वैदिक गणित (पुस्तक)

वैदिक गणित
(वैदिक गणित से अनुप्रेषित)

वैदिक गणित, जगद्गुरू स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ द्वारा सन १९६५ में विरचित एक पुस्तक है जिसमें अंकगणितीय गणना की वैकल्पिक एवं संक्षिप्त विधियाँ दी गयीं हैं। इसमें १६ मूल सूत्र ,तथा 13 उपसूत्र दिये गये हैं। वैदिक गणित गणना की ऐसी पद्धति है, जिससे जटिल अंकगणितीय गणनाएं अत्यंत ही सरल, सहज व त्वरित संभव हैं।

वैदिक गणित
भाषाहिन्दी
विषयमानसिक गणना
प्रकाशकमोतीलाल बनारसीदास
प्रकाशन तिथि1965
प्रकाशन स्थानभारत
आई.एस.बी.एन978-8120801646
ओ.सी.एल.सी217058562

स्वामीजी ने इसका प्रणयन बीसवीं सदी के आरम्भिक दिनों में किया। स्वामीजी के कथन के अनुसार वे सूत्र, जिन पर ‘वैदिक गणित’ नामक उनकी कृति आधारित है, अथर्ववेद के परिशिष्ट में आते हैं। परन्तु विद्वानों का कथन है कि ये सूत्र अभी तक के ज्ञात अथर्ववेद के किसी परिशिष्ट में नहीं मिलते। हो सकता है कि स्वामीजी ने ये सूत्र जिस परिशिष्ट में देखे हों वह दुर्लभ हो तथा केवल स्वामीजी के ही संंज्ञान में हो। वस्तुतः आज की स्थिति में स्वामीजी की ‘वैदिक गणित’ नामक कृति स्वयं में एक नवीन वैदिक परिशिष्ट बन गई है।

वैदिक गणित के १६ सूत्र

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स्वामीजी के एकमात्र उपलब्ध गणितीय ग्रंथ ‘वैदिक गणित' या 'वेदों के सोलह सरल गणितीय सूत्र’ के बिखरे हुए सन्दर्भों से छाँटकर डॉ॰ वासुदेव शरण अग्रवाल ने सूत्रों तथा उपसूत्रों की सूची ग्रंथ के आरम्भ में बनायी है। इस सूची का विस्तारित रूप नीचे दिया गया है-[1]

क्रमांक सूत्र उपसूत्र सूत्र का शाब्दिक अर्थ उपयोग के क्षेत्र/उदाहरण[2]
1 एकाधिकेन पूर्वेण आनुरूप्येण पहले वाले से एक अधिक के द्वारा ५ से अन्त होने वाली संख्या का वर्ग निकालना
 
2 निखिलं नवतश्चरमं दशतः शिष्यते शेषसंज्ञः सभी को ९ से तथा अन्तिम वाले को १० से ऐसी संख्याओं क गुणन जो 10, 100, 1000 आदि के निकट हों
3 ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् आधमाधेनान्त्यमन्त्येन सीधे और तिरछे (Vertically and crosswise) दोनों विधियों से किन्ही भी दो बड़ी संख्याओं के गुणन के लिये
4 परावर्त्य योजयेत् केवलैः सप्तकं गुण्यात् विपरीत उपयोग करें जब भाजक (divisor) 10 से बड़ा हो
5 शून्यं साम्यसमुच्चये वेष्टनम् समुच्चय समान होने पर शून्य होता है। किसी रैखिक समीकरण में 'x' का मान निकालने के लिये
6 (आनुरूप्ये) शून्यमन्यत् यावदूनं तावदूनं अनुरूपता होने पर दूसरा शून्य होता है To find out the product of two number when both are near the
7 संकलनव्यवकलनाभ्याम् यावदूनं तावदूनीकृत्य वर्गं च योजयेत् जोड़कर और घटाकर 𝑎𝑥 + 𝑏𝑦 = 𝑝 तथा 𝑐𝑥 + 𝑑𝑦 = 𝑞, में x और y का मान ज्ञात करने हेतु
8 पूरणापूरणाभ्याम् अन्त्ययोर्द्दशकेऽपि पूरा करने और अपूर्ण करने की क्रिया द्वारा बहुपद को पूरा करके उसका गुणनखण्ड ज्ञात करना
9 चलनकलनाभ्याम् अन्त्ययोरेव चलन-कलन की क्रियाओं द्वारा द्विघात समीकरण 7𝑥2 – 11𝑥 – 7 =0 के मूल निकालने के लिये
10 यावदूनम् समुच्चयगुणितः जितना कम है 10 के किसी गुणक संख्या का वर्गमूल निकालने के लिये
11 व्यष्टिसमष्टिः लोपनस्थापनाभ्यां एक को पूर्ण और पूर्ण को एक मानते हुए यह परावर्त्य सूत्र का उपयोग करके किसी बहुपदी समीकरण का हल निकालता है।
12 शेषाण्यंकेन चरमेण विलोकनं अंतिम अंक के सभी शेषों को साधारण भिन्न को दशमलव भिन्न में बदलने के लिये
13 सोपान्त्यद्वयमन्त्च्यम् गुणितसमुच्चयः समुच्चयगुणितः अंतिम तथा उपान्तिम का दुगुना एक विशिष्ट प्रकार के सरल बीजगणितीय समीकरण के सरलीकरण के प्रकरण में जिसमें हर समान्तर श्रेणी में होते हैं।
14 एकन्यूनेन पूर्वेण ध्वजांक पहले वाली (सांख्या ) से एक कम के द्वारा जटिल गुणन और घटाव की समस्याओं को सरल बनाने के लिए ; ध्यातव्य है कि यह सूत्र सर्वत्र लागू नहीं किया जा सकता।[3]
15 गुणितसमुच्चयः द्वन्द्व योग गुणितों का समुच्चय For the quadratic equation, in order to verify the result, the product of the sum of the coefficients of x in the factors is equal to the sum of the coefficients of x in the product.
16 गुणकसमुच्चयः आद्यं अन्त्यं मध्यम् गुणकों का समुच्चय For quadratic equation, the factor of the sum of the coefficients of ‘x’ in the product is equal to the sum of the coefficients of ‘x’ in the factors.

वैदिक गणितीय सूत्रों की विशेषताएँ

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  • (1) ये सूत्र बहुत आसानी से समझ में आ जाते हैं। उनका अनुप्रयोग सरल है तथा आसानी से याद भी हो जाते हैं। सारी प्रक्रिया मौखिक हो जाती है।
  • (2) ये सूत्र गणित की सभी शाखाओं के सभी अध्यायों में सभी विभागों पर लागू होते हैं। शुद्ध अथवा प्रयुक्त गणित में ऐसा कोई भाग नहीं जिसमें उनका प्रयोग न हो। अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित, समतल तथा गोलीय त्रिकोणमिति, समतल तथा घन ज्यामिति (वैश्लेषिक), ज्योतिर्विज्ञान, समाकल तथा अवकल कलन आदि सभी क्षेत्रों में वैदिक सूत्रों का अनुप्रयोग समान रूप से किया जा सकता है। वास्तव में स्वामीजी ने इन विषयों पर सोलह कृतियों की एक शृंखला का सृजन किया था, जिनमें वैदिक सूत्रों की विस्तृत व्याख्या थी। दुर्भाग्य से सोलह कृतियाँ प्रकाशित होने से पूर्व ही काल-कवलित हो गईं तथा स्वामीजी भी ब्रह्मलीन हो गए।
  • (3) कई चरणों की प्रक्रियावाले जटिल गणितीय प्रश्नों को हल करने में प्रचलित विधियों की तुलना में वैदिक गणित विधियाँ काफी कम समय लेती हैं।
  • (4) छोटी उम्र के बच्चे भी सूत्रों की सहायता से प्रश्नों को मौखिक हल कर उत्तर बता सकते हैं।
  • (5) वैदिक गणित का सम्पूर्ण पाठ्यक्रम प्रचलित गणितीय पाठ्यक्रम की तुलना में काफी कम समय में पूर्ण किया जा सकता है।

कुछ सूत्रों का परिचय

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एकाधिकेन पूर्वेण(गुणा का सरल स्वदेशी तरीका)

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इस सूत्र का शाब्दिक अर्थ है : 'पहले वाले की तुलना में एक अधिक से'। यह सूत्र 1/x9 (जैसे.: 1/19, 1/29, आदि) का मान निकालने के लिये बहुत उपयोगी है। यह सूत्र गुणा करने वाले और भाग करने वाले दोनो प्रकार के अल्गोरिद्म में उपयोग में लिया जा सकता है।

मान लीजिए कि 1/19 का मान निकालना है, अर्थात् x = 1 . गुणन अल्गोरिद्म का उपयोग करने के लिये (यह दाएँ से बाएँ काम करता है) भाज्य (dividend) 1 ही परिणाम का सबसे दायाँ अंक होगा। इसके बाद इस अंक को 2 से गुणा करें (अर्थात् x + 1) और गुणनफल को बाएँ लिखें। यदि गुणनफल 10 से अधिक आये तो (गुणनफल – 10) को लिखें और "1" हासिल बन जाता है जिसे अगली बार गुणा करने पर सीधे जोड़ दिया जायेगा।

'एकाधिकेन' और 'पूर्वेण' में तृतीया विभक्ति (करण) है जो यह संकेत करती है कि यह सूत्र गुणा या भाग पर आधारित है। क्योंकि योग और घटाना में द्वितीया या पंचमी विभक्ति (to और from) आती।

इस सूत्र का एक रोचक उपयोग पाँच (५) से अन्त होने वाली संख्याओं का वर्ग निकालने में किया जा सकता है, जैसे:

35×35 = ((3×3)+3),25 = 12,25 and 125×125 = ((12×12)+12),25 = 156,25

या 'एकाधिकेन पूर्वेण' का प्रयोग करते हुए,

35×35 = ((3×4),25 = 12,25 and 125×125 = ((12×13),25 = 156,25

उपपत्ति (Proof)

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यह सूत्र   जहाँ   और  , पर आधारित है, अर्थात्

 

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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