"अष्टांग योग": अवतरणों में अंतर

→‎यम: पातंजलयोगदर्शन के अनुसार अस्तेय संबंधी सूत्र ।
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अस्तेय अर्थात चोर-प्रवृति का न होना
 
(घ) '''ब्रह्मचर्य''' - दो'''ब्रह्मचर्यप्रतिष्ठायां अर्थवीर्यलाभ: ।। पातंजलयोगदर्शन 2/ 38 ।।''' हैं-
 
अर्थात ब्रह्मचर्य के प्रतिष्ठित हो जाने पर वीर्य(सामर्थ्य) का लाभ होता है ।
 
ब्रह्मचर्य दो अर्थ हैं-
 
: चेतना को ब्रह्म के ज्ञान में स्थिर करना
: सभी इन्द्रिय जनित सुखों में संयम बरतना
 
(च) '''अपरिग्रह''' - अपरिग्रहस्थैर्ये जन्मकथन्तासंबोध :।। पातंजलयोगदर्शन 2/ 39।।
(च) '''अपरिग्रह''' - आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा नहीं करना
 
अर्थात अपरिग्रह स्थिर होने पर (बहुत, वर्तमान और भविष्य के ) जन्मों तथा उनके प्रकार का संज्ञान होता है ।
 
(च) '''अपरिग्रह''' -का अर्थ आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा नहीं करना
 
=== नियम ===