वीर बल्लाल २ (होयसल साम्राज्य) (1173 - 1220) ने प्रतीच्य चालुक्य पराजय कर नये राज्य की नींव रखी।

विष्णुवर्धन का पौत्र एवं नरसिंह प्रथम का पुत्र वीर बल्लाल होयसल वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा हुआ। वह 12वीं सदी के अंतिम भाग में द्वारसमुद्र के राज्य का स्वामी बना था। इसने अमृतेश्वर मन्दिर भी बनवाया था। इसके समय में कल्याणी के चालुक्यों की शक्ति बहुत क्षीण हो गयी थी और दक्षिणापथ में उनका स्थान देवगिर के यादवों ने ले लिया। 1187 ई0 में यदुवंशी राजा भिल्लम ने अंतिम चालुक्य राजा सोमेश्वर चतुर्थ को परास्त कर कल्याणी पर अधिकार कर लिया। अतः जब वीर बल्लाल ने उत्तर की ओर अपनी शक्ति का विस्तार शुरू किया तो उसका संघर्ष प्रधानतया देवगिरि शासक यादव राजा भिल्लम पंचम के साथ ही हुआ। वीर बल्लाल, देवगिरि के शासक भिल्लम पंचम को परास्त करने में समर्थ हुआ और भिल्लम पंचम ने रणक्षेत्र में ही वीरगति प्राप्त की। 1192-93 ई0 में बल्लाल द्वितीय ने अपनी स्वाधीनता घोषित कर सम्राट सूचक उपाधियां धारण की। 1220 ई0 के लगभग वीर बल्लाल की मृत्यु हो गयी।

वीर बल्लाल ने अपनी मृत्यु से पूर्व ही अपने पुत्र नरसिंह द्वितीय को होयसलों के सुदृण एवं विस्तृत साम्राज्य का अधिपति बना दिया था। इसके शासन काल में यादवों तथा पांड्यों से निरन्तर संघर्ष चलता रहा। होयसलों का उत्कर्ष देर तक कायम नहीं रह सका। प्रतापी यादव राजा सिंघण (1210-1247 ई0) ने अपने पितामह के अपमान और पराजय का परिशोध करने के लिए होयसालों पर आक्रमण किया और उनके प्रदेशों को विजय कर लिया। इस समय होयसाल-राज्य के राजसिंहासन पर राजा नरसिंह द्वितीय विराजमान था जो वीर बल्लाल का पुत्र था । नरसिंह द्वितीय के उत्तराधिकारी होयसल राजाओं का इतिहास अंधकार में है। नरसिंह द्वितीय यादवों के विरुद्ध कभी भी सफल न हो सका । इस प्रकार 1234-35 ई0 तक होयसल वंश की प्रतिष्ठा को सुरक्षित करते हुए नरसिंह द्वितीय जीवित रहा ।