2320529 Hemani Madan
भारत में फास्ट फैशन की बढ़ती लहर और सतत विकास की चुनौतियां
वर्तमान समय में भारतीय फैशन उद्योग तेजी से बदल रहा है। पिछले एक दशक में, फास्ट फैशन की अवधारणा ने भारतीय बाजार [1]में अपनी मजबूत पकड़ बना ली है। जारा, एच एंड एम, और यूनिक्लो जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ-साथ कई घरेलू ब्रांड्स [2]भी इस क्षेत्र में प्रवेश कर चुके हैं। यह बदलाव भारतीय उपभोक्ताओं की बदलती प्राथमिकताओं और युवा पीढ़ी की फैशन के प्रति बढ़ती जागरूकता का परिणाम है।
फास्ट फैशन का मूल सिद्धांत है - कम कीमत में नवीनतम फैशन ट्रेंड्स को उपभोक्ताओं तक पहुंचाना। इसके तहत कपड़ों के नए कलेक्शन हर कुछ सप्ताह में लॉन्च किए जाते हैं। यह व्यवस्था जहां एक ओर उपभोक्ताओं को विकल्पों की विविधता प्रदान करती है, वहीं दूसरी ओर यह पर्यावरण के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है।
फास्ट फैशन की बढ़ती लोकप्रियता के कई कारण हैं। सोशल मीडिया का प्रभाव[3], बढ़ती आय, और ऑनलाइन शॉपिंग की सुविधा ने इस क्षेत्र को और अधिक गति प्रदान की है। भारत में मध्यम वर्ग का विस्तार और युवाओं की बढ़ती क्रय [4]शक्ति ने भी इस उद्योग को पंख लगा दिए हैं।
हालांकि, इस विकास के साथ कई गंभीर चिंताएं भी जुड़ी हैं। फास्ट फैशन उद्योग पर्यावरण को कई तरह से प्रभावित करता है:
पानी का अत्यधिक उपयोग: कपास की खेती से लेकर कपड़ों की रंगाई तक, फैशन उद्योग में पानी की खपत बहुत अधिक होती है। एक जींस बनाने में लगभग 7,000 लीटर पानी का उपयोग होता है।
प्रदूषण: कपड़ों की रंगाई और प्रसंस्करण में प्रयोग किए जाने वाले रसायन नदियों और जल स्रोतों को प्रदूषित करते हैं। माइक्रोफाइबर का समुद्र में विसर्जन भी एक बड़ी समस्या है।
कपड़ों का कचरा: फास्ट फैशन के कारण कपड़ों का जीवनचक्र बहुत छोटा हो गया है। अधिकांश कपड़े कुछ महीनों में ही कचरे में बदल जाते हैं।
लेकिन आशा की किरण भी दिखाई दे रही है। भारत में सतत फैशन की अवधारणा[5] धीरे-धीरे जड़ें जमा रही है। कई भारतीय डिजाइनर और ब्रांड्स पारंपरिक हस्तशिल्प और स्थायी उत्पादन विधियों को अपना रहे हैं। खादी और हथकरघा[6] जैसे पारंपरिक वस्त्र उद्योग को नया जीवन मिल रहा है।
आज की युवा पीढ़ी भी पर्यावरण के प्रति अधिक जागरूक है। वे सोच-समझकर खरीदारी करने लगे हैं और टिकाऊ फैशन को प्राथमिकता दे रहे हैं। कई स्टार्टअप्स सेकंड-हैंड कपड़ों की खरीद-बिक्री को बढ़ावा दे रहे हैं।
निष्कर्षतः फास्ट फैशन की चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। उपभोक्ताओं को अपनी खरीदारी के पर्यावरणीय प्रभाव के प्रति जागरूक होना होगा। कंपनियों को अपनी उत्पादन प्रक्रियाओं में सुधार करना होगा। सरकार को भी नीतिगत स्तर पर सतत फैशन को प्रोत्साहन देना होगा। तभी हम फैशन उद्योग को वास्तव में टिकाऊ बना सकेंगे।
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- ↑ चौहान, राहुल सिंह (2018-08-09). "लाई-फाईः संचार का एक आशाजनक ऑप्टिकल वायरलेस माध्यम". Anusanadhan: A Multidisciplinary International Journal (in Hindi). 03 (02): 9–12. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2456-0510. डीओआइ:10.24321/2456.0510.201804.
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- ↑ कुमारी, आरती; उपाध्याय, आशुतोष; कोले, तन्मय कुमार; ., पवनजीत (2022-03-31). "मृदाविहीन खेती में सिंचाई निर्धारण एवं पोषक तत्त्व प्रबंधन". कृषि मञ्जूषा. 4 (02). आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2582-144X. डीओआइ:10.21921/km.v4i02.9284.
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- ↑ पाण्डेय, रवि प्रकाश; बंशकार, रामजी (2024-03-31). "भारतीय ग्रामीण विकास में स्व-सहायता समूह का योगदान-एक आर्थिक अध्ययन (रीवा जिले के विशेष संदर्भ में)". International Journal of Reviews and Research in Social Sciences: 57–66. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2454-2687. डीओआइ:10.52711/2454-2687.2024.00011
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