"तुकोजी होल्कर": अवतरणों में अंतर

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== अवनति के पथ पर ==
सन् 1780 में तुकोजी महादजी से अलग हो गये । उसके बाद महादजी ने राजनीतिक क्षेत्र में भारी उन्नति प्राप्त की तथा तुकोजी का स्थान काफी नीचा हो गया। लालसोट के संघर्ष के बाद 1787 में महादजी द्वारा सहायता भेजे जाने के अनुरोध पर नाना फडणवीस ने पुणे से अली बहादुर तथा तुकोजी होलकरहोळकर को भेजा था; परंतु वहा पहुँचकर भी महादजी का और तुकोजी कामें वैमनस्य उत्पन्न हो गया । तुकोजी जीते गये प्रांतों में हिस्सा चाह रहे थे और स्वभावतः महादजी का कहना था कि यदि हिस्सा चाहिए तो पहले विजय हेतु व्यय किये गये धन को चुकाने में भी हिस्सा देना चाहिए। परंतु महादजी ने अहिल्याबाई से लिया हुआ कर्ज चुकाया नही था इसिलिये तुकोजी का केहनाकहना था कि "आप पेहलेपहले मातेश्वरी ([[अहिल्याबाई]]) होळकर से लिया हुआ कर्ज चुका ओ .चुकाईये"। अहिल्याबाई तथा तुकोजी जो प्रायः समवयस्क थे, कभी समान मतवाले होकर नहीं रह पाये। परंतु वोवे कभी अहिल्याबाई के शब्दो के आगे नही गये
== परिवार ==
तुकोजी होल्कर के चार पुत्र थे-- काशीराव, मल्हारराव, विठोजी तथा यशवंतराव। इनमें से प्रथम दो पेहली बिवी के पुत्र थे तथा अंतिम दो दुसरे बिवी के थे
 
तुकोजी होल्कर के चार पुत्र थे-- काशीराव, मल्हारराव, विठोजी तथा यशवंतराव। इनमें से प्रथम दो पेहली बिवी के पुत्र थे तथा अंतिम दो दुसरे बिवी के थे
== पराभव का आरम्भ ==
तुकोजी और महादजी का वैमनस्य और बढने लगा परिणामस्वरूप महादजी ने उसका सर्वनाश करने का निश्चय किया। 8 अक्टूबर 1792 को महादजी की ओर से गोपाल राव भाऊ ने सुरावली नामक स्थान पर होलकर पर आकस्मिक आक्रमण किया। अनेक सैनिक मारे गए परंतु खुद तुकोजी होलकर बंदी होने से बच गया। यद्यपि बापूजी होलकर तथा पाराशर पंत के प्रयत्न से इस प्रकरण में समझौता हो गया, परंतु इंदौर में अहिल्याबाई तथा तुकोजी के पुत्र मल्हारराव द्वितीय को यह अपमानजनक लगा। उसने थोडी सी सेना तथा धन लेकर अपने पिता के शिविर में पहुँचकर समझौते तथा बापूजी एवं पाराशर पंत के परामर्श का उल्लंघन कर महादजी के बिखरे अश्वारोहियों पर आक्रमण आरंभ कर दिया। गोपालराव द्वारा समाचार पाकर महादजी ने आक्रमण का आदेश दे दिया।