2320503 Aditya Agrawal
हिमालय के जल स्रोतों का संकट: एक गंभीर पर्यावरणीय चुनौती
संपादित करेंपर्वतों की श्रृंखला हिमालय[1] सिर्फ भारत की ही नहीं, बल्कि पूरे एशिया की जीवनरेखा है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में इस क्षेत्र के जल स्रोतों में आई गिरावट ने एक नई चिंता को जन्म दिया है। छोटे-छोटे पहाड़ी गाँवों से लेकर बड़े शहरों तक, यह संकट अब गंभीर रूप धारण कर चुका है।
उत्तराखंड के छोटे से गाँव धारकोट की कहानी इस संकट को समझने में मदद करती है। "पहले हमारे यहाँ बारहों महीने पानी की कमी नहीं होती थी। अब गर्मियों में हमें किलोमीटर दूर जाना पड़ता है पानी लाने के लिए," गाँव की 65 वर्षीय सरस्वती देवी बताती हैं। उनकी यह कहानी अकेली नहीं है।
जल स्रोतों [2]के सूखने के पीछे कई कारण हैं। जलवायु परिवर्तन[3] के कारण हिमनदों का पिघलना तेज हुआ है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगर यही स्थिति रही, तो 2050 तक हिमालय के एक-तिहाई हिमनद गायब हो सकते हैं। यह स्थिति न केवल पहाड़ी क्षेत्रों के लिए, बल्कि मैदानी इलाकों के लिए भी चिंताजनक है।
वनों की कटाई ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है। पेड़ों की कमी के कारण मिट्टी का कटाव बढ़ा है, जिससे प्राकृतिक जल स्रोतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। "जब मैं छोटा था, हमारे गाँव के आसपास घने जंगल थे। अब वहाँ सिर्फ खाली पहाड़ियाँ हैं," धारकोट के रमेश सिंह याद करते हैं।
लेकिन आशा की किरण भी दिखाई दे रही है। कई स्थानीय समुदाय और पर्यावरण संगठन इस चुनौती से निपटने के लिए नवीन प्रयास कर रहे हैं। कुमाऊँ [4]क्षेत्र में 'जल संरक्षण अभियान[5]' ने पिछले पाँच वर्षों में 100 से अधिक प्राकृतिक झरनों को पुनर्जीवित किया है।
"हमने पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीक का मिश्रण किया है," अभियान की संयोजक माधवी शर्मा बताती हैं। "स्थानीय लोगों को जल संरक्षण का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, और साथ ही वैज्ञानिक तरीकों से जल स्रोतों[6] की निगरानी की जा रही है।"
स्कूलों में भी जल संरक्षण[7] को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा रहा है। बच्चों को न केवल पानी की महत्ता के बारे में बताया जा रहा है, बल्कि उन्हें व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। "हमारे छात्र अब वर्षा जल संचयन की तकनीकें सीख रहे हैं," शिमला के एक स्कूल की प्रधानाचार्या रीता गुप्ता बताती हैं।
सरकारी स्तर पर भी कई पहल की जा रही हैं। जल शक्ति मंत्रालय ने हिमालयी क्षेत्र के लिए एक विशेष जल संरक्षण योजना[8] शुरू की है। इसके तहत न केवल मौजूदा जल स्रोतों का संरक्षण किया जा रहा है, बल्कि नए स्रोतों की खोज भी की जा रही है।
यह संकट एक दिन में नहीं आया है, और इसका समाधान भी एक दिन में नहीं होगा। लेकिन अगर हम सब मिलकर प्रयास करें, तो हिमालय के जल स्रोतों को बचाया जा सकता है। यह न केवल पहाड़ी क्षेत्रों के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है। क्योंकि जब हिमालय की जलधाराएं सूखेंगी, तो उसका प्रभाव हम सभी पर पड़ेगा।
- ↑ Shekhar, M.S.; Chand, H.; Kumar, S.; Srinivasan, K.; Ganju, A. (2010). "Climate-change studies in the western Himalaya". Annals of Glaciology. 51 (54): 105–112. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0260-3055. डीओआइ:10.3189/172756410791386508.
- ↑ Dinesh Kumar (2022-12-14). "Water Crisis in India and Solutions". RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary. 7 (12): 124–129. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2455-3085. डीओआइ:10.31305/rrijm.2022.v07.i12.019.
- ↑ Singh, Avantika (2022-06-30). "हिमाचल प्रदेश की जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना (एस.ए.पी.सी.सी ): एक अध्ययन". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts. 3 (1). आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2582-7472. डीओआइ:10.29121/shodhkosh.v3.i1.2022.2734.
- ↑ Pande, P C; Vibhuti, Vibhuti; Awasthi, Pankaj; Bargali, Kiran; Bargali, S. S (2016-05-12). "Agro-Biodiversity of Kumaun Himalaya, India: A Review". Current Agriculture Research Journal. 4 (1): 16–34. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2347-4688. डीओआइ:10.12944/carj.4.1.02.
- ↑ -, डॉ. उम्मेद कुमार चौधरी (2023-12-16). "राजस्थान में भू-जल स्तर के बदलते स्वरूप की भौगोलिक विवेचना". International Journal For Multidisciplinary Research. 5 (6). आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2582-2160. डीओआइ:10.36948/ijfmr.2023.v05i06.10419.
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- ↑ जीत, पवन; कुमारी, आरती; सुंदरम, प्रेम कुमार; प्रकाश, वेद (2022-03-31). "छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए भूमि एवं जल संरक्षण तकनीकें". कृषि मञ्जूषा. 4 (02). आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2582-144X. डीओआइ:10.21921/km.v4i02.9286.
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