श्रेयांसनाथ
ग्यारहवें तीर्थंकर प्रभुजी
श्रेयांसनाथ, जैन धर्म में वर्तमान अवसर्पिणी काल के ११वें तीर्थंकर थे। श्रेयांसनाथ जी के पिता का नाम विष्णु और माता का वेणुदेवी था। उनका जन्मस्थान सिंहपुर (सारनाथ) और निर्वाणस्थान संमेदशिखर माना जाता है।[1] इनका चिन्ह गैंडा है। श्रेयांसनाथ के काल में जैन धर्म के अनुसार अचल नाम के प्रथम बलदेव, त्रिपृष्ठ नाम के प्रथम वासुदेव और अश्वग्रीव नाम के प्रथम प्रतिवासुदेव का जन्म हुआ।
श्रेयांसनाथ | |
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ग्यारहवें तीर्थंकर | |
श्रेयांसनाथ भगवान की प्रतिमा, सारनाथ | |
पूर्व तीर्थंकर | शीतलनाथ |
अगले तीर्थंकर | वासुपूज्य |
गृहस्थ जीवन | |
वंश | इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय |
पिता | विष्णु नरेन्द्र |
माता | वेणुदेवी |
पंच कल्याणक | |
जन्म कल्याणक | १ × १०२१२ वर्ष पूर्व |
जन्म स्थान | सिंहपुरी सारनाथ |
मोक्ष स्थान | सम्मेद शिखरजी |
लक्षण | |
रंग | स्वर्ण |
चिन्ह | गैंडा |
ऊंचाई | ८० धनुष (२४० मीटर) |
आयु | ८४,००,००० वर्ष[1] |
शासक देव | |
यक्ष | ईश्वर[2] |
यक्षिणी | गौरी |
गणधर | |
प्रथम गणधर | धर्मं स्वामी |
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करेंग्रन्थ
संपादित करें- जैन, विजय कुमार (२०१५), Acarya Samantabhadra’s Svayambhustotra, विकल्प प्रकाशन, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788190363976, अभिगमन तिथि 1 नवंबर 2015,
Not in Copyright
- जैन, बलभद्र (१९७५), Bhārata ke digambara Jaina Tīrtha, Volume 5, Bhāratavarshīya Digambara Jaina Tīrthakshetra Kameṭī, मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 1 नवंबर 2015
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