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(नया पृष्ठ: रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 4 कवि: रामधारी सिंह "दिनकर" ~*~*~*~*~*~*~*~ खड्...) |
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खड्ग बड़ा उद्धत होता है, उद्धत होते हैं राजे,
जय पुकारती प्रजा रात-दिन राजा जयी यशस्वी की!
'सिर था जो सारे समाज का, वही अनादर पाता है।
जिसमें हो धीरता, वीरता और तपस्या का बल भी।
'वीर वही है जो कि शत्रु पर जब भी खड्ग उठाता है,
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