वेल्लनाडू

वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई से प्रकाशित 'जाति-भास्कर' ग्रन्थ के अनुसार " उत्कल के दक्षिण, द्राविड के उत्तर, कर्णाटक के पूर्वोत्तर, महाराष्ट्र के पश्चिम, अर्थात श्रीशैल से चोला स्थान के मध्य, तैलंग-प्रदेश है!"[1] नाथद्वारा के प्रसिद्ध विद्वान और विद्याविभाग प्रमुख पोतकूर्ची पं. कंठमणि शास्त्री के शब्दों में- " तैलंग प्रदेश में तैलंग ब्राह्मणों के अनेक भेद हैं। जो ब्राह्मण परदेश से आ कर बसे थे, वे 'वेल्लनाटी' अथवा 'वेलनाडि' नाम से प्रसिद्द हुए.... व्रेल=बाहरी भाग, नाडू=देश." बाद में यही 'वेल्लनाटी' वेल्लनाडू कहलाए।[2]

  1. https://www.exoticindiaart.com/book/details/jati-bhaskar-nzi618/
  2. 'उत्तर भारतीय आन्ध्र-तैलंग-भट्ट-वंशवृक्ष' (भाग-२) संपादक स्व. पोतकूर्ची कंठमणि शास्त्री और करंजी गोकुलानंद तैलंग द्वारा 'शुद्धाद्वैत वैष्णव वेल्लनाटीय युवक-मंडल', नाथद्वारा से वि. सं. २००७ में प्रकाशित