बीसीएसबीआई के अन्तर्गत राजभाषा की उपयोगिता संपादित करें

बैंकिंग जगत में ग्राहक केन्द्र बिन्दु होता है । बदलते बैंकिंग परिदृश्य और सरकार द्वारा लागू की जा रही निंरतर नवीनतम योजनाओं को सुचारु रुप से कार्यान्वित करने के लिए हर बैंक मानों एक दौड़ में शामिल है । बैंकिंग संर्दभ में अगर सूचना एवं प्रौद्योगिकी की बात करें तो यह स्वीकार करना गलत नहीं होगा कि आईटी एवं मोबाइल की संयुक्त जोड़ी ने बैंकिग जगत की प्राचीनतम एवं आधुनिकतम सभी सूचनाओं को बस एक क्लीक करने तक सीमित कर दिया है । आपको चाहे किसी भी प्रकार की जानकारी चाहिए उसे आप सहजता से ही अपने मोबाइल पर प्राप्त कर सकते हैं ।

आज के दौर में व्यवसाय वृद्दि करने के संबंध में बैंकों की प्रतिस्पर्धा को ग्राहक वर्ग भली-भांति समझता है । आज का ग्राहक वर्ग बैंकिंग बाजार से रिस्ता जोड़ने के साथ-साथ अपने अधिकारों के प्रति भी सजग है । ग्राहकों के अधिकारों को सुरक्षित रखने तथा उन्हें प्रदान की जा रही सेवाओं के संबंध में एकरुपता बनाए रखने के लिए सरकार तथा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर प्रयास भी किए गए हैं ।

नवम्बर, 2003 में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आम जनता को पर्याप्त बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने संबंधी मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए श्री एस.एस.तारापोर (पूर्व उप गर्वनर) की अध्यक्षता में लोक सेवाओं की प्रक्रियाओं और कार्यनिष्पादन की लेखा परीक्षा संबंधी एक समिति का गठन किया गया था । एक गहन अध्ययन के बाद समिति द्वारा “भारतीय बैंकिंग कोड एवं मानक बोर्ड” (बीसीएसबीआई) की स्थापना यह सुनिश्चित करने के लिए की गई कि बैंकों से वित्तीय सेवाओं के उपभोक्ता के रुप में एक आम आदमी हानि की स्थिति में नहीं है और उसे वे सारी सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं जिसका वादा उससे किया गया है ।

बीसीएसबीआई एक स्वतंत्र एवं स्वायत्त निकाय के रुप में कार्य करती है जिसकी सदस्यता 65 अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, 18 अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों, 47 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा 03 लघु वित्त बैंकों को प्राप्त है । बीसीएसबीआई ने भारतीय बैंक संघ (आईबीए) के साथ मिलकर दो कोड (कूट) विकसित किए हैं - ग्राहकों के लिए बैंक की प्रतिबद्धताओं की संहिता और सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए बैंक की प्रतिबद्धताओं का कोड । इन संहिताओं का केंद्रीय उद्देश्य अच्छे बैंकिंग अभ्यासों को बढ़ावा देना, न्यूनतम मानक स्थापित करना, पारदर्शिता बढ़ाना, उच्च परिचालन मानकों को प्राप्त करना और सभी से ऊपर, एक सौहार्दपूर्ण बैंकर-ग्राहक संबंध को बढ़ावा देना है जो बैंकिंग प्रणाली में आम आदमी के विश्वास को बढ़ावा देगा ।

स्पष्ट रुप में कहें तो बीसीएसबीआई कोड ग्राहक के अधिकारों का कोड है, जो कि बैंकिंग प्रथाओं के न्यूनतम मानक निर्धारित करता है । यह ग्राहकों को सुरक्षा प्रदान करता है तथा यह बताता है कि सदस्य बैंकों को दैनंदिन परिचालन में ग्राहकों से किस प्रकार व्यवहार करना चाहिए ।

चूंकि बैंकों में ग्राहकों का वर्ग शिक्षित, अल्प-शिक्षित तथा अशिक्षित सभी समूदाय से संबंध रखता है तो ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि प्रदान की जा रही सेवाएं तथा उनके अधिकार उन तक संप्रेषित हो पाए । जहां तक संप्रेषण का प्रश्न है तो ऐसे में भाषा के अतिरिक्त और कोई विकल्प शायद अनुकूल नहीं जान पड़ता है क्योंकि भाषा संप्रेषण के साथ-साथ आत्मीय संबंध भी स्थापित करती है । आज अगर सरकार द्वारा वित्तीय समावेशन के तहत हर घर को बैंकिंग जगत से जोड़ने की बात की जा रही है तो ऐसे में शायद अंग्रेजी की बजाय राजभाषा एवं क्षेत्रीय भाषाओं का योगदान काफी मायने रखता है ।

इस कोड की निम्नलिखित प्रतिबद्धताओं के पालन के संदर्भ में अगर हम राजभाषा की उपयोगिता की बात करें तो यह आवश्यक हो जाता है कि चूंकि देश का एक वृहद ग्राहक समुदाय हिन्दी बोलना, पढ़ना एवं लिखना अच्छी तरह से जानता है इसलिए उनके अधिकारों को उन तक संप्रेषित करने में हिन्दी एवं स्थानीय भाषाएं काफी कामगार साबित हो सकती हैं । इस कोड की निम्नलिखित मदों के संदर्भ में राजभाषा की उपयोगिता को हम निम्नलिखित रुप से समझ सकते हैं तथा प्रयोग कर सकते हैं-

उचित व्यवहार का अधिकार – बैंकों में कई तरह के काउंटर होते हैं, जहां ग्राहकों द्वारा बैंकिंग संबंधी विभिन्न मुद्दों पर पूछताछ की जाती है ऐसे में यह आवश्यक है कि- - जो व्यक्ति उन काउंटरों पर बैठता हो उसे हिन्दी बोलने, लिखने एवं पढ़ने का ज्ञान हो, ताकि वो ग्राहकों के प्रश्नों का निदान कर सके । - काउंटरों पर रखी गई आहरण पर्ची, विविध फार्म आदि हिन्दी और अंग्रेजी में दोनों भाषाओं में उपलब्ध होने चाहिए । - कांउटरों पर लगे बोर्ड जैसे, ‘क्या मैं आपकी सहायता करूं’, ‘नकदी काउंटर’ आदि क्षेत्रीय भाषा, हिन्दी और अंग्रेजी में लिखे होने चाहिए ।