पंडित आशीष दुबे का जन्म 11 मार्च सन 1957 मैं बेगमगंज के एक संपन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ उनके पिता का नाम पंडित जागेश्वर प्रसाद एवं माता का नाम श्रीमती सुधा दुबे है बचपन से ही एक महान प्रतिभा संपन्न होने के साथ-साथ एक अद्भुत तेज के भी धनी पंडित आशीष दुबे जी महाराज जिनके लिए प्यार से परिजन श्याम भैया के नाम से पुकारते हैं ऐसी महान विभुति के लिए बचपन से ही महान संस्कार दिए गए जो उनकी बाल अभी अवस्था से ही दृश्यमान होने लगे सो उन्होंने अल्प आयु में ही वेद वेदांत का ज्ञान प्राप्त करके अपने पूर्वजों की कीर्ति के लिए समूचे क्षेत्र में व्याप्त कर दिया एक महान धर्मोपदेशक धर्मगुरु और प्रतिभा संपन्न तेजस्वी बालक है उन्होंने 13 वर्ष की अल्प आयु से ही श्रीमद भागवत की कथा कहना प्रारंभ कर दिया एवं युवावस्था के इस पड़ाव में भी वे निरंतर जनमानस के लिए श्रीमद्भागवत का रसपान करा रहे हैं उनका मानना है कि भगवान का भजन ही व्यक्ति के लिए संसार सागर से मुक्ति का एकमात्र उपाय है वे कहते हैं कि मैं इस धरती पर धर्म की रक्षा धर्म के विकास प्रचार प्रसार के लिए ही आया हूं अपने गुरुदेव अपने पूज्य पिताश्री को मानते हैं 8 वर्ष की अवस्था में ही यज्ञोपवीत संस्कार संपन्न हुआ और भी ब्रह्मचारी हो गए तेरा 14 वर्ष की अल्प आयु तक उन्होंने संपूर्ण वेद वेदांत का अध्ययन करके धर्म का प्रचार प्रसार करना प्रारंभ कर दिया गुरु के आदेश अनुसार उन्हें दूसरा आश्रम भी ग्रहण करना पड़ा उनका विश्वास है कि माता पिता गुरु जन जो भी करते हैं सो बालक और शिष्य के लिए अच्छा ही करते हैं वेद क्षेत्र में युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्तोत्र हैं अनेक अनेक युवाओं के लिए अपने साथ लेकर धर्म के प्रचार प्रसार में जुटे हुए पंडित आशीष दुबे का मानना है कि देश की युवा शक्ति जागृत होगी तभी विकास हो सकता है तभी धर्म के पुनः स्थापना हो सकती है क्योंकि युवा ही पूछ सकती हैं जो दुनिया के लिए बदल सकते हैं पंडित आशीष दुबे जी महाराज वर्ण व्यवस्था की ऐसी व्याख्या करते हैं कि ब्राह्मण हो या हरिजन सभी अपनी जाति पर गर्व करने लगते हैं जब महाराज श्री छोटे थे तब वे अपने दादा जी के साथ अक्षर राम नाम का संकीर्तन ही किया करते थे देश भक्तों से शिव श्रद्धालुओं के लिए राम नाम मंत्र का ही उपदेश करते हैं वह कहते हैं कि यही वह महामंत्र है जो सभी के लिए संसार रूपी समुद्र से पार उतार सकता है उनका मानना है कि मंत्र सभी के लिए है भक्ति सभी के लिए है भक्ति करने के लिए कोई रोक टोक नहीं है किसी भी धर्म वर्ग जाति लिंग भेद किए बिना भक्ति की जा सकती है