राजस्थान की कावड़ कला

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भारत में कहानियां, कला, भाषा, संस्कृति और पौराणिक कथाएँ की कमी भिल्कुल नहीं है।  जन्म - जन्म से हमारे इन कथाओं चले आ रहें हैं और इन्हे आने वाले पीडियों में जारी रकने के लिए कावड़ जैसे कला का इस्तमाल होता है।


कावड़ एक भारतीय कला है जो राजस्थान में अब्यास किया जथा है। कावड़ के द्वारा कलाकार अनेक कहानियां बताते थे और उन कहानियों को कहीं पर भी लेके जा सकते हैं।  इसे पहली बार चित्तोर के बासी गांव में बनाना शुरू किया था।  इस कला को बढ़ईगीरी, पेंटिंग और वर्णन कौशल के संयोजन से बनाया जाता है।  जब अलग अलग से देखा जाए थो, कलाकार को चित्रकार, बढ़ई को सुथार और कहानीकार को भट कहा जाता है।  कावड़ कला हमारे देश में लगभग ४०० सालों से चला आ रहा हैं।  इस कला को लकड़ी के ऊपर  किया जाता है और इसपर देवी देवता, स्थानीय नायक, संत और संरक्षक को बनाया जाता है और इन लकड़ियों को इसके पैनल एक साथ टिके हुए हैं। एक भ्रमणशील पुजारी (कावड़िया भट्ट) कावड़ कला का वर्णन करते हैं। वह अपनी कावड़ के साथ जजमान (श्रोताओं) के घर जाते हैं और कहानी सुनाने के लिए अपनी कावड़ के पैनल खोलते हैं। जैसे-जैसे प्रत्येक पैनल खुलता है, श्रोता की जिज्ञासा बढ़ती जाती है। पारंपरिक कावड़ में, अंतिम पैनल भगवान राम, उनकी पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण की एक सुंदर मंत्रमुग्ध करने वाली छवि के सामने खुलता था। यह पोर्टेबल कला अधिकतर उन लोगों के लिए थे जो मंदिर में जाकर पूजा नहीं कर सकते थे। कावड़ का आकार सामान्यतः 3 इंच से 12 इंच तक होता है।

कावड़ कला का इतिहास :

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यह कला हमारे देश में लगभग ४०० सालों से राजस्थान में चला आ रहा हैं। ‘कुमावत्स’ एक कारीगर जाति हैं जिन्होंने पहली बार कावड़ का कला राजस्थान के उदयपुर के पास भीलवाड़ा जिले में स्थित एक छोटे से गांव बस्सी में कावड़ कला की सदियों पुरानी परंपरा शुरू की।

कावड़िया के वंशावली 'श्रवण' हैं। श्रवण एक युवा था जिसे राजा दशरथ (भगवान राम के पिता) ने गलती से मार डाला था जब श्रवण अपने अंधे माता-पिता को 'कावड़ी' में अपने कंधों पर ले जा रहा था।क्योंकि उनके माता-पिता वहां नहीं पहुंच सके, उन्होंने राजा दशरथ से अपनी अंतिम इच्छा के रूप में मंदिर को अपने माता-पिता के लिए लाने का अनुरोध किया, ताकि उनके माता-पिता भगवान की पूजा कर सकें। यहीं से कावड़ की कहानी कहने की कला की अवधारणा शुरू हुई।


इस समुदाय को 'सुतार' या 'जांगिडस' ('जांगिडस' ब्राह्मण सुतार का समुदाय है ) पहले पहले यह कला वास्तो में किया जाता था पर वस्त्र पर पेंट करने के वजह से आसानी से रंग सब मिट जाता था और इसलिए कवदियस ने लकड़ी इस्तमाल करना शुरू किया।  सुतार सभी कला को  साधारण बढ़ई औजारों की सहायता से आम और सेलम के पेड़ों की लकड़ी से डिब्बे बनाते थे।

इन लकड़ी के डिब्बे बनाने के बाद, सुतार का काम प्र हो जाता है और फिर चित्रकार अपना काम शुरू करते हैं।  बहुत सुन्दर तरीकों से पौराणिक कहानियों के पत्र, देव देवता के चित्र बनाने शुरू करते थे। शुरुआत में सिर्फ प्राकृतिक रंग का इस्तमाल किया करते थे फिर धीरे धीरे वे मार्किट में मिलने वाले खनिज पाउडर का उपयोग करने लगे।  आम तौर पर, कावड़ चित्रों के बेस रंग लाल बनाते हैं और उसके ऊपर हरा, पीला, और नीला रंग का प्रयोग करके चित्र बनाते थे।

आज के समय में कावड़ की कला:

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राजस्व उत्पन्न करने के साधन के रूप में, कलाकारों ने कावड़ बक्सों को सजावटी वस्तुओं के रूप में विपणन करना शुरू कर दिया है। लोग शायद अब कावड़िया भट्टों को नहीं सुनते, लेकिन वे अभी भी अपने घरों में सजावटी आभूषणों के रूप में इन सुंदरियों का आनंद ले सकते हैं।

अब इस कला को बच्चों को पड़े सीखने के लिए भी काम आता है , कावड़ के कलाकारों अब अक्षरों  लकड़ी पर बनाते हैं थकी बच्चे उससे लभित हो सके।


अभी कावड़ को बैंगलोर के कूच स्थलों और राजस्थान में अब्यास किया जाता है।  पर  इतना शररीकरण के बाद, इस कला को अब कोई उठना जनता भी नहीं और अभ्यास भी उठना नहीं करता।  बहुत ही कम कावड़ के कलाकार अभ बचें है।  उनमे से मांगीलाल मिस्त्री एक प्रसिद्ध कलाकार हैं जो कावड़ कला को जीवित रक् रहें हैं।  वह कावड़ कला के राजदूत हैं। मिस्त्री जी ने कहानी कहने की इस ख़त्म होती कला में कुछ बदलाव भी लाए हैं। वह ग्रामीण जनता को सरकारी कार्यक्रमों के बारे में शिक्षित करने के लिए करंट अफेयर्स जैसी बारीकियों से परिचित कराते हैं। इस कला को जीवित रखने वाले एक और कलाकार हैं राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के सत्यनारायण सुथार। उन्होंने अपनी कला के लिए 2014 में राष्ट्रीय पुरस्कार जीता है।

राजस्थान के बस्सी गांव के सत्यनारायण सुथार कावड़ बनाते हैं और बिक्री और विपणन के लिए व्यापक दुनिया तक भी पहुंचते हैं।

कावड़ बक्सों में आधुनिक रंग संयोजन और चित्रों के साथ एक ताज़ा डिज़ाइन है। राजस्थानी कावड़ कला किसी न किसी रूप में हमारे दिलों में जीवित रहेगी। यह संभवतः हमारे घरों में सजावटी सामान बन जाएगा। समर्पित कलाकारों का समर्थन कहानी कहने की इस लुप्तप्राय कला को बचाने में मदद कर सकता है।

राजस्थान की कावड़ कला किसी न किसी रूप में हमारे दिलों में बसी रहेगी। यह अब संभवतः सजावट के सामान के रूप में हमारे घरों में होगा। हम मेहनती कलाकारों का समर्थन करके कहानी कहने की इस लुप्त होती कला को बचाने की दिशा में अपना योगदान दे सकते हैं।

आधुनिक समय में कावड़ कला का महत्व:

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आजकल लोग कम ही रुकते हैं और कावड़ कथाएँ सुनते हैं, बल्कि लोग इन बक्सों को सजावट के तौर पर रखते हैं।

हालाँकि यह कला आधुनिक समय में भी सजावट के रूप में जीवित है, कहानी कहने का असली सार इसकी उत्पत्ति के बाद से कम हो गया है।

यह महत्वपूर्ण है कि हम सदियों पुरानी संस्कृति को बनाए रखें और उन समुदायों को बढ़ावा दें जिनका जीवन कावड़ कला पर निर्भर करता है।

कावड़ कला केवल एक कला रूप नहीं है बल्कि यह हमें हमारे सुंदर इतिहास और पौराणिक कथाओं की जानकारी देती है जो हमें अन्य सभी संस्कृतियों से अलग करती है और यही कारण है कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ऐसी परंपराओं को छोड़ा नहीं जाए बल्कि हमें ऐसा करना चाहिए। ऐसे अद्वितीय कला रूपों की सराहना करें और उन्हें फलने-फूलने में मदद करें l

निष्कर्ष :

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कावड़ जैसी कला हमारी भारतीय संस्कृति और विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपनी कला और संस्कृति को संरक्षित रखें। लेकिन अत्यधिक आधुनिकीकरण के कारण हम कावड़ आदि लोक कलाओं को खोते जा रहे हैं।

इसलिए यह हमारी जिम्मेदारी बन जाती है कि हम जागरूकता फैलाएं और हमरे भारतीय कला को जीवित रखने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करें।


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  1. Writer, Staff (2023-06-02). "Kavad Art: Crafting Stories In A Box | Madras Courier" (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-10-24.
  2. Goyal, Anuradha (2018-04-19). "Kavad - Colorful Storytelling Box Of Rajasthan". Inditales (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-10-24.
  3. Studio, Rajasthan (2021-03-20). "What Is Kavad Art? Exploring The Ancient Art of Storytelling -". Rajasthan Studio (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-10-24.
  4. Rajvanshi, Nehal (2021-04-23). "Kavad: From Portable Shrines To Social Platforms". PeepulTree (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-10-24.