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इसके अधूरे जिस्म के साथ "पूरी" जिंदगी आपको जीने का हुनर और हौसला अता करेगी.... [[सदस्य:Pratap Singh alwar|Pratap Singh alwar]] ([[सदस्य वार्ता:Pratap Singh alwar|वार्ता]]) 15:16, 23 जनवरी 2021 (UTC)
 
== Human ==
 
मनुष्य के सत्कार्य ही उसके जीवन की सफलता के सार होते है। मानव के चरित्र में अनेक विकृतियां स्वयंकृत अथवा समाज के प्रदूषण से उत्पन्न होती है। मानव यदि विकृतियों से बचा रहता है तभी वह सफलता एवं सुख का अनुभव कर पाएगा। व्यक्ति की किसी भी वस्तु के प्रति आसक्ति उस वस्तु को प्राप्त करने की लालसा उत्पन्न करती है और वह क्रियाशील हो जाता है। मनुष्य का आत्मसंयमित होना आवश्यक है अन्यथा उसे अनेक बुराइयां दबा लेंगी और वह असफलता के दलदल में धंस जाएगा। यदि संयम के साथ क्रियाशील रहेगा तो आत्मविश्वास सबल रहेगा और उत्साह के साथ अपने कर्म में सफलता प्राप्त कर सकेगा। उत्साह जहां संयमशीलता से किए कर्म के साथ होता है वहीं इसके विपरीत उत्तेजना होती है। उत्तेजना में उत्साह जैसा जोश तो होता है, पर वह क्षणिक उद्वेग पर आधारित होता है। उत्साह सकारात्मक होने के कारण कार्य के प्रति आशा का संचार करता है, जबकि उत्तेजना पैदा होने पर नकारात्मक वृत्तियां बढ़ने लगती है और कार्य की असफलता की ओर बढ़त होने लगती है। उत्साह कार्मिक क्षमता का विकास होता है, जबकि नकारात्मक सोच क्रोध को जन्म देती है। हमारे मन एवं उसकी वृत्तियों का शरीर बुद्धि व आत्मा पर प्रभाव पड़ता है। [[सदस्य:Pratap Singh alwar|Pratap Singh alwar]] ([[सदस्य वार्ता:Pratap Singh alwar|वार्ता]]) 15:17, 23 जनवरी 2021 (UTC)