वीरसेन
आचार्य वीरसेन आठवीँ शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं जैन दार्शनिक थे। वे प्रखर वक्ता एवं कवि भी थे। धवला उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है। 'जयधवला' के भी वे रचयिता हैं।
उन्होने स्तम्भस्थूण या 'फ्रस्टम' (frustum) का आयतन निकालने की विधि बतायी। वे 'अर्धच्छेद', 'त्रकच्छेद' और 'चतुर्थच्छेद' नाम के काँसेप्ट का प्रयोग करते थे। अर्धच्छेद में देखते हैं कि कोई संख्या कितनी बार में २ से विभाजित होकर अन्ततः १ हो जाती है। वस्तुतः यह २ आधार पर उस संख्या का लघुगणक (log2x) की खोज है। इसी प्रकार 'त्रक्च्छेद' और 'चतुर्च्छेद' क्रमशः (log3x) और (log4x) हैं।
आचार्य वीरसेन ने किसी वृत्त की परिधि C और उसके व्यास d के बीच सम्बध के लिये एक सन्निकट सूत्र दिया :
- C = 3d + (16d+16)/113d.
d के बड़े मानों के लिये यह सूत्र पाई का मान लगभग π ≈ 355/113 = 3.14159292..., देता है। यह मान आर्यभट द्वारा आर्यभटीय में दिये गये मान π ≈ 3.1416 से अधिक शुद्ध है।
इन्हें भी देखें
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संपादित करें- Singh, A. N., संग्रहीत प्रति, Lucknow University, मूल से 11 मई 2011 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 31 अगस्त 2012 पाठ "Mathematics of Dhavala" की उपेक्षा की गयी (मदद) Translation of part of the Dhavala.
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