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यह शहर हमेशा शक्‍तिशाली बादशाहों के बहन लिए आकर्षण का केंद्र साबित हुआ है। दौलताबाद की सामरिक स्थिति बहुत ही महत्‍वपूर्ण थी। यह उत्तर और दक्षिण भारत के मध्‍य में पड़ता था। यहां से पूरे भारत पर शासन किया जा सकता था। इसी कारणवश बादशाह मुहम्‍मद बिन तुगलक ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। उसने दिल्‍ली की समस्‍त जनता को दौलताबाद चलने का आदेश दिया था। लेकिन वहां की खराब स्थिति तथा आम लोगों की तकलीफों के कारण उसे कुछ वर्षों बाद राजधानी पुन: दिल्‍ली लानी पड़ी।
यह किल्ले का अस्तिव कुछ लोग उत्तर प्रदेश के यादवों से जोडते है । पर यह किल्ले के 200 किलोमीटर दूर तक भी यादव जाती के लोगो का कुछ अस्तित्व नहीं है । वहा के लोग का माना है कि यह किल्ला मराठा जाधव(जादौन) मतलब क्षत्रिय मराठा यादव चंद्रवंशी सम्बन्धित है । उस वक्त राजपूत राजाओं का भारत में दबदबा था इसलिए इसको राजपूतों में जो यादव कुल होता है उनको मानते है । क्यों की राजपूत और मराठा के 36 से ज्यादा कुल एक जैसे है और दोनों की कुल देवी भवानी माता है
 
== परिचय ==
देवगिरि दक्षिण भारत का प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर जो आजकल दौलताबाद के नाम से पुकारा जाता है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में २० डिग्री उत्तर अक्षांश तथा ७५ डिग्री पूर्व देशांतर में स्थित है। [[भीलम]] नामक राजा ने इसे ११वीं सदी में बसाया था और उसी काल से दो सौ वर्षों तक हिंदू शासकों ने देवगिरि पर शासन किया। १४वीं सदी से यह नगर मुसलमानों के अधिकार में चला आया। देवगिरि के समीप [[औरंगज़ेब|औरंगजेब]] के मरने पर यह जिला औरंगाबाद कहा जाने लगा।
 
[[क्षत्रिय मराठा जादौन जाधव यादवमथुरा]] के यादव कुल से देवगिरि के हिंदू शासक संबंध जोड़ते हैं जिस कारण यहाँ का राजवंश 'यादव' कहलाया। हेमाद्री रचित 'ब्रतखंड' में तथा अभिलेखों के आधार पर ''दृढ़प्रहार'' देवगिरि के यादव वंश का प्रथम ऐतिहासिक पुरुष माना जाता है। भीलम शक्तिशाली नरेश था जिसने [[होयसल राजवंश|होयसल]], [[चोल राजवंश|चोल]] तथा [[चालुक्य]] राज्यों पर सफल आक्रमण किया था। उसके उत्तराधिकारी सिंघण ने इसे साम्राज्य का रूप दे दिया। युद्ध के फलस्वरूप देवगिरि राज्य खानदेश से अनंतपुर (मैसूर) तक तथा पश्चिमी घाट से हैदराबाद तक विस्तृत हो गया।
 
१३वीं सदी के देवगिरि नरेश कृष्ण का नाम अनेक लेखों में मिलता है। इसने वंश की प्रतिष्ठा की अभिवृद्धि की। कृष्ण के पुत्र रामचंद्र के शासन में खिलजी वंश के सुल्तान अलाउद्दीन ने देवगिरि पर चढ़ाई की थी। अलाउद्दीन यहाँ से असंख्य धन लूटकर ले गया और उसके सेनापति काफूर रामचंद्र को बंदी बना लिया। कुछ समय पश्चत् रामचंद्र मुक्त कर दिया गया। यही कारण था कि देवगिरि के राज ने तैलंगाना के युद्ध में काफूर को हथियारों की मदद दी थी। शकंरदेव ने सिंहासन पर बैठने (१३१२ ई.) के बाद मुसलमानों से शत्रुता बढ़ा ली जिसका फल यह हुआ कि शंकरदेव को हराकर काफूर ने देवगिरि पर अधिकार कर लिया।