सत्रीया नृत्य
सत्रीया नृत्य (असमिया: সত্ৰীয়া নৃত্য), असम का शास्त्रीय नृत्य है[1] और आठ मुख्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य परंपराओं में से एक है। वर्ष 2000 में इस नृत्य को भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में सम्मिलित होने क गौरव प्राप्त हुआ। इस नृत्य के संस्थापक महान संत श्रीमन्त शंकरदेव हैं। शंकरदेव ने सत्रीया नृत्य को 'अंकिया नाट' (शंकरदेव द्वारा तैयार किया असमिया एकांकी नाटकों का एक रूप) के लिए एक संगत के रूप में बनाया था। यह नृत्य सत्र नामक असम के मठों में प्रदर्शित किया गया था। यह परंपरा सत्रों के भीतर बढ़ी तथा विकसित हुइ और यह नृत्य रूप सत्रीया नृत्य कहा जाने लगा।[2]
नृत्य
संपादित करेंसत्रीया नृत्य का मूल आमतौर पर पौराणिक कहानियाँ होती हैं। यह एक सुलभ, तत्काल और मनोरंजक तरीके से लोगों को पौराणिक शिक्षाओं को पेश करने का एक कलात्मक तरीका था। परंपरागत रूप से, यह नृत्य केवल मठों में 'भोकोट' (पुरुष भिक्षुओं) द्वारा, अपने दैनिक अनुष्ठान के एक भाग के रूप में या विशेष त्योहारों को चिह्नित करने के लिए, प्रदर्शन किया जाता था। आज सत्त्रिया नृत्य केवल पौराणिक विषयों तक सीमित नहीं हैं और दोनो पुरुषों और महिलाओं द्वारा मंच पर प्रदर्श्न किया जाता है।
सत्त्रिया नृत्य कई पहलुओं में विभाजित है जैसे कि: अप्सरा नृत्य, बेहार नृत्य, छली नृत्य, दसावतारा नृत्य, मंचोक नृत्य, नातौ नृत्य, रसा नृत्य, राजघारिया छली नृत्य, गोसाई प्रबेश, बार प्रबेश, झूमूरा, नाडू भंगी और सुत्रधरा। भारतीय शास्त्रीय नृत्य के अन्य सात स्कूलों की तरह, सत्त्रिया नृत्य में भी शास्त्रीय नृत्य शैली के लिए आवश्यक सिद्धांते शामिल हैं : नृत्य और नाट्य शास्त्र के ग्रंथ जैसे कि नाट्याशास्त्रा, अभिनया दर्पणा और संगीत रत्नाकारा; एक विशिष्ट प्रदर्शनों की सूची और नृतता (शुद्ध नृत्य), नृत्य (अर्थपूर्ण नृत्य) और नाट्य (अभिनय) के पहलुओं को अभिनय में शामिल करते हैं।
इतिहास
संपादित करेंयह नृत्य कला ५०० से अधिक वर्षों से चली आ रही परंपरा हैं। यह नृत्य असम की वैष्णव मठों, जो की सत्र के नाम से जाना जाता है, की परंपरा हैं। यह मूल रूप से पौराणिक नृत्य नाटक के रूप में ब्रह्मचारी भिक्षुओं द्वारा अभ्यास किया था। ये नृत्य नाटक, मुख्य रूप से, असमिया वैष्णव संत और समाज सुधारक श्रीमन्त शंकरदेव और उनके प्रमुख शिष्य माधवदेव द्वारा लिखित और किया गया था। ये ज्यादातर १६ वीं सदी के दौरान लिखे गये थे। इस नृत्य कला को पेहले केवल पुरुषों द्वारा प्रदर्शित किया गया था लेकिन अब यह महिला नर्तकियों द्वारा भी किया जाता है। १५ नवम्बर २००० में संगीत नाटक अकादमी ने सत्त्रिया नृत्य को भारत के शास्त्रीय नृत्य रूपों में से एक के रूप में मान्यता दे दी है।
सत्त्रिया नृत्य की पदोन्नति
संपादित करेंइन वर्षों में, सत्त्रिया नृत्य को असम राज्य के बाहर और भारत से बाहर दोनों में अधिक से अधिक स्वीकृति और संरक्षण प्राप्त हुआ है।[3]
नृत्य के प्रमुख प्रतिपादक
संपादित करें- बापुराम बरबायान अतैई
- मनिराम डटा मुकतियार बरबायान
- गहन चंद्रा गोस्वामी
- जीबेश्वर गोस्वामी
- प्रदीप चलीहा
- ललित चंद्रा नाथ ओझा
- गोपीराम/गुपीराम बरगयन
- रामेश्वर सैकिया
- हरीचरण सैकिया
- कोशा काँटा देवा गोस्वामी
- आनंदा मोहन भगवती
- गुणकँता डटा बरबायान
- प्रभात शर्मा
- जतीन गोस्वामी
- परमान्दा बरबायान
- माणिक बरबायान
- घनकन्ता बोरा बरबायान
- जिबनजीत डटा
- टांकेश्वर हज़ारीका बरबायान
- मूही कांत बोरह गायन बरबायान
- भाबनांदा बरबायान
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार के प्राप्तकर्ता
संपादित करें- मनिराम डटा मुकतियार बरबायान (1963)
- बापुराम बरबायान अतैई (1978)
- रोसेश्वर सैकिया बरबायान (1980)
- इंदिरा पी. पी. बोरा (1996)
- प्रदीप चलीहा (1998)
- परमान्दा बरबायान (1999 - 2000)
- घनकन्ता बोरा बरबायान (2001)
- जतिन गोस्वामी (2004)
- गुणकँता डटा बरबायान (2007)
- माणिक बरबायान (2010)
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ {{Cite book|url=https://books.google.com/books?id=zLOiaGDLYOAC&newbks=0&printsec=frontcover&dq=sattriya+dance&hl=en%7Ctitle=The Sterling Book of INDIAN CLASSICAL DANCE|last=Narayan|first=Shovana|date=2011-12-30|publisher=Sterling Publishers Pvt. Ltd|isbn=978-81-207-9078-0|language=en}}
- ↑ Kothari, Sunil (2013). Sattriya: Classical Dance of Assam (अंग्रेज़ी में). Marg Foundation. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-921106-6-0.
- ↑ Feb 24, TNN /; 2021; Ist, 04:41. "Award presented to Sattriya dancer | Thiruvananthapuram News - Times of India". The Times of India (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2021-08-06.