शहरीकरण का प्रभाव भारतीय जनजातीय समुदायों पर

शहरीकरण का प्रभाव भारतीय जनजातीय समुदायों पर

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भारत में शहरीकरण एक गहरे सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन का कारण बन रहा है। इसके प्रभाव ग्रामीण और आदिवासी इलाकों पर गहरे और दूरगामी होते हैं।[1] भारतीय जनजातीय समुदाय की जीवनशैली, जो सदियों से पारंपरिक कृषि, जंगलों पर निर्भरता, और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग पर आधारित रही है, शहरीकरण के कारण तेजी से बदल रही है। इस लेख में हम शहरीकरण के प्रभावों को विस्तृत रूप से समझेंगे, जो भारतीय जनजातीय समुदाय की पारंपरिक जीवनशैली, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, और सामाजिक संरचनाओं पर पड़ रहे हैं।[2]

शहरीकरण की प्रक्रिया और जनजातीय समुदायों का विस्थापन

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शहरीकरण का सबसे बड़ा प्रभाव भारतीय जनजातीय समुदाय पर भूमि अधिग्रहण और विस्थापन के रूप में पड़ा है। औद्योगिकीकरण, शहरी विस्तार और विकास परियोजनाओं के कारण जनजातीय समुदायों को उनके पारंपरिक आवास स्थलों से विस्थापित होना पड़ रहा है। जंगलों, नदी किनारे, और पहाड़ी क्षेत्रों में बसे ये समुदाय अब अपनी भूमियों से बेदखल हो रहे हैं। भूमि अधिग्रहण के परिणामस्वरूप इन समुदायों की जीविका के स्रोत जैसे कृषि, शिकार, और प्राकृतिक संसाधन समाप्त हो रहे हैं, जो उनकी संस्कृति और परंपराओं के लिए आवश्यक थे। विस्थापन के कारण इन समुदायों को पुनर्वास के लिए नए स्थानों पर भेजा जा रहा है, जहां उन्हें नए परिवेश, संसाधन और सामाजिक संरचनाओं से तालमेल बिठाने में कठिनाइयाँ हो रही हैं। कई बार, इन पुनर्वास क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं की कमी होती है, जिससे इन समुदायों को अपने जीवनस्तर को बनाए रखने में दिक्कत होती है। उनका परंपरागत ज्ञान और कौशल भी इन नए परिवेशों में अनुपयोगी हो जाता है, जिससे उनकी जीवनशैली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

शहरीकरण के कारण सांस्कृतिक पहचान पर असर

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भारतीय जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक पहचान उनके पारंपरिक रीति-रिवाजों, त्योहारों, गीतों, नृत्यों और कला रूपों पर आधारित होती है। शहरीकरण के कारण इन सांस्कृतिक परंपराओं का संरक्षण मुश्किल हो गया है। आदिवासी लोग अब शहरी समाज में शामिल होने के लिए अपनी संस्कृति, भाषा, और जीवनशैली को छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं। बच्चों की शिक्षा में शहरी सभ्यता की ओर प्रवृत्ति और आधुनिकता की ओर झुकाव ने जनजातीय बच्चों को अपनी मातृभाषा और पारंपरिक शिक्षा से दूर कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप, उनकी सांस्कृतिक पहचान पर संकट आ गया है और वे अपनी परंपराओं को बनाए रखने में असमर्थ हो रहे हैं।[3]शहरीकरण ने जनजातीय समुदायों की अपनी कला, संगीत, और नृत्य की परंपराओं को खतरे में डाल दिया है। शहरीकरण के साथ-साथ इन सांस्कृतिक रूपों को बाज़ार और व्यावसायिक लाभ के लिए विकृत किया जा रहा है, जिससे उनकी प्रामाणिकता पर असर पड़ रहा है। उदाहरण के तौर पर, आदिवासी कारीगरी, हथकरघा, और लोककला की लोकप्रियता घट रही है, क्योंकि ये पारंपरिक कला रूप आधुनिक शहरी समाज में न तो मांग में हैं और न ही आर्थिक रूप से टिकाऊ हैं।

रोजगार के अवसर और आर्थिक परिवर्तन

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शहरीकरण ने भारतीय जनजातीय समुदायों के लिए रोजगार के नए अवसर उत्पन्न किए हैं, लेकिन यह परिवर्तन उनके लिए पूरी तरह से सकारात्मक नहीं रहा है। शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर हालांकि बढ़े हैं, लेकिन अधिकांश जनजातीय लोग इन अवसरों का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। यह समुदाय पारंपरिक रूप से कृषि, शिकार, और वन्य संसाधनों पर निर्भर रहते हैं, जबकि शहरी रोजगार क्षेत्र में उन्हें कम कौशल, अपरिचित कार्य प्रणाली और सांस्कृतिक अवरोधों का सामना करना पड़ता है।शहरी क्षेत्रों में उपलब्ध अधिकांश रोजगार असंगठित क्षेत्र में होते हैं, जैसे निर्माण, कूड़ा उठाना, घरेलू काम, और अन्य अस्थिर कार्य। इन कार्यों के बदले में मिलने वाली आय बहुत कम होती है और कामकाजी परिस्थितियाँ भी असुरक्षित होती हैं। इसके अलावा, जनजातीय समुदायों के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण, शिक्षा, और कौशल विकास कार्यक्रमों की कमी है, जो उन्हें स्थिर और सम्मानजनक रोजगार प्राप्त करने में सहायता कर सकें।[4]

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच

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शहरीकरण ने जनजातीय समुदायों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच को कुछ हद तक बढ़ाया है, लेकिन इन क्षेत्रों में भी कई चुनौतियाँ हैं। शहरी क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की बेहतर सुविधाएँ होती हैं, लेकिन इन तक पहुँच बनाना जनजातीय समुदायों के लिए कठिन हो सकता है। इन समुदायों के लोग अक्सर अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने के बजाय हिंदी या अंग्रेजी के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने में बाधित होते हैं। इसके अलावा, शहरी समाज में समायोजन की प्रक्रिया भी एक मानसिक दबाव उत्पन्न कर सकती है, जिससे बच्चों की शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। स्वास्थ्य सेवाओं में भी जनजातीय समुदायों को समान अवसर नहीं मिलते। शहरी क्षेत्र में चिकित्सा सुविधाएं हालांकि बेहतर होती हैं, लेकिन इन तक पहुँचने के लिए जनजातीय समुदायों को भौतिक और आर्थिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इनके लिए शहरी इलाकों में यात्रा करना और उच्च गुणवत्ता की स्वास्थ्य सेवाओं का खर्च वहन करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप, ये समुदाय अक्सर बीमारियों और [crisis|स्वास्थ्य संकटों] का सामना करते हैं।[5]

सामाजिक असमानता और भेदभाव

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शहरीकरण के साथ-साथ सामाजिक असमानता में वृद्धि भी एक महत्वपूर्ण समस्या बन गई है। शहरी समाज में आदिवासी समुदायों को अक्सर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उन्हें शहरी समाज में एक निचली सामाजिक स्थिति में रखा जाता है, और उनके लिए समान अधिकारों और अवसरों का मिलना कठिन हो जाता है। जातिवाद, भेदभाव और सांस्कृतिक विसंगतियाँ इटैलिक टेक्स्ट इन समुदायों के लिए एक बाधा के रूप में कार्य करती हैं।

इन समुदायों को समाज में समावेशी बनाने के लिए विशेष नीतियाँ और कार्यक्रमों की आवश्यकता है। यदि शहरीकरण के साथ आदिवासी समुदायों के सामाजिक समावेशन की प्रक्रिया को सही तरीके से लागू किया जाए, तो यह उन्हें शहरी जीवन में भी समान अवसर और अधिकार प्रदान कर सकता है।[6] भारतीय जनजातीय समुदायों पर शहरीकरण के प्रभाव गहरे और व्यापक हैं। शहरीकरण ने इन समुदायों की पारंपरिक जीवनशैली, संस्कृति, रोजगार, और सामाजिक संरचनाओं को प्रभावित किया है। भूमि अधिग्रहण, सांस्कृतिक संकट, आर्थिक असमानताएँ और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच जैसी समस्याएँ इन समुदायों के सामने हैं। हालांकि, शहरीकरण के साथ शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य के कुछ अवसर भी आए हैं, लेकिन इनका लाभ इन समुदायों तक पूरी तरह से नहीं पहुँच पा रहा है।इसलिए, शहरीकरण की प्रक्रिया को इस तरह से ढाला जाना चाहिए कि यह जनजातीय समुदायों के सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक अधिकारों का सम्मान करते हुए उनके जीवनस्तर को बेहतर बना सके।

  1. https://en.wikipedia.org/wiki/Urban_Indian
  2. https://trifed.tribal.gov.in/history-of-trifed
  3. https://testbook.com/ias-preparation/impact-of-urbanisation-and-industrialization-on-tribal-populations
  4. https://www.researchgate.net/publication/356992429_Employment_and_Livelihoods_among_Tribal_in_India#:~:text=On%20the%20basis%20of%20the,by%20the%20governments'%20reservation%20policy.
  5. https://journals.sagepub.com/doi/10.1177/2277436X211066517?icid=int.sj-full-text.citing-articles.4#:~:text=The%20analysis%20of%20employment%20and,opportunities%20at%20their%20native%20places.
  6. https://www.landesa.org/press-and-media/this-is-not-your-home-revealing-a-brutal-system-of-oppression-and-gender-discrimination-among-indias-scheduled-tribes/