भरत चक्रवर्ती
भरत चक्रवर्ती, प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे। जैनपुराणों के अनुसार वह इस हुंडा अवसर्पिणी काल के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट थे [1]
भरत चक्रवर्ती | |
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![]() अगासी समवशरण जिनालय में चक्रवर्ती भरत की प्रतिमा | |
माता-पिता |
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जैन ग्रंथ "आदिपुराण" जिसके रचयिता आचार्य श्री जिनसेन स्वामी है ने सातवीं शताब्दी में लिखें गए आदिपुराण में प्रथम चक्रवर्ती भरत का विस्तार से वर्णन किया है ; प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव और यशावती के पुत्र चक्रवर्ती भरत एक महान शासक थे
इनके बाहुबली, वृषभसेन, अनंतविजय, अनंतवीर्य, अच्युत, बरवीर,निमी (राजा)आदि 99 भाई और ब्राह्मी एवं सुंदरी नाम की दो बहनें थी|
अनेकों वर्ष राजपाठ करने के उपरांत भरत चक्रवर्ती ने अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज पाठ सौंपकर दिगंबर जैन मुनि की दीक्षा ली और केवल ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष को प्राप्त किया| आदिपुराण( आचार्य जिनसेन)
समस्त जैन ग्रंथ और समस्त जैनेतर ग्रंथ और प्राचीन शिलालेखों के अनुसार प्रथम जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के प्रथम पुत्र प्रथम चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम से ही इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।पड़ा"|[2]
आदिपुराण
संपादित करें7 वी सदी में लिखे गए आदिपुराण में ऋषभदेव, भरत और बाहुबली के दस जन्मों के बारे में बताया गया है। [3][4]
जन्म और बचपन
संपादित करेंभरत के जन्म से पूर्व उनकी माता ने ६ स्वप्न देखे। ऋषभदेव ने उन्हें इनका अर्थ समझाया और बताया कि बालक प्रथम चक्रवर्ती बनेगा।[5][6] भरत की बहन हुई ब्राह्मी।[7] भरत को मुख्य रूप से न्याय की शिक्षा मिली।[8]
चक्रवर्ती
संपादित करेंजैन कालचक्र के अनुसार हर काल में ६३ शलाकापुरुष जन्म लेते है। इनमें से १२ चक्रवर्ती होते है, जो सम्पूर्ण विश्व पर राज करते है। चक्रवर्ती सबके आदर्श माने जाते है।[9] भरत अवसर्पिणी (वर्तमान काल) के प्रथम चक्रवर्ती थे।[10]
सप्त रत्न
संपादित करेंजैन ग्रंथों के अनुसार चक्रवर्ती के पास सात रत्न होते है-
- सुदर्शन चक्र
- रानी
- रथों की विशाल सेना
- आभूषण
- अपार सम्पदा
- घोड़ों की विशाल सेना
- हाथियों की विशाल सेना
राज
संपादित करेंजब ऋषभदेव ने मुनि बनने का निश्चय किया, तब उन्होंने अपना साम्राज्य अपने १०० पुत्रों में बाँट दिया |[11][12] इसके पश्चात् भरत ने विश्व विजेता बनने का निश्चय किया। सम्पूर्ण विश्व पर विजय करने के पश्चात् चक्रवर्ती बनने के लिए उन्होंने अपने भाइयों से अधीनता स्वीकारने को कहा। ९८ भाइयों ने अपने पुत्रों को राज्य सौंप कर जैनेश्वरी दीक्षा ले ली, परंतु बाहुबली ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा।[13] झगड़ा सुलझाने के लिए तीन तरह के युद्ध हुए:
- दृष्टि युद्ध
- जल युद्ध
- मल युद्ध
बाहुबली युद्ध में जीत गए पर उन्हें संसार से वैराग्य हो गया और वह मुनि बन गए।[14][15]
भरत ने कर्म युग में नीति राज की शुरुआत की।[16] उन्होंने चार तरह के दंड निश्चित किए।[17] आदिपुराण के अनुसार उन्होंने ब्राह्मण वर्ण की शुरुआत की[18], पर यह ब्राह्मण वर्ण आज की ब्राह्मण जाति से बहुत भिन्न है ।[19] भरत के पास अवधि ज्ञान था|[20] सभी चक्रवर्तियों की तरह भरत भी संसार की असारता जान मुनि बन गए और अंत में मोक्ष गए।
मंदिर
संपादित करें- श्रवणबेलगोला में भरत का एक मंदिर है।
इरिंजालकूदा (कूदलमणिचकाम) भरत मन्दिर असल में एक जैन मन्दिर था जिसके मूलनायक सिद्ध भरत थे।
- वर्तमान मे श्री भरत भगवान का एक तीर्थ बना जिसका नाम है श्री क्षेत्र भरत का भारत यह मंगलगिरी सागर मप्र मे है।[21]
- भारत की राजधानी दिल्ली के कनॉट प्लेस में भी भगवान भरत ज्ञानस्थली तीर्थ एक विशाल जैन मंदिर भगवान भरत का गणनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से निर्मित किया गया ।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Sangave २००१, p. १९.
- ↑ Sangave २००१, p. २३.
- ↑ "History of Kannada literature". http://www.kamat.com.
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- ↑ Students' Britannica India, Volumes 1-5. Popular Prakashan. 2000. ISBN 0-85229-760-2.
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(help) - ↑ Jain 1929, p. 90.
- ↑ Shah 1987, p. 112.
- ↑ Jain 1929, p. 92.
- ↑ Jain 1929, p. 93.
- ↑ Nagraj, p. 203.
- ↑ Jain 1929, p. 66.
- ↑ Titze 1998, p. 8.
- ↑ "Bharat and Bahubali". http://www.shrimad.com.
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- ↑ Jain 1929, p. 143.
- ↑ Jain 2008, p. 105.
- ↑ Jain 1929, p. 145.
- ↑ Jain 2008, p. 110.
- ↑ Glasenapp 1999, p. 365.
- ↑ Jain 1929, p. 101.
- ↑ Jain 2008, p. 111.
- ↑ Jain 2008, p. 115.
- ↑ "Introduction to Temples of Kerala". http://www.thrikodithanam.org. मूल से से 23 अप्रैल 2012 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 3 अक्तूबर 2015.
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सन्दर्भ सूची
संपादित करें- Sangave, Vilas Adinath (२००१). Facets of Jainology: Selected Research Papers on Jain Society, Religion, and Culture. Mumbai: Popular prakashan. ISBN 81-7154-839-3.
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(help) - Titze, Kurt (1998). Jainism: A Pictorial Guide to the Religion of Non-Violence. Motilal Banarsidass. ISBN 9788120815346.
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(help) - Jain, Champat Rai (1929), Risabha Deva - The Founder of Jainism, इलाहबाद: The Indian Press Limited,
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