रेखा
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रेखा सहाय Rekha Sahay
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मेरे बारे में
संपादित करेंमैं अपने काम के दौरान अौर दैनिक जीवन में विकीपीडिया का काफी उपयोग करती हूँ। इसमें मैंने ज्ञान का भंडार पाया है। परंतु अफसोस की बात है कि विकिपीडिया के हिंदी पृष्ठ कम है। इन हिंदी पेजों पर उपलब्ध जानकारियां भी कम हैं। विकीपीडिया के ज्ञान के भंडार को, विशेष कर हिंदी पेजों को विस्तृत रूप देने के लिए विकिपीडिया के लेखन में सहयोग कर रही हूं।
महत्वपुर्ण उपलब्धियाँ -
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मैंने मनोविज्ञान में पीएचडी, मानव संसाधन (HR) में पीजीडीएम, इग्नू से चाइल्ड गाइडेंस और काउंसलिंग का कोर्स किया है. नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी, पटना के M.A. मनोविज्ञान के अध्ययन सामग्री लेखन की सह लेखिका हूँ। मैंने स्कूल में 10 साल पढ़ाया और काउंसलिंग की है। पटना और लखनऊ के विभिन्न कॉलेजों में मनोविज्ञान और ह्मुमन रिसोर्स पढ़ाया है. मैंने ACCIO mental health start-up मे चीफ साइकोलॉजीस्ट की हैसियत से काम किया है. मैं ब्लॉगर हूँ अौर मनोवैज्ञानिक विषयों पर लेख, कहानियां, और कविताएं नियमित रूप से लिखती हूं .
मेरा लेखन विकीपेङिया पर
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कलामंडलम कल्याणिकुट्टी अम्मा
आरंभ्भिक जीवन
कलामंडलम कल्याणी कुट्टी अम्मा केरल राज्य के मल्लपुरम जिले के थिरुनावाया ग्राम की निवासी थीं।उनके पति स्वर्गीय कथकली उस्ताद पद्मश्री कलामंडलम कृष्णन नायर थे। कल्याण मंडलम कल्याणी कुट्टी अम्मा ने लुप्त प्राय भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर मोहिनीअट्टम शास्त्रीय नृत्य को पुनर्जीवित किया और उसका विस्तार किया। वे केरल मंडलम की आरंभिक बैच की छात्रा थीं। मोहिनीअट्टम शास्त्रीय नृत्य लगभग विलुप्ती के कगार पर थी। कल्याणी कुट्टी अम्मा के अनुसार मोहिनीअट्टम शास्त्रीय नृत्य ऐतिहास और नृत्य संरचना की दस्तावेज है। कल्याणी कुट्टी अम्मा को मोहनी अट्टम नृत्य की माता का दर्जा दिया जाता है क्योंकि केरल की इस नृत्य शैली को शास्त्रीय नृत्य की मुख्यधारा में लाने का श्रेय इन्हें जाता है। कल्याणी अम्मा ने मोहिनीअट्टम नृत्य शैली के पीछे छिपे पौराणिक रहस्य को भी बताया। उन्हों ने मोहिनीअट्टम नृत्य शैली की व्याख्या स्वर्ग सुंदरी व नारियों द्वारा द्वारा किए जाने वाले नृत्य् के रूप में की। कल्याणी कुट्टी अम्मा ने मोहिनीअट्टम नृत्य को 20 साल वर्ष की उम्र के बाद सीखना आरंभ किया था। तत्कालीन समय में कुलीन परिवारों में छोटी बच्चियों द्वारा कम आयु में नृत्य सीखने की अनुमति नहीं दी जाती थी। इससे पूरे परिवार के लिए शर्म की बात मानी जाती थी। कलामंडलम से नृत्य शिक्षा पूर्ण करने के बाद कवि वल्लतथोल ने उन्हें मोहिनीअट्टम नृत्य को समाज में सम्मान का दर्जा और उचित स्थान दिलाने की जिम्मेदारी सौंपी। इस नृत्य को पुनर्जीवित करने और समाज में उच्च दर्जा दिलाने के लिए वे अनेकों अनेक मंदिरों में गई। वहाँ के शिलालेखों को पढ़ा और वहां की मंदिर नर्तकीयों यानी थेवाडीची से मिली और जानकारियां एकत्रित की। अपनी सारी एकत्रित जानकारियों को उन्होंने दो अलग अलग पुस्तकों में प्रकाशित किया। ये पुस्तकें आज मोहिनीअट्टम नृत्य शैली की महत्वपूर्ण प्रमाणिक दस्तावेज मानी जाती है। मृत्य परंपरा को आगे बढ़ाने में उनकी छात्राअों ने भी सहयोग दिया जिनमें मृणालिनी साराभाई अौर स्मिता राजन ( उनकी पौत्री) का नाम उल्लेखनीय है। [4)
कल्याण कट्टी अम्मा की अनेक और महत्वपूर्ण उपलब्धियां है। 1938 में महाकवि श्री वल्लथोल ने कविता के क्षेत्र में उनकी कविताओं की उत्कृष्टता को देख "कवित्री" की उपाधि दी । 1940 में उनकी शादी श्री से हुई। उन्होनें 1952 में केरल के अलुवा में “कलालायम” की स्थापना की। जिससे 1959 कोचीन के त्रिपुनिथुरा मैं स्थानांतरित किया गया । 1972 में उन्हें केंद्र संगीत नाटक अकादमी से फैलोशिप मिली। 1974 में संगीत नाटक अकादमी ऑल संगीत नाटक अकादमी मोहिनीअट्टम नृत्य शैली में अमूल्य योगदान देने के लिए सम्मानित किया गया। 1986 में केरल कलामंडलम ने उन्हें से सम्मानित किया। 1997 में भारतीय शास्त्रीय नृत्य की दुनिया में काम के लिए मध्यप्रदेश शासन द्वारा कालिदास पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके मृत्यु के साथ, उनके जीवन की यह बहुमूल्य यात्रा यात्रा 1999 समाप्त हो गई। उनकी विरासत मोहिनीअट्टम नृत्य उनके छात्रों के द्वारा आज भी सुरक्षित रुप से आगे बढ़ाया जा रहा है। [5]
सन्दर्भ
संपादित करें1. https://en.wikipedia.org/wiki/Kalamandalam_Kalyanikutty_Amma(अंग्रेजी में)
2. http://smitharajan.tripod.com/kalyanikuttyamma.html(अंग्रेजी में)
किराये का चांडाल पुत्र (कहानी )
यह एक सच्ची कहानी है। लगभग तीन साल पहले मैंने इस कहानी को काल्पनिक अंत के साथ लिखा था। इसका वास्तवित अंत अपनी नजरों से देखा। जो इस कहानी के काल्पनिक अंत से ज्यादा दुःखद अौर मार्मिक है। अतः कहानी का अवसान यानि अंतिम भाग बदल कर सच्चाई.... हकीकत बयान कर रही हूँ।
नयना का सपरिवार बनारस घूमने का पहला अवसर था। दोनों बेटियों और पति के साथ बड़ी कठिनाई से यह कार्यक्रम बन पाया था। सुबह, सबसे पहले गंगा स्नान कर वे चारो विश्वप्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर पहुँचे और पूजा-अर्चना किया। बनारस के विभिन्न मंदिरों और पर्यटन स्थलों को घूमने में दो दिन कैसे निकल गए, उसे पता हीं नहीं चला। यहाँ आ कर नयना को, पिंजरे से आज़ाद परिंदे जैसा अहसास हो रहा था। उसे वापस घर जाने की इच्छा नहीं हो रही थी। अतः उसने काशी प्रवास और बढ़ा लिया। उसे लगा, काशी आ कर गंगा में नौका विहार नहीं किया तो यात्रा अधूरी होगी। जबकी, उसके पति को रुकने का मन बिलकुल नहीं था।
नयना की शादी कम उम्र में हो गई थी। तब उसकी पढ़ाई भी अधूरी थी। ससुराल वाले और पति उसे काम करने की मशीन से ज्यादा कुछ नहीं समझते थे। विशेष कर उसकी जेठानी उसे बड़ा परेशान करती थी। नयना का नासमझ पति हितेश, अक्ल से बिलकुल नासमझ हीं था। अतः भाभी के आँचल के पल्लू से बंधा रहता। भाभी सुगमता से अपने देवर को अपनी अंगुलियों पर नचाती रहती। वह अपनी कमाई से मात्र सौ रुपए नयना को देता और बाकी सारी कमाई माया यानि भाभी के कालिमायुक्त, कलुषित चरणों में चढ़ा देता। ना जाने छोटी कुटिल आँखों वाली कदर्य माया भाभी में नयना के पति को क्या सौंदर्य दिखता था
तब तक नयना से अनजाने में भूल हो गई। एक-एक कर वह दो पुत्रियों की जननी बन गई। सारा ससुराल उससे नाराज़ हो गया। पुत्रवती भाभी का जादू उसके मूढ़ पति के सर चढ़ कर बोलने लगा। घर का सारा धन और पुश्तैनी जायदाद धीरे-धीरे माया को चढ़ावा में चढ़ने लगा। नयना जब पति को बेटियों के भविष्य के बारे में समझाना चाहती, उसका पति उसके ऊपर तरह-तरह के दोष मढ़, नयना से नाराज़ हो, माया भाभी के साथ कोप भवन में चला जाता था।
नयना ने जेठ की तरफ एक दो बार आशापूर्ण निगाहों से देखा। पर कुछ काम ना करनेवाले अकर्मन्य जेठ अपनी पत्नी की योग्यता से बड़े प्रभावित थे। जिसने सोने की अंडा देनेवाली मुर्गी अर्थात नयना के सरकारी पदाधिकारी, पति को अपने वश में कर रखा था। नयना ने जहां भी मदद के लिए हाथ बढ़ाया, कोरे आश्वासन के अलावा कोई मदद नहीं मिली। तब नयना ने सारे अत्याचार, बेटियों के भविष्य की वजह से झेलना स्वीकार कर लिया। नयना ने अपनी पढ़ाई बड़ी कठिनाईयों से पूरी की तथा नौकरी करने लगी। जिस से बेटियों की पढ़ाई ठीक से चल सके। पर उसके पति और माया भाभी का तोता- मैना प्रेम कथा प्रकरण चलता रहा।
ऐसी कालिख की कोठारी से दो-तीन दिन के लिए बाहर निकल कर, बनारस में नयना को बड़ी शांती मिल रही थी। मान्यतानुसार शिव की त्रिशूल पर बसा बनारस, शांति और आध्यात्म की नगरी है। जहां ज्योतिर्लिंग, शक्ति पीठ और गंगा एक साथ हैं। यह दुनिया के प्राचीनतम नगरों में से एक है। नयना, गलियों में बसे बनारस के अनोखे आकर्षण में उलझ कर रह गई। बनारसी और रेशमी कपड़ों का अद्भुत संसार जैसे उसे एक नई दुनिया में ले गया । गंगा तट, अस्सी घाट की अनोखी खूबसूरती से वह मोहित हो गई। नौका विहार के समय नाविक सारे घाटों के बारे में बता रहा था। तभी नयना के पति को माया भाभी का फोन आया।
किनारे माणिकर्णिका घाट दिख रहा था। जहाँ अनेकों चिताएँ जल रहीं थीं। नयना ने किनारे दिख रहे एक आलीशान भवन के बारे में जानना चाहा। नाविक ने बताया कि यह डोम राजा का महल है। डोम राजा पारंपरिक रूप से शमशान घाट के कर्ता-धर्ता और स्वामी होतें हैं। साथ हीं वे श्मशान में चिताओं को दिये जानेवाले अग्नि के संरक्षक होते है। उसके अनुमति से, मुल्य चुका कर अग्नि प्राप्त की जाती है और उस अग्नि से चिता जलाई जाती है। यह परंपरा राजा हरिश्चंद्र के समय से, या उससे भी पहले से चली आ रही है। पौराणिक कथाअों के अनुसार एक चाण्डाल ने सत्यवादी राजा हरिशचंद्र को खरीद अपना दास बना लिया था। वह चांडाल मणिकर्णिका घाट का स्वामी था। उसने सत्यवादी, राजा हरिशचंद्र को इस घाट पर अन्त्येष्टि करने वाले लोगों से “कर” वसूलने का काम दिया था। किवदन्ती है कि सत्यवादी राजा हरिशचंद्र ने अपने पुत्र की चिता अग्नी की इजाजत भी "कर" लेने के बाद हीं दी थी।
जलती चिताओं को देखते हुए, नयना के पति ने उसे संबोधित करते हुए कहा कि चूंकि नयना ने पुत्रजननी न बनने का अक्षम्य अपराध किया है। अतः मरने पर उन्हें कोई आग देनेवाला नहीं है। माया भाभी एक बड़ा उपकार करने के लिए तैयार है। नयना और हितेश के मरने पर उनकी चिता को आग माया भाभी अपने पुत्र से दिलवा देगीं। बदले में अभी अपनी सारी चल-अचल संपाति माया के पुत्र के नाम करनी होगा। माया भाभी चाहती है कि यह काम जल्दी से जल्दी हो जाये। इसलिए हमें तत्काल वापस लौटना होगा।
नयना और उसकी बेटियाँ हैरान उस नासमझ व्यक्ति का चेहरा देख रहीं थीं। नयना को ख़्याल आया कि अभी तो मैं जिंदा हूँ। फिर मेरे अग्नि संस्कार की जल्दी क्यों? और माया अपने पुत्र से किराये ले कर अग्नि दिलवाने के लिए क्यों तैयार है? इसके पीछे मात्र धन की लालसा है या कुछ और सत्य छुपा है ? दो लायक, होनहार और सुंदर पुत्रियों का पिता इतना निर्दयी और नासमझ हो सकता है क्या? सिर्फ इसलिए कि वे बेटियाँ हैं? क्या वे बेटियाँ पिता को इस व्यवहार के लिए क्षमा कर पाएँगी?
कहते हैं जाति और उसके साथ जुटे कर्म, जन्म से प्राप्त होते हैं। पर यहाँ तो अपनी ही स्वार्थी और लालची जननी - माया भाभी ने अपने पुत्र के नये कर्म को नियत कर दिया था – एक श्मशान चांडाल की रूप में। नयना ने सोंचा, अगर अगली बार बनारस दर्शन का अवसर मिला, तब अवश्य हीं मणिकर्णिका घाट पर या डोम राजा के विशाल प्रासाद के नीचे, मायावी माया भाभी का होनहार सुपुत्र चिता में आग देने के लिए, हाथों में अग्नि मशाल ले, किराये का पुत्र बनने को तत्पर दिखेगा। पुत्रविहीन माता-पिता के अंतिम संस्कार के लिए किराये का पुत्र सरलता से उपलब्ध होगा। किराये के बोर्ड पर लिखा होगा उसके बेटे के "किराये का रेट।"
वर्षों बाद नयना को पुनः बनारस आने का अवसर मिला है। पर आज उसका पति साथ हो कर भी साथ नहीं है......... पुरानी सारी बातें चलचित्र की तरह याद आने लगीं। वह एक बार पुनः माणिकर्णिका घाट गई। वह घाट जहाँ पार्वती जी ने जानबुझ कर अपने कान की मणी छुपा दी थी, ताकि उनके यायावर और घुमक्कड़ पति, शिव उसे खोजतें रहें और इस बहाने उनके साथ पार्वती को ज्यादा वक्त व्यतित करने का अवसर मिल सके।
नयना ने अपने मणी का यहीं परित्याग किया था। वह पति के साथ उसकी आखरी यात्रा थी। वहाँ से वापस लौटने के बाद वह अपने पति से अलग हो गई थी। क्योकिं सबसे बङे धर्म स्थल, बनारस से लौट कर, नयना का पति अधर्म के काम में लग गया। अपनी अौर अपने पिता से प्राप्त विरासत माया के कहे अनुसार बर्बाद करने लगा। कुछ समय बाद नयना को उड़ती -उड़ती खबरें ज़रूर सुनने में आईं कि माया भाभी अौर उनके पति ने सारे रुपये और जायदाद ले कर हितेश को कानूनी दाव-पेँच में फँसा दिया है।
कुछ वर्षों के बाद, एक दिन कॉलबेल बजने पर नयना की पुत्री ने दरवाजे पर अपने पिता को उपहारों के साथ खङा पाया। वह अपनी गलतियों से शर्मिंदा हो माफी मांगने अौर उन्हें वापस आने का अनुरोध करने आया था। उसने स्वीकार किया कि उसके भाई- भाभी ने उसे धोखा दिया है अौर झूठे जायदाद संबंधी केस में फंसा दिया है। वकीलों की मदद के अलावा अब वह स्वंय भी लॉ की पढ़ाई कर रहा है। वह चाहता है कि जल्दी से जल्दी वे सब इकट्ठे रहने लगे। वह अपनी सारी भूलें सुधार लेगा। नयना अौर उसकी बेटियाँ अचानक जीवन में लौट आई खुशियों को ईश्वर कृपा मान बेहद खुश थीं। उन्हों ने पुराने शिकवे गिले भुला दिये। अौर तभी ...... उन पर पहाङ टूट पङा। हितेश एक सङक दुर्घटना में घायल हो गया अौर नयना के अस्पपताल पहुँचने से पहले उसकी मृत्यु हो गई।
नयना और उसकी बेटियाँ सदमें अौर बेहद कष्ट में थी। नयना और उसकी पुत्रियों को बार-बार लग रहा था , जब सब ठीक हो रहा था, तब यह अचानक क्या हो गया? जब नयना वहाँ पहुँची तब उस ने देखा कि उसके जेठ वहाँ पहले से उपस्थित थे। उन्हें लगा, वे सब अफसोस करने आयें हैं। पर जल्दी हीं वह समझ गईं कि उनका मंतव्य कुछ अौर हीं है। वे अपने सुपुत्र के साथ आये थे । जिसे वे चिता में आग देने के लिए, किराये पर उपलब्ध कराने के लिये तत्पर थे। किराये की उसी शर्त के साथ - हितेश की बची सारी संपंति के बदले में। नयना और उसकी बेटियाँ अवाक थीं। यह सब देख नयना अपने होशो-हवास खो बैठी।
जब अग्नी संस्कार का समय आया तब "किराये पर उपलब्ध" सुपुत्र ने अपने कदम आगे बढ़ाये। तभी नयना की नाजुक दिखनेवाली , सदमें अौर दुःख में ङूबी बेटियाँ बङे आत्मविश्वास के साथ आगे आईं अौर बङी पुत्री ने अग्नी संस्कार आरम्भ किया। माहौल में कानाफूसी अौर फुसफुसाहट गुँजने लगा। कहने को तो फुसफुसाहट थीं, पर वे दमामे पर पङती चोट जैसी ऊँची आवाज़ में गुँज रहीं थीं व कानों में जहर घोल रहीं थीं। विशेष कर नयना के जेठ अौर उनके पुत्र की तेज, क्रोधित अौर लालच भरी कानाफूसी गूंज रही थी -- यह तो लङकियों का काम नहीं है.....इनके यहाँ तो सब नया हीं चलन दिख रहा है....... हमारा गुस्सा नहीं जानतीं ये....... अगर मेरा पहले वाला क्रोधी स्वभाव होता, तब यहीं सबक सीखा देता.......इन लङकियों को तो श्मशान आना हीं नहीं चाहिये था…….
सब कुछ सुन, अनसुना कर, नयना की बङी पुत्री बहते आँसुअों अौर कापंते ह्रदय से, एक हाथ से अपने कंधें पर मृतिका पात्र पकङे मृत पिता की परिक्रमा करती रही अौर सबकी कङवी, जहर बुझी बातें सुनती रही। उनकी जलती नजरों का सामना करती रही। किसी के दिल में यह ख्याल नहीं आया कि इन बच्चियों के लिये यह कितना कठिन अौर दर्द भरा काम होगा। इन्हें सहारे अौर सहानुभूति की जरुरत है।
आज नयना को पुनः बनारस आने का अवसर मिला है। पर आज, उसका पति साथ हो कर भी साथ नहीं है……… पति नहीं , पति की अस्थियों के साथ वह आई है। अपने हाथों से उन्हें देवनदी मंदाकनी में प्रवाहित करने। अस्थियों को विसर्जित कर अंजली भर जल भगीरथी में प्रवाहित कर कांपते हाथों को माथे से लगा, उसने पति को श्रद्धांजलि दिया । आँखों से बहते अश्रु जल भी टपक कर पुण्या गंगा में समा गये। उसे लगा, उसने अपने पति को पा कर फिर खो दिया, हमेशा के लिये………..
यह सदस्य विकी लव्स वुमन भारत का प्रतिभागी है। |
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