[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
No edit summary
टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
HinduKshatrana के अवतरण 5257399पर वापस ले जाया गया : Rv IP (ट्विंकल)
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
पंक्ति 5:
| name = शिव
| image = Shiva statue, Mauritius.jpg
| other_names = नीलकंठ, महादेव, शंकर, पशुपतिनाथ, नटराज, [[शिव|त्रिनेत्र]], भोलेनाथ, रुद्रशिव, कैलाशी , अर्धनारेश्नर , विष्णु , कैलाशनाथ आदि
| Tamil_script =
| affiliation = [[हिन्दू देवी देवताओं की सूची|हिन्दू देवता]]
पंक्ति 19:
'''शंकर या''' '''महादेव''' [[ अरण्य संस्कृति| आरण्य संस्कृति]] जो आगे चल कर सनातन [https://www.jyotirlinga-list.xyz शिव] धर्म (शैव धर्म) नाम से जाने जाती है में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं। यें सृष्टि के संहारक और जगतपिता हैं।
वैष्णव। नाम: यथा। शंभू।।
इन्हें सबसे बड़ा वैष्णव भी कहा जाता है। क्योंकि यह परम वैष्णव है। वैष्णव वह होते हैं। जो भगवान विष्णु के परम भक्त होते हैं। भगवान शिव को भगवान विष्णु का परम भक्त भी कहा जाता है। जिसका उल्लेख सत्व गुण के 6 पुराण और ज्यादातर सभी शास्त्रों में किया गया है वेद, उपवेद, उपनिषद, इतिहास, पुराण, उपपुराण, संहिता तथा सभी शास्त्रों में मिलता है। जैसे विष्णु पुराण, श्रीमद्भागवत, महापुराण, रामायण, महाभारत, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि। इन्हें भोलेनाथ, [[शिव|शंकर]], महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधर आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है।<ref>{{उद्धृत अंतर्जाल|title=तस्वीरों के जरिए जानें, भगवान शिव के ये आभूषण देते हैं किन बातों का संदेश|url=https://www.jagran.com/photogallery/religion-suvichar-significance-of-lord-shiva-ornaments-25392.html|date=13-11-2017|author=संजय पोखरियाल|Publisher=दैनिक जागरण}}</ref> [[शैव|हिन्दू शिव घर्म]] शिव-धर्म के प्रमुख [[देवता]]ओं में से हैं। [[वेद]] में इनका नाम [[रुद्र]] है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी ([[शक्ति]]) का नाम [[पार्वती]] है। इनके पुत्र [[कार्तिकेय]] , अय्यपा और [[गणेश]] हैं, तथा पुत्री मनसा देवी , देवी ज्योति और देवी [[अशोक सुंदरी]] हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में [[योगी]] के रूप में देखे जाते हैं और उनकी [[पूजा]] [[शिवलिंग]] तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में [[नाग]] देवता वासुकी विराजित हैं और हाथों में डमरू और [[त्रिशूल]] लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है।<ref>{{उद्धृत अंतर्जाल|url=http://timesspeak.com/भगवान-शिव-के-इन-गुणों-को-अप/|title=भगवान शिव के इन गुणों को अपनाएंगे तो आपका जीवन सफल हो जाएगा।|date=13-02-2018|author=हिमान्शु जी शर्मा}}</ref> <ref>{{cite book|author=K. Sivaraman|title=Śaivism in Philosophical Perspective: A Study of the Formative Concepts, Problems, and Methods of Śaiva Siddhānta|url=https://books.google.com/books?id=I1blW4-yY20C&pg=PA131|year=1973|publisher=Motilal Banarsidass|isbn=978-81-208-1771-5|page=131|access-date=21 मार्च 2020|archive-url=https://web.archive.org/web/20170407153443/https://books.google.com/books?id=I1blW4-yY20C&pg=PA131|archive-date=7 अप्रैल 2017|url-status=live}}</ref><ref name="Flood 1996, p. 17">{{harvnb|Flood|1996|pp=17, 153}}</ref><ref name="Zimmer 1972 p. 124">Zimmer (1972) pp. 124-126</ref>
 
ये 11 रुद्र मेंं सबसे बड़े हैं।
शंकर जी को [[संहार]] का देवता कहा जाता है। शंंकर जी सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं [[प्रलय]] दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। [[रावण]], [[शनि]], [[कश्यप|कश्यप ऋषि]] आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। शिव के कुछ प्रचलित नाम, महाकाल, आदिदेव, किरात, शंकर, चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय [मृत्यु पर विजयी], त्रयम्बक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, विषधर, नीलकण्ठ, महाशिव, उमापति [पार्वती के पति], काल भैरव, भूतनाथ, ईवान्यन [तीसरे नयन वाले], शशिभूषण आदि।
भगवान शिव को रूद्र नाम से जाता है रुद्र का अर्थ है रुत दूर करने वाला अर्थात दुखों को हरने वाला अतः भगवान शिव का स्वरूप कल्याण कारक है। रुद्राष्टाध्याई के पांचवी अध्याय में भगवान शिव के अनेक रूप वर्णित है रूद्र देवता को स्थावर जंगम सर्व पदार्थ रूप सर्व जाति मनुष्य देव पशु वनस्पति रूप मानकर के सराव अंतर्यामी भाव एवं सर्वोत्तम भाव सिद्ध किया गया है इस भाव से ज्ञात होकर साधक अद्वैत निष्ठ बनता है। संदर्भ रुद्राष्टाध्याई पृष्ठ संख्या 10 [[गीताप्रेस|गीता प्रेस]] गोरखपुर।
रामायण में भगवान राम के कथन अनुसार शिव और राम में अंतर जानने वाला कभी भी भगवान शिव का या [[राम|भगवान राम]] का प्रिय नहीं हो सकता। शुक्ल यजुर्वेद संहिता के अंतर्गत रुद्र अष्टाध्याई के अनुसार सूर्य इंद्र विराट पुरुष हरे वृक्ष, अन्न, जल, वायु एवं मनुष्य के कल्याण के सभी हेतु भगवान शिव के ही स्वरूप है भगवान सूर्य के रूप में वह शिव भगवान मनुष्य के कर्मों को भली-भांति निरीक्षण कर उन्हें वैसा ही फल देते हैं आशय यह है कि संपूर्ण सृष्टि शिवमय है मनुष्य अपने अपने कर्मानुसार फल पाते हैं अर्थात स्वस्थ बुद्धि वालों को वृष्टि जल अन्य आदि भगवान शिव प्रदान करते हैं और दुर्बुद्धि वालों को व्याधि दुख एवं मृत्यु आदि का विधान भी शिवजी करते हैं।
 
== शिव स्वरूप ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/शिव" से प्राप्त