सदस्य:2320223 Harsh Vardhan Goyal/प्रयोगपृष्ठ

कलारीपयट्टु: भारत की प्राचीन युद्ध कला

भारत की प्राचीनतम युद्ध कलाओं में से एक, कलारीपयट्टु, केरल की मिट्टी में जन्मी एक ऐसी धरोहर है जो 3,000 वर्षों से भी अधिक पुरानी मानी जाती है। इसे सभी मार्शल आर्ट्स की जननी भी कहा जाता है। यह न केवल आत्मरक्षा का माध्यम है, बल्कि शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास का भी एक समग्र साधन है। (SANSKRITI IAS[1])

नाम का अर्थ और उत्पत्ति

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'कलारीपयट्टु' दो मलयालम शब्दों से मिलकर बना है: 'कलारी' का अर्थ है प्रशिक्षण स्थल और 'पयट्टु' का मतलब है लड़ाई या अभ्यास। इस तरह, इसका सीधा अर्थ है "युद्ध कौशल का अभ्यास स्थल।" यह कला केरल की परंपरा और योद्धा संस्कृति से गहराई से जुड़ी है। (Wikipedia)

इतिहास की एक झलक

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कलारीपयट्टु की उत्पत्ति तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मानी जाती है। यह कला मुख्यतः केरल के नायर और एज्हावा योद्धा समुदायों द्वारा विकसित की गई थी। यह उन युद्धों में बेहद उपयोगी साबित हुई, जब 11वीं और 12वीं शताब्दी में केरल छोटी-छोटी रियासतों में विभाजित था। यह कला राज्य की रक्षा और राजाओं की सेवा में प्रयोग की जाती थी। (Wikipedia)

शैलियों का विभाजन

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कलारीपयट्टु को तीन मुख्य शैलियों में बांटा गया है:

  1. उत्तरी शैली (वडक्कन कलारी): इसमें ताकत और हथियारों के उपयोग पर अधिक जोर दिया जाता है।
  2. दक्षिणी शैली (थेक्कन कलारी): यह नरम तकनीकों और शारीरिक लचीलापन पर केंद्रित है।
  3. मध्य शैली (मध्यम कलारी): यह दोनों शैलियों का मिश्रण है। (NEWS 18 HINDI[2])

प्रशिक्षण की प्रक्रिया

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कलारीपयट्टु का प्रशिक्षण अत्यंत अनुशासनपूर्ण और चरणबद्ध तरीके से किया जाता है।

  • मालिश (उझिचिल): तिल के तेल से मालिश करके शरीर को लचीला और मजबूत बनाया जाता है।
  • शारीरिक व्यायाम (मयप्पयट्टु): ताकत और सहनशक्ति बढ़ाने वाले व्यायाम।
  • लकड़ी के हथियार (कोल्थारी): लाठी जैसे प्रारंभिक हथियारों का अभ्यास।
  • धातु के हथियार (अंगथारी): तलवार और ढाल जैसे उन्नत हथियारों का प्रशिक्षण।
  • विशेष उपकरण (ओट्टा): S-आकार की छड़ी से कौशल विकसित किया जाता है। (HINDUSTAN[3])

आधुनिक महत्व

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आज के दौर में, कलारीपयट्टु न केवल आत्मरक्षा के लिए, बल्कि शारीरिक फिटनेस और मानसिक संतुलन के लिए भी उपयोगी है। इसकी तकनीकों का प्रभाव भारतीय नृत्य, जैसे कथकली और मोहिनीअट्टम, में भी देखने को मिलता है। खेल मंत्रालय ने इसे "खेलो इंडिया यूथ गेम्स" में शामिल कर एक नई पहचान दी है। (JAGRAN[4])

निष्कर्ष

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कलारीपयट्टु केवल एक युद्ध कला नहीं है, यह एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। इसके अभ्यास से न केवल आत्म-रक्षा के गुण विकसित होते हैं, बल्कि यह अनुशासन, आत्मविश्वास और शारीरिक-मानसिक संतुलन भी प्रदान करता है। यह प्राचीन कला आज भी हमें संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देती है।

कलारीपयट्टु हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहने का एक जरिया है, और इसे संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है। (Wikipedia)

  1. IAS, Sanskriti. "Kalaripayattu". www.sanskritiias.com (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-12-18.
  2. "अल्मोड़ा में लगने जा रहा केरल की युद्ध कला कलारीपयट्टू का ट्रेनिंग कैंप, जानें फीस और रजिस्ट्रेशन का तरीका". News18 हिंदी. 2023-12-16. अभिगमन तिथि 2024-12-18.
  3. https://www.livehindustan.com/uttar-pradesh/lucknow/story-learned-skill-of-kalaripayattu-martial-arts-6523335.html. गायब अथवा खाली |title= (मदद)
  4. "Kalaripayattu: भारत के इस राज्य से हुई थी दुनिया के सबसे पुराने मार्शल आर्ट की शुरुआत, जानिए दिलचस्प कहानी - Kalaripayattu One of the World Oldest Martial Art Forms from Kerala with a legacy of more than 5000 years". Jagran. अभिगमन तिथि 2024-12-18.