हिंदी साहित्य भारती बुद्धिजीवियों की एक वैश्विक संस्था है,जिसका ध्येय वाक्य है-"मानव बन जाए जग सारा,यह पावन संकल्प हमारा"

भारतीय चिंतन एवं दर्शन के आधार पर सम्पूर्ण विश्व में मानवीय जीवन मूल्यों को पुनर्स्थापित करने का संकल्प इस संस्था ने लिया है।उपासना पद्धतियों से ऊपर उठकर सम्पूर्ण श्रृष्टि के साथ आत्मीय भाव सनातन धर्म का मौलिक स्वभाव है।आत्मा परमात्मा का ही अंश है ,सभी में जो ऊर्जा संवाहित हो रही है वह परमात्मा का ही शास्वत स्वरूप है,जो मुझमें है वही सब में है, यह भाव ही सभी को सौहार्द के सूत्र में बांध सकता है जो सनातन धर्म की मूल प्रकृति है, इसलिए ही सनातन ने "वसुधैव कुटुम्बकम"का उद्घोष किया है।

इसी विचार पृष्ठभूमि की शक्ति से सम्पूर्ण विश्व को सम्पृक्त करने का संकल्प हिंदी साहित्य भारती ने लिया है।

अब तक विश्व के ३७ देशों एवं भारत के सभी प्रदेशों तथा हिंदी भाषी क्षेत्रों के जनपदों तक हिंदी साहित्य भारती का विस्तार हो चुका है। संगठन, सक्रियता के साथ सकारात्मक बौद्धिक वातावरण बनाने में संलग्न है।