"मन्त्र": अवतरणों में अंतर

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ध्यान की उच्चतम अवस्था में साधक का आध्यात्मिक व्यक्तित्व पूरी तरह से प्रभु के साथ एकाकार हो जाता है जो अन्तर्यामी है। वही सारे ज्ञान एवं 'शब्द' (ॐ) का स्रोत है। प्राचीन ऋषियों ने इसे ''शब्द-ब्रह्म'' की संज्ञा दी - वह शब्द जो साक्षात् ईश्वर है! उसी सर्वज्ञानी शब्द-ब्रह्म से एकाकार होकर साधक मनचाहा ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
 
‘‘मननात त्रायते यस्मात्तस्मान्मंत्र उदाहृतः’’, अर्थात जिसके मनन, चिंतन एवं ध्यान द्वारा संसार के सभी दुखों से रक्षा, मुक्ति एवं परम आनंद प्राप्त होता है, वही मंत्र है। ‘‘मन्यते ज्ञायते आत्मादि येन’’ अर्थात जिससे आत्मा और परमात्मा का ज्ञान (साक्षात्कार) हो, वही मंत्र है। ‘‘मन्यते विचार्यते आत्मादेशो येन’’ अर्थात जिसके द्वारा आत्मा के आदेश (अंतरात्मा की आवाज) पर विचार किया जाए, वही मंत्र है। ‘‘मन्यते सत्क्रियन्ते परमपदे स्थिताःदेवताः’’ अर्थात् जिसके द्वारा परमपद में स्थित देवता का सत्कार (पूजन/हवन आदि) किया जाए-वही मंत्र है। ‘‘मननं विश्वविज्ञानं त्राणं संसारबन्धनात्। यतः करोति संसिद्धो मंत्र इत्युच्यते ततः।।’’ अर्थात यह ज्योतिर्मय एवं सर्वव्यापक आत्मतत्व का मनन है और यह सिद्ध होने पर रोग, शोक, दुख, दैन्य, पाप, ताप एवं भय आदि से रक्षा करता है, इसलिए मंत्र कहलाता है। ‘‘मननात्तत्वरूपस्य देवस्यामित तेजसः। त्रायते सर्वदुःखेभ्यस्स्तस्मान्मंत्र इतीरितः।।’’ अर्थात जिससे दिव्य एवं तेजस्वी देवता के रूप का चिंतन और समस्त दुखों से रक्षा मिले, वही मंत्र है। ‘‘मननात् त्रायते इति मंत्र’’ः अर्थात जिसके मनन, चिंतन एवं ध्यान आदि से पूरी-पूरी सुरक्षा एवं सुविधा मिले वही मंत्र है। ‘‘प्रयोगसमवेतार्थस्मारकाः मंत्राः’’ अर्थात अनुष्ठान और पुरश्चरण के पूजन, जप एवं हवन आदि में द्रव्य एवं देवता आदि के स्मारक और अर्थ के प्रकाशक मंत्र हैं। ‘‘साधकसाधनसाध्यविवेकः मंत्रः।’’ अर्थात साधना में साधक, साधन एवं साध्य का विवेक ही मंत्र कहलाता है। ‘‘सर्वे बीजात्मकाः वर्णाः मंत्राः ज्ञेया शिवात्मिकाः‘‘ अर्थात सभी बीजात्मक वर्ण मंत्र हैं और वे शिव का स्वरूप हैं। ‘‘मंत्रो हि गुप्त विज्ञानः’’ अर्थात मंत्र गुप्त विज्ञान है, उससे गूढ़ से गूढ़ रहस्य प्राप्त किया जा सकता है।
 
== मंत्र की उत्पत्ति ==