"रामानन्द": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
संजीव कुमार (वार्ता | योगदान) Prakashchadi (वार्ता) के अवतरण 5699605 पर पुनर्स्थापित : - |
||
पंक्ति 1:
'''स्वामी रामानन्द''' मध्यकालीन [[भक्ति आन्दोलन]] के महान [[सन्त]] थे। उन्होंने [[राम]][[भक्ति]] की धारा को समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाया। वे पहले ऐसे आचार्य हुए जिन्होंने उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार किया। उनके बारे में प्रचलित कहावत है कि - '''द्रविड़ भक्ति उपजौ-लायो रामानंद।''' यानि उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार करने का श्रेय [[स्वामी रामानन्दाचार्य|स्वामी रामानंद]] को जाता है। स्वामी जी ने [[
[[File:Stamp of India - 2002 - Colnect 158243 - Swami Ramanand.jpeg|thumb|भारतीय डाक टिकट पर रामानन्दाचार्य का चित्र।]]
Line 24 ⟶ 13:
== भक्ति-यात्रा ==
स्वामी रामानंद ने भक्ति मार्ग का प्रचार करने के लिए देश भर की यात्राएं की। वे [[जगन्नाथ मन्दिर, पुरी|पुरी]] और [[दक्षिण भारत]] के कई धर्मस्थानों पर गये और रामभक्ति का प्रचार किया। पहले उन्हें [[रामानुज|स्वामी रामानुज]] का अनुयायी माना जाता था लेकिन [[रामानुज संप्रदाय|श्री सम्प्रदाय]] का आचार्य होने के बावजूद उन्होंने अपनी उपासना पद्धति में राम और सीता को वरीयता दी। उन्हें हीं अपना उपास्य बनाया। राम भक्ति की पावन धारा को हिमालय की पावन ऊंचाईयों से उतारकर [[स्वामी रामानन्दाचार्य|स्वामी रामानंद]] ने गरीबों और वंचितों की झोपड़ी तक पहुंचाया, वे भक्ति मार्ग के ऐसे सोपान थे जिन्होंने भक्ति साधना को नया आयाम दिया। उनकी पवित्र चरण पादुकायें आज भी '''श्रीमठ''', काशी में सुरक्षित हैं, जो करोड़ों रामानंदियों की आस्था का केन्द्र है। स्वामीजी ने भक्ति के प्रचार में संस्कृत की जगह लोकभाषा को प्राथमिकता दी। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिसमें '''आनंद भाष्य''' पर टीका भी शामिल है। '''वैष्णवमताब्ज भास्कर''' भी उनकी प्रमुख रचना है।
== चिन्तनधारा ==
Line 47 ⟶ 36:
स्वामी रामानन्दाचार्य द्वारा विरचित ग्रन्थों की सूची निम्नलिखित है:
(1)
(2) '''श्रीरामार्चनपद्धतिः''' (संस्कृत), <br />
(3) [[श्रीरामरक्षास्तोत्रम्|रामरक्षास्तोत्र]] (हिन्दी), <br />
(4) '''सिद्धान्तपटल''' (हिन्दी), <br />
(5) '''ज्ञानलीला''' (हिन्दी), <br />
(6) '''ज्ञानतिलक''' (हिन्दी), <br />
(7) '''योगचिन्तामणि''' (हिन्दी) <br />
(7) '''सतनामी पन्थ''' (हिन्दी)
'''आनन्दभाष्य''' नाम से जगदगुरु रामानन्दाचार्य जी ने प्रस्थानत्रयी का [[भाष्य]] लिखा है।
==सन्दर्भ==
|