→यम: पातंजलयोगदर्शन के संबंधित सूत्र
→यम: पातंजलयोगदर्शन के अनुसार अस्तेय संबंधी सूत्र । |
→यम: पातंजलयोगदर्शन के संबंधित सूत्र |
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अस्तेय अर्थात चोर-प्रवृति का न होना
(घ) '''ब्रह्मचर्य''' -
अर्थात ब्रह्मचर्य के प्रतिष्ठित हो जाने पर वीर्य(सामर्थ्य) का लाभ होता है ।
ब्रह्मचर्य दो अर्थ हैं-
: चेतना को ब्रह्म के ज्ञान में स्थिर करना
: सभी इन्द्रिय जनित सुखों में संयम बरतना
(च) '''अपरिग्रह''' - अपरिग्रहस्थैर्ये जन्मकथन्तासंबोध :।। पातंजलयोगदर्शन 2/ 39।।
(च) '''अपरिग्रह''' - आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा नहीं करना▼
अर्थात अपरिग्रह स्थिर होने पर (बहुत, वर्तमान और भविष्य के ) जन्मों तथा उनके प्रकार का संज्ञान होता है ।
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=== नियम ===
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