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रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 4
कवि: रामधारी सिंह "दिनकर"
 
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खड्‌ग बड़ा उद्धत होता है, उद्धत होते हैं राजे,
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जय पुकारती प्रजा रात-दिन राजा जयी यशस्वी की!
 
रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 5
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कवि: रामधारी सिंह "दिनकर"
 
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'सिर था जो सारे समाज का, वही अनादर पाता है।
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जिसमें हो धीरता, वीरता और तपस्या का बल भी।
 
रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 6
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कवि: रामधारी सिंह "दिनकर"
 
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'वीर वही है जो कि शत्रु पर जब भी खड्‌ग उठाता है,
"https://hi.wikipedia.org/wiki/खंड-४" से प्राप्त