वैदिक आर्य सिद्धान्त

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यह सिद्धन्त वेदिस्तान नामक हिंन्दू राष्ट्रवादी लहूराष्ट्र के सम्राट हर्षवर्धन ने अपने ४ वर्षो की कडे़ अनेसंधान के बाद स्थापित किया। यह सिद्धान्त अंग्रेजो़ और अन्य भारत विरोधी इतिहासकारो का भांडा फोडने का दावा करता है।

सिद्धान्त

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इस सिद्धान्त के अनुसार सिंधु नदि सभ्यता के तथा कथित द्रविड लोगो और उत्तर भरत के तथा कथित आर्यो मे कोई फर्क नहीं है। इस के अनुसार भारतीय सभ्यता एक है जो कई नदियो के सहारे से पनपी। सिन्धू नदि घाटी इलाके मे ज्यादातर अनाज सरस्वती नदि इलाके से आता था। जब ५००० वर्ष पहले सरस्वती सतलुज के बहाव मे परिवर्तन आने के कारण विलुप्त हो गई तब सिन्धू-सरस्वती इलाके मे खद्य सम्सया उत्पन्न हुई। ज्यादातर सरस्वती इलाके के लोग दक्षिण भारत मे प्रवास करते हैं। इस का मुख्य कारण यह था कि सरस्वती नदि इलाके के लोगो को पता था कि पश्चिम के तरफ प्रवास का कोई फायदा नहीं, वे जानते थे की सिन्धू नदि इलाके का भी कोई बड़िया हाल नहीं है। और वे दक्षिण भारत मे बारे मे सिन्धू नदि के पश्चिम की दुनया से ज्यादा जानते थे। यह लोग आज के तथा कथित द्रविद हैं। सिन्धू नदि इलाके मे परिदृश्य कुछ अलग था। यह एक व्यापारिक केन्द्र था। यहाँ पर जिवन बहुत ही विकसित था। यहाँ पर रहने वाले लोगो को पश्चिम एसिया की दुनिया के बारे मे दक्षिण भारत से ज्यादा जानकारी थी।