वीराना (1988 फ़िल्म)
वीराना (अंग्रेजी (उच्चारण); Veerana) (डरावने बीहड़) वर्ष १९८८ की प्रदर्शित एक भारतीय हाॅर्रर (डरावनी) फ़िल्म है, जिसका निर्माण रामसे बंधुओं ने किया था। इसे मारियो-बावा शैली में फ़िल्मांकन किया गया जिसके लिए रंगीन जैलों की मदद से डरावना वातावरण रचा जा सका। फ़िल्म का संगीत निर्देशन बप्पी लहरी ने किया था तथा गायकी में सुमन कल्याणपुर, मुन्ना अज़ीज और शैराॅन प्रभाकर शामिल रहे।
वीराना | |
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वीराना का पोस्टर | |
निर्देशक | रामसे बंधु (श्याम रामसे एवं तुलसी रामसे) |
अभिनेता |
हेमंत बिर्जे, साहिला चड्ढा, कुलभूषण खरबंदा, सतीश शाह, विजयेन्द्र घटगे, गुलशन ग्रोवर, रमा विज, राजेश विवेक, |
संगीतकार | बप्पी लहरी |
प्रदर्शन तिथि |
1988 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
सारांश
संपादित करेंफ़िल्म की शुरुआत एक युवा लड़के से होती है जिसे एक विशाल गुफा के पिंजरे में कैद रखा है। जो कुछ पुजारियों और गुंडे किस्म के लोगों से घिरा हुआ है। वह उनसे रिहाई की विनती करता है और पुछता है कि वे आखिर उनसे चाहते क्या है। पुजारी बताता है कि उन्हें सिर्फ उसका खून और गोश्त चाहिए ताकि नकिता को जीवित किया जा सके। उसी क्षण एक बेहद खूबसूरत युवती के रूप में एक डायन पहुँचती है और गुफा में दाखिल होती है। फिर वह अपने गले से चमगादड़नुमा लाॅकेट उतारती है और एक डरावनी शक्ल में बदलकर, उस शख्स को मार डालती है। ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह (कुलभूषण खरबंदा) को तब नजदीकी जंगल में चल रहे डायन नकिता (कमल राॅय) द्वारा दहशत व तबाही की खबर मालूम होती है। एक रात, उनकी छोटी बेटी उनके यहां आकर बताती है कि गाँव वालों को वहां एक लाश मिली है। वहां पहुँचने पर गाँव के लोगों से घिरे उस अंजान व्यक्ति की लाश देखने मिलती है। पुछने पर बताया गया कि ऐसा जंगल में अक्सर रहस्यमय ढंग से विचरने वाली औरत का काम हो सकता है। जिसे लोग डायन कहते हैं। मगर समीर ठाकुर ऐसे चुड़ैल व शैतानों को एक कोरा अंधविश्वास बताते हैं। पर उनमें से एक व्यक्ति के मुताबिक कुछ वर्ष पहले जब वह नजदीकी शहर से गाँव लौट रहा था, वह अपने रास्ते से भटक गया था और चलते-चलते वह जंगल में घुसते साथ वहां एक युवती को विचरते देख लेता है। जो एक चमगादड़ में बदल जाती हो और उसके चेहरे पर हमला करती है।[1]
महेंद्र प्रताप इस मामले की तहकीक़ात का निश्चय करते हैं। उनके छोटे भाई समीर प्रताप (विजयेंद्र घाटगे) इस डायन का शिकार करने की ठानते हैं। इधर उनकी पत्नी प्रीति अपनी बेटी और भतीजी का वास्ता देकर जाने से रोकती है। लेकिन अभी वह कुछ ही सीढ़ियाँ उतरे थे और महेन्द्र प्रताप बताते हैं कि उन्हें अपने भाई पर पूरा यकीन है और उनके पूर्वजों से जिनसे भी लोगों ने न्याय माँगी उनका पूरा सहयोग दिया। वे अपने भाई को बतौर तोहफा "ॐ" शब्द देते हैं और उसके सुभाग्य की कामना देते हैं। ज्यों ही समीर अपनी कार पर रवाना होकर जंगल से गुजरता है, उसे एक बेहद खूबसूरत युवती मिलती है जैसा कि उस देहाती ने उल्लेख कराया था। वह युवती समीर से कार पर लिफ्ट मांगती है। वह लोग एक पुरानी हवेली पहुँचते हैं जिसके पीछे ही जंगलों से घिरा एक झील मौजूद है। वह समीर को अपनी मादक अदाओं से फाँसती है और वह युवती साथ बाथटब में नहाने को रिझाती है। इस तरह उसका यह मन बहलाने वाला नाटक उसके साथ शारीरिक संबंध तक पहुँचता वह उसकी गर्दन से उस चमगादड़नुमा लाॅकेट खींच डालता है। इसके साथ ही उस लड़की का घिनौना रूप सामने आता हो जो खुद को डायन नकिता बताती है। समीर चूँकि उसकी कमजोरी जानता था और इसलिए वह उस "ॐ" के जरीए लाचार करा देता है। समीर प्रताप सिंह उस डायन को गाँव की सरहद तक लाते है और ठाकुर के आदेश पर स्थानीय लोग उसे फाँसी पर लटका देते हैं। वहीं एक तांत्रिक बाबा, अपने अनुचरों साथ किसी तरह देर रात लाश चुराकर वापिस मंदिर ले आते हैं, जहाँ उसे एक पत्थर के नक्काशीदार ताबुत में रखते है और प्रण लेते है कि उसे वे नया शरीर दिला कर रहेंगे। वह शरीर आखिर में ठाकुर महेन्द्र प्रताप की बेटी ही शिकार होती है।
कुछ दिन उनके खुशनुमा और शांत समय गुजरते रहते हैं, दोनों भाई घंटों अपनी खुशियों में मग्न रहते और समीर की पत्नी प्रीति भी अपनी नन्ही बच्चियों उनके देवर की बेटी यास्मीन और सगी बेटी साहिला की प्रेमपूर्वक समान रूप से परवरिश करती। आखिर में, एक रोज मुँह-सुबह के वक्त, छोटे ठाकुर साहब को अपनी भतीजी, यास्मीन को उन्हें मसूरी के बाॅर्डिंग स्कूल भेजने जाते हैं। पर जब वह लोग सुनसान जंगली वीराने से गुजरते है, कार का इंजिन गर्म पड़ जाता है और बंद होता है। अपने अंकल की बात मानते हुए छोटी यास्मीन कार पर ठहर इंतजार करती है और वह रेडियेटर के लिए पानी लेने चल पड़ते हैं। मगर तभी, वह तांत्रिक बाबा झाड़ियों की ओट से बाहर आकर, बच्ची को सम्मोहित करता है, और उसकी फ्राॅक का टुकड़ा और बालों की लट से एक गुड़िया बनाता है। फिर उस गुड़िया को काँच की बोतल को उस डायन की कब्र तक पहुँचाता है। वहीं कार में मौजूद यास्मीन भी सम्मोहन के प्रभाव में उस मंदिर की ओर चले जाती है। इस दरम्यान, समीर प्रताप पानी भरे कन्सतर साथ लौटते है और कार में बच्ची नदारद पाकर अचंभित होता है। वह निशानों का पीछा करता है और बाद में खुद को हैरान कर देने वाले ऐसे इलाके पहुँचता है जो घनी झाड़ियों से ढका हुआ था।वहीं दूसरी तरफ, यास्मीन उस शैतानों की मांद में दाखिल होती है और उस डायन के ताबुत निकट पहुँचती है। तभी आर्श्चयचकित क्षण में, वह डायन जाग जाती है और यास्मीन को अपने भीतर खींच लेती है। मौके पर पहुँचे समीर प्रताप बच्ची को बचाने की कोशिश करते है मगर ताबुत को खोलने में उनको देरी पड़ जाती है। उतने ही वक्त में, डायन की दुष्टात्मा अब यास्मीन के शरीर में समा जाती है। इतने में ही, समीर प्रताप अपनी भतीजी को बचाने की नाकामयाबी पर असहाय होते है जब उस तांत्रिक के आदमी उसे घेर लेते। उसे बंधक बनाया जाता है और मार दिया जाता है।
तांत्रिक वापिस यास्मीन को लेकर उसके पिता ठाकुर महेंद्र प्रताप के हवेली ले चलते है। तांत्रिक अपनी मनगढंत खबर में महेंद्र प्रताप के परिवार को बताता है उनका भाई जंगल में आए भयानक तुफान में फंस नदी में भटक कर मारा जाता है और स्वयं लापता हो जाता है। यास्मीन को उनके कमरे पहुँचाकर उसे सोने दिया जाता है, बड़े ठाकुर साहब अपने 2–3 नौकरो को उनके जिम्मे सौंपता है और सीढ़ियों के नीचे रुके उस तांत्रिक बाबा से मिलता है। बाबा अब ठाकुर से लौटने की इजाजत माँगता है लेकिन ठाकुर साहब उनसे रुकने की दर्खास्त करते है और यास्मीन की जान बचाने के एवज में उसे उसका सेवक बनाते है।हालाँकि, समीर प्रताप की पत्नी, (रमा विज), को यास्मीन का व्यवहार अस्वाभाविक लगता है। बच्ची के व्यवहार में आए बदलाव को लेकर उसकी चाची होने के नाते वह अपने भाईसुर से उनकी बेटी में हुए अनोखे परिवर्तन के बारे में बताती है और यास्मीन ईलाज के लिए किसी झाड़-फूँक वाले या डाॅक्टर की सेवा लेने को मनाती है। हालाँकि, वह डायन, जो बच्ची में धर कर चुकी थी, इन बातों को सुन लेती है और देर रात को अपनी चाची प्रीति को यास्मीन के कमरे की छतवाले पंखे पर लटका कर मार देती है। महेंद्र प्रताप ठाकुर, इस घटना से दहल उठते हैं, वे अपनी अनाथ हो चुकी छोटी भतीजी साहिला को, मुंबई उसकी नानी घर भेजने का निश्चय करते हैं ताकि वहां वह सुरक्षित रह सके और इस मनहूस परिस्थितियों से दूर रहे।
12 सालों बाद, बड़े ठाकुर को उनकी भतीजी की तरफ से उसका खत मिलता है। उन्हें यह जानकर बेहद खुशी होती है वह अपने मध्यवर्ती इम्तहान में अव्वल श्रेणी में पास हुई है। वहीं गुजरते समय के साथ, बड़ी होती यास्मीन भी एक बेहद खूबसूरत युवती में बदल जाती है जो ज्यादातर अपने बंद कमरे में रहती और कभी-कभार तो जंगलों में भटकती रहती। उसका स्वभाव बहुत मूडी हो चुका था और अपनी ही दुनिया में खोई रहती, जिसकी वजह से उसके पिता सारा वक्त चिंतित रहते। ठाकुर साब अपनी भतीजी के इम्तहान में सफल होने की बात बाबा को बताते हैं और उनका बड़ा मन है कि वह अपनी गर्मियों की छुट्टियां चंदन नगर में गुजारने को बुलवाए। बाबा दूसरी तरफ अपने दैत्य सरीखे विश्वासी नौकर ज़िम्बारू को उनकी भतीजी, साहिला को अगुवा करने भेजते हैं ताकि वह अपने पैतृक निवास पहुंचने ही ना पाएँ। और तब ज़िम्बारू, साहिला की कार पर धावा बोलता है और उसके पीछे पड़ जाता है।उसका दूसरा चचेरा भाई सतीश, (सतीश शाह) मदद की गुहार लगाता है। वहीं पर तब हीरो की तरह हेमंत (हेमन्त बिरजे) नाम का बलवान युवक का प्रवेश होता है, और इस मुसीबत में फँसी लड़की को बचाने पहुँच जाता है। वह उस ज़िम्बारू और उसके गुंडों को खदेड़ डालता है और साहिला को बचा लेता है।
उधर वापिस गाँव पर, यास्मीन सिटी पेट्रोल के एक नौजवान मैकेनिक (विजय अरोरा) से मिलती है जो एक कुशल कार मिस्त्री है और कार की मरम्मत बड़ी दक्षता से करता है। वह उससे बेहद प्रभावित होती है और पुरानी हवेली की पीछे झील किनारे देर रात पिकनिक मनाने का न्यौता देती है। जब वह शख्स वहां पहुँचता है, वह उसकी खिदमत करती है और दोनों साथ में जाम पीते हैं और खाना खाते हैं। इस बढ़ी हुई खुमारी के साथ, वह शख्स अब यास्मीन को पाने बेचैन होता है और इसी आतुरता वह दोनों उस रात हमबिस्तर होते हैं। (यहां यास्मीन के उभरे हुए नितंबों के दर्शाए जाने कारण फ़िल्म को 'ए' (वयस्क) प्रमाणन पत्र मिलता है।) आधी रात के कुछ वक्त बाद, उस शख्स की चेतना लौटती है और जाग जाता है। वह यास्मीन की रंगहीन हो चुकी आँखें देख सिहर उठता है और पाता है कि उसकी पलके भी झपक नहीं रही। वह भागने की कोशिश करता है लेकिन वह दुबारा बिस्तर पर गिर पड़ता है। तब लड़की में बसी डायन के नियंत्रण में, अपने चाँदी की कटार लेकर उस आदमी को जिबह कर मार डालती है। यास्मीन मुँह अंधेरे ही जल्दबाजी में घर लौटती है। उस शख्स की लाश पुलिस को अगली सुबह बरामद होती है और पर उसकी शिनाख्त नहीं हो पाती, और इसकी तहकीक़ात भी रोक दी जाती है। उधर इस सफर में हेमंत और साहिला करीब आते हैं और दोनों साथ ही हवेली पहुँचते हैं। ठाकुर महेंद्र प्रताप को साहिला के घर आने पर बेहद खुशी महसूस होती है और जब उनको मालूम होता है उसकी मुसीबत में हेमंत उसे बचाने पहुँचा था, आकर्षक और बहादुर युवक की इस प्रशंसा से वो भी प्रभावित हुए बिना रह नहीं पाते और उसे अपने लकड़ी के कारखाने पर एक महत्वपूर्ण पद पर काम दिलाते हैं। वह हेमंत को अपने बेटे समान ही पारिवारिक सदस्यों का हिस्सा बना लेते हैं।[2]
बावजूद, रहस्यमय हत्याओं का सिलसिला जारी रहता है। ऐसे ही एक शाम, यास्मीन एक नशे में धुत व्यक्ति से कार की लिफ्ट मांगती है और तब, कुछ फासले पर, डायन की आत्मा उस व्यक्ति की गर्दन फाड़ कर मार डालती है। एक रात, साहिला अपनी दीदी यास्मीन से उनके पुराने कमरे में साथ सोने की इच्छा जताती है और जल्द ही उसे मालूम पड़ता है कि वहां कुछ अजीब हो रहा है, वह अपनी दीदी से भयभीत होती है और अपने अंकल महेन्द्र प्रताप और हेमंत से इसका जिक्र करती है। ठाकुर महेंद्र प्रताप तय करते हैं कि वह अपनी बेटी यास्मीन के, मानसिक मूल्यांकन के लिए अपने दोस्त से मिलेंगे जो स्वयं एक मनोवैज्ञानिक है। डाॅक्टर अपनी सम्मोहन विद्या से, यास्मीन के अतीत में घटित घटनाओं का ब्योरा लेते हैं और वो तब वह बिलकुल अलग ही शख्सियत में बदल जाती है। उसकी बोली बदल जाती है और धमकी भरे लहजे में कहती है कि वह ठाकुर खानदान के हरेक सदस्य को मारकर अपना बदला लेकर रहेगी। ठाकुर महेंद्र प्रताप शुरुआत में डाॅक्टर की बातों पर यकीन नहीं करते, लेकिन डाॅक्टर द्वारा रिकॉर्ड किए गए रिकॉर्डर टेप सुनने पर उनको विश्वास हो जाता है, कि उनकी बेटी पर उस दुष्टात्मा का साया पड़ चुका है। बावजूद, ठाकुर के खानदान से पुराने संबंध और गहरी दोस्ती के नाते, डाॅक्टर उनसे वायदा करता है कि वह जरूर ठहरेगा और उनकी बच्ची का ईलाज करके रहेगा। वहीं डाॅक्टर पहले तो साहिला के दोस्त हेमन्त से यास्मीन के करीब आने की नाटक रचने को कहते है ताकि सच्चाई पर रोशनी डाली जा सके मगर यह प्रयास भी व्यर्थ चला जाता है। तथापि, एक रात, उनको यास्मीन के कमरे से अजीबो गरीब साए और धुएँ आते दिखते है, डाॅक्टर उस तरफ चल पड़ता है और उनको उस डायन का निहायत ही खौफनाक सूरत देखने मिलता है। वह ठाकुर साहब से इस बारे में आगाह करते है मगर वो ही उनकी बातों पर भरोसे से इंकार करते हैं। डाॅक्टर तब अपनी जान बचाने वास्ते उनके घर से भाग निकलते हैं, मगर उसी राह में घर का खानसामा रघु (गुलशन ग्रोवर) [3] भी उसका मजाक उड़ाता करता है जब हवेली छोड़ रहा था। इस हड़बड़ाहट में, डाॅक्टर रघु को भी परे हटाते हुए हवेली से निकल जाता है जहाँ बालकनी पर मौजूद यास्मीन के चेहरे पर बहुत अजीब ढंग से विजयी मुस्कान चमकती है।
वहीं डाॅक्टर गाँव के रास्ते अपनी कार को खतरनाक ढंग से भगाता है, इस जल्दबाजी के उलझन में, वह एक पेड़ से टकराता है और खुद को उस जंगल में अकेला पाता है। वह डायन, जो वहां लेटी उसके पहुँचने के इंतजार कर रही थी, अचानक ही काले साए की तरह प्रकट होती है और डाॅक्टर भी होश में आने उसे देखकर भय से आँखें फट पड़ती है, फिर उसके शरीर को बेधते हुए बड़ी क्रुरता से मार डालती है।
उधर वह नौकर रघु, भी अगला शिकार होता है। जब वह डायन से खौफजदा होकर हवेली जाने के बजाय कारखाने में रात बिताने का मन बनाता है और उसी रात उसकी मौत होती है। तब हेमंत और साहिला व उसका चचेरे भाई सतीश इस मुसीबत को खत्म करने का विचार करते हैं, जिसमें बाबा के मुद्दों को भी उठाया गया। हेमंत तब उस बाबा का पीछा करने का निश्चय करता है जहाँ साहिला के साथ छिपकर निकलता है। इस तरह पीछा करते हुए वह लोग वीराने तक पहुँच जाते हैं। मगर जल्द ही वह लोग पकड़े जाते है और साहिला को अपने पिता समीर प्रताप को जिंदा देख खुशी होती है। सतीश, ऐन वक्त में पहुँच जाता है, जो विराने तक पीछा करता हुआ उनकी जान भी बचाता है। और तब, समीर सीधे अपने घर भाई साब से मिलने बच्चों संग चल पड़ते हैं। ठाकुर महेंद्र अपने प्रिय भाई को सही सलामत पाकर बेहद रोमांचित होते हैं।
तब साहिला और हेमंत उस बाबा से जुड़े साजिशों का बयान देते है और समीर अपने भाई को सूचित करते हैं कि बाबा ने सिर्फ यास्मीन के शरीर में उस दुष्ट डायन की आत्मा को पनाह देने में मदद की है और अब वही रातों की खतरनाक मुसीबत बन चुकी है।
इसी मध्यांतर में, बाबा अमावस्या की रात यास्मीन की जान लेने की योजना बनाते है ताकि डायन को दुबारा जीवित किया जाए और अमर किया जाए। वह यास्मीन को हवेली से उठाकर शैतानी मांद ले चलता है और उसकी बलि चढ़ाने के लिए हवन-यज्ञ का इंतजाम करता है। पर जल्द ही उसका परिवार उस क्षण तक पहुँच जाता है। फिर यास्मीन के शरीर से डायन को छुड़ाने के लिए वे उस बोतल में बंद अभिमंत्रित वुडू गुड़िया नष्ट कर डालते है। मगर, इस बदकिस्मती से, बड़े ठाकुर को अपनी बेटी की खुशियों और लंबे वक्त तक चले जीवन की लड़ाई वह हार बैठते है। परिवार लगभग क्षणिक शोक में डूब ही जाता है और तभी न जाने, वह डायन बेहद कपटपुर्ण ढंग से अपने शरीर समेत जाग उठती है, मगर पवित्र 'ॐ' के चिन्ह से वे उसे दुबारा कब्र में बंद भी करा डालते हैं।
तब ठाकुर परिवार और सारे गाँव वाले उस ताबुत को भगवान शिव के मंदिर ले चलते हैं। ताबुत को मंदिर भीतर प्रांगण में लाया जाता है और समीर प्रताप उसे हेमंत की मदद से खुलवाते हैं। दोनों लड़कियों को बाहर ही रखा जाता है। डायन अपने ताबुत से बाहर आती है और खुद को भगवान महाशिव के सामने पाकर भयभीत हो उठती है। वह दर्द से चीख पड़ती है, और मंदिर से भागने की कोशिश करती है मगर अपनी सारी शक्तियाँ गँवा बैठती है और जमीन पर पछाड़कर गिर पड़ती है। कुछेक पलों बाद, वह जलने लगती है और लगभग हमेशा के लिए नष्ट हो जाती है। इस तरह बचे हुए ठाकुर परिवार और हेमंत एक नई एवं सुखद जीवन की शुरुआत करते हैं।[4]
भूमिकाएँ
संपादित करें- हेमंत बिर्जे - हेमंत, साहिला का ब्वायफ्रैंड जो बाद में ठाकुर परिवार की सहायता करता है
- यास्मीन - यास्मीन महेन्द्र प्रताप, ठाकुर महेन्द्र प्रताप की एकमात्र संतान जिसपर डायन का साया पड़ जाता है।
- साहिला चड्ढा - साहिला प्रताप, समीर प्रताप की बेटी
- कुलभूषण खरबंदा - ठाकुर महेंद्र प्रताप, यास्मीन के पिता
- सतीश शाह - सतीश, साहिला के चचेरे भाई जिनको डरावनी फ़िल्मों एवं कहानियों की खोज की सनक रहती है।
- विजयेंद्र घटगे - ठाकुर समीर प्रताप, साहिला के पिता
- गुलशन ग्रोवर - रघु, खानसामा
- रमा विज - प्रीति एस. प्रताप
- राजेश विवेक - तांत्रिक बाबा, मुख्य षड्यंत्रकारी और डायन नकिता का सेवक
- लीला मिश्रा - समीर प्रताप की सासु माँ और साहिला की नानी
- विजय अरोड़ा - पेट्रोल कर्मी और कार मैकेनिक
- नरेन्द्र नाथ - डाॅक्टर अंकल
- टीना घई - यास्मीन की संरक्षिका
- राजेंद्र नाथ - मैनेजर (थकेला अतिथि आवास के)
- वैष्णवी महंत - किशोर यास्मीन
- कमल राॅय - डायन नकिता
- प्रदीप चौधरी
- प्रकाश
- भूषण तिवारी
- गोरिल्ला - ज़िम्बारू
- शमशुद्दीन
- अजय चड्ढा
- छोटू उस्ताद - थकेला गेस्ट हाउस का मालिक
निर्माण दल
संपादित करें- निर्देशक – रामसे बंधु(श्याम रामसे, तुलसी रामसे)
- प्रबंधक एवं निर्माता — कांता रामसे
- प्रायोजक — एफ. यु. रामसे
- संगीत निर्देशन – बप्पी लहरी, अनील अरुण
- गीत — अंजान इंदिवर
- संवाद — ओमर खय्याम
- कला निर्देशक — टी. के. देसाई
- वेशभूषा डिजाइनर— मदनलाल, मणि राबड़ी
- ऑडियोग्राफी— कुलदीप सूद, महबूब
- नृत्य निर्देशन — किरण कुमार,
- एक्शन निर्देशन — गुलाब राव
- प्रचारक — प्रभाकर
- पार्श्वगायक — मुन्ना, सुमन कल्याणपुर
- एसोसिएशेट निर्देशक – अर्जुन रामसे
- एसोसिएशेट छायाकार — हेमंत शर्मा
संगीत
संपादित करें- "साथी तु कहाँ है" - सुमन कल्याणपुर
- "साथी तु कहाँ है (उदास)" - सुमन कल्याणपुर
- "दिल की धड़कन क्या कहे, अपने दिल से पुछ ले" - शैराॅन प्रभाकर, शब्बीर कुमार, मोहम्मद अज़ीज़
- " साथी तु कहाँ है (द्वितीय संस्करण)" - सुमन कल्याणपुर
रिमेक
संपादित करेंवर्ष 2013 में, रामसे बंधुओं ने फ़िल्म वीराना को 3डी फाॅर्मेट में प्रदर्शित करेंगे।[5]
This is very hoorer movie and then time 1988 movie release in india public is very fear in cinema hall
परिणाम
संपादित करें=== बौक्स ऑफिस === उस टाइम के हिसाब से वीराना ने बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 100 कोरोर था
समीक्षाएँ
संपादित करेंनामांकन और पुरस्कार
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 3 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 सितंबर 2016.
- ↑ "IMDb". मूल से 16 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 सितंबर 2016.
- ↑ "IMDb". मूल से 3 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 सितंबर 2016.
- ↑ "IMDb". मूल से 11 नवंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 सितंबर 2016.
- ↑ KBR, Upala. "Veerana to haunt again!". DNA India. मूल से 27 जून 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 June 2013.