यह न मस्जिद था न कब्रगाह (आमतौर पर इस तरह की इमारतें उस समय इन दो मकसदों के लिए ही बनाई जाती थीं)। नवाब की उच्च वर्ग की इज़्ज़त के बारे में खयाल रखने की भावना के बारे में अंदाज़ा इमामबाड़ा बनाने से जुड़ी कहानी से लगाया जा सकता है। दिन के समय परियोजना में लगी आम जनता इमारतें बनाती। हर चौथे दिन की रात में रईस व उच्च वर्ग के लोगों को गुपचुप बने हुए ढाँचे को तोड़ने का काम दिया जाता था, और इसके एवज में उन्हें पैसे दिए जाते। इस प्रकार उनकी इज़्ज़त बरकरार रखी गई।