"महावीर प्रसाद द्विवेदी": अवतरणों में अंतर
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उन्होंने [[वेद|वेदों]] से लेकर [[पंडितराज जगन्नाथ]] तक के संस्कृत-साहित्य की निरंतर प्रवहमान धारा का अवगाहन किया था एवं उपयोगिता तथा कलात्मक योगदान के प्रति एक वैज्ञानिक दृष्टि अपनायी थी। उन्होंने [[श्रीहर्ष]] के संस्कृत महाकाव्य [[नैषधीयचरित|नैषधीयचरितम्]] पर अपनी पहली आलोचना पुस्तक '[[नैषधचरित चर्चा]] ' नाम से लिखी (1899), जो संस्कृत-साहित्य पर हिन्दी में पहली आलोचना-पुस्तक भी है। फिर उन्होंने लगातार संस्कृत-साहित्य का अन्वेषण, विवेचन और मूल्यांकन किया। उन्होंने संस्कृत के कुछ महाकाव्यों के हिन्दी में औपन्यासिक रूपांतर भी किये, जिनमें [[कालिदास]] कृत [[रघुवंश]], [[कुमारसंभव]], [[मेघदूत]] , [[किरातार्जुनीय]] प्रमुख हैं।
[[संस्कृत]], [[ब्रजभाषा]] और [[खड़ी बोली]] में स्फुट काव्य-रचना से साहित्य-साधना का
द्विवेदी जी ने विस्तृत रूप में साहित्य रचना की। इनके छोटे-बड़े ग्रंथों की संख्या कुल मिलाकर ८१ है।
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