शशांक, बंगाल का शैव सम्राट था जिसने सातवीं शताब्दी के अंतिम चरण में बंगाल पर शासन किया। वह बंगाल का पहला महान् राजा था। उसने गोर / गौड़ राज्य की स्थापना की।

मालवा के राजा देवगुप्त से दुरभिसंधि करके हर्षवर्धन की वहन राज्यश्री के पति कन्नौज के मौखरी राजा ग्रहवर्मन को मारा। तदनंतर राज्यवर्धन को धोखे से मारकर अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयत्न किया। पर जब राज्यवर्धन के कनिष्ठ भ्राता ने उसका पीछा किया तो वह बंगाल चला गया।

अंतिम गुप्त सम्राटों की दुर्बलता के कारणजो स्वतंत्र राज्य हुए उनमें गौड़ या उत्तरी बंगाल भी था। जब महासेन गुप्त सम्राट हुआ। उसकी दुर्बलता से लाभ उठाकर शशांक गोर ने गोर देश में स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। उस समय शशांक महासेन गुप्त का सेनापति था। उसने कर्णसुवर्ण को अपनी राजधानी बनाई। आजकल कर्णसुवर्ण के अवशेष मुर्शिदाबाद जिले के गंगाभाटी नामक स्थान में पाए गए हैं।

शशांक गोर के जीवन के विषय में निश्चित रूप से इतना ही कहा जा सकता है कि वह महासेन गुप्त का सेनापति नरेंद्रगुप्त था- महासामंत और शशांक उसकी उपाधियाँ हैं। उसने समस्त बंगाल और बिहार को जीत लिया तथा समस्त उत्तरी भारत पर विजय करने की योजना बनाई।

शशांक हिन्दू धर्म को मानता था और बौद्ध धर्म का कट्टर शत्रु था। इसकी प्रतिक्रिया यह हुई कि शशांक के बाद बंगाल और बिहार में पाल वंशीय राजाओं ने प्रजा की सम्मति से नया राज्य स्थापित किया और बौद्ध धर्म को एक बार फिर आश्रय मिला। 'शशांक' पर प्रसिद्ध इतिहावेत्ता राखालदास बंद्योपाध्याय ने एक बड़ा ऐतिहासिक उपन्यास लिखा है। शशांक ने विजयाकिर्ती नामक एक कन्या का अपहरण कर लिया जो कि सय्यीद साम्राज्य की राजकुमारी थी। शशांक के मृत्यु के बाद विजयाकिर्ती ने एक पल्लव साम्राज्य के किसी एक राजा से विवाह किया। कही उपन्यास बतातें हैं शशांक विजयाकिर्ती से बहुत प्यार करते थे और उनको एक ही पत्नी थी।

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