कथक: उत्तर प्रदेश की पारंपरिक नृत्य कल


कथक उत्तर प्रदेश का एक प्राचीन और महत्वपूर्ण शास्त्रीय नृत्य है, जिसका इतिहास बहुत पुराना है। यह नृत्य शैली अपनी

अनूठी भंगिमाओं, जटिल पदचाप, ताल, और कथा वाचन के लिए जानी जाती है। "कथक" शब्द संस्कृत के "कथा" शब्द से

निकला है, जिसका अर्थ है कहानी। इस नृत्य का मुख्य उद्देश्य कहानियों को नृत्य और संगीत के माध्यम से प्रस्तुत करना

था।


कथक की उत्पत्ति और विकास

कथक की शुरुआत प्राचीन भारत के मंदिरों और दरबारों में हुई थी। इस नृत्य का मुख्य उद्देश्य धार्मिक कथाओं और

पौराणिक घटनाओं को प्रस्तुत करना था। पहले, कथक का प्रदर्शन मंदिरों में भगवान की कथाओं को दर्शाने के लिए किया

जाता था। यह नृत्य शैली भगवान कृष्ण और राधा की लीलाओं, रामायण, महाभारत, और अन्य पौराणिक कथाओं पर

आधारित होती थी।

मध्यकाल में, कथक दरबारों में अधिक लोकप्रिय हुआ, जहां इसे राजाओं और नवाबों का संरक्षण मिला। मुगल काल में,

कथक ने अपनी विशिष्ट शैली और पहचान विकसित की। इस समय, नृत्य में मुगल संगीत और कलात्मक तत्वों का

सम्मिश्रण हुआ, जिससे यह और भी समृद्ध और जटिल हो गया। इस काल में, कथक में ठुमरी, ग़ज़ल, और कव्वाली जैसे

संगीत का प्रभाव भी देखा गया।


कथक की विशेषताएं

कथक की सबसे प्रमुख विशेषता इसके पदचाप और ताल की जटिलता है। नर्तक अपने पैरों में घुंघरू बांधकर नृत्य करते हैं

और ताल के साथ अद्वितीय समन्वय स्थापित करते हैं। इसके अतिरिक्त, कथक में 'चक्कर' यानी घुमावदार गतियों का भी

विशेष महत्व है, जो नर्तक की कुशलता और संतुलन को प्रदर्शित करता है।

कथक में हाथों की मुद्राएं, चेहरे के भाव और आंखों की चपलता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह नृत्य शैली 'अभिनय'

पर भी केंद्रित है, जिसमें नर्तक भाव-भंगिमाओं और मुद्राओं के माध्यम से कथा को जीवंत करते हैं। कथक की कथाएं

मुख्यतः हिंदू पौराणिक कथाओं, जैसे राधा-कृष्ण की लीलाओं, रामायण और महाभारत के प्रसंगों पर आधारित होती हैं।

कथक के प्रमुख घराने

कथक की शैली और तकनीक में विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के अनुसार भिन्नताएं हैं, जिन्हें 39;घराने 39; कहा जाता है। मुख्यतः

तीन प्रमुख कथक घराने हैं: लखनऊ घराना, जयपुर घराना, और बनारस घराना।

- लखनऊ घराना: लखनऊ घराना अपने सौंदर्यपूर्ण और भावपूर्ण प्रस्तुतियों के लिए प्रसिद्ध है। इस घराने में नृत्य की

मुद्राओं और भाव-भंगिमाओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है। लखनऊ घराने का विकास नवाब वाजिद अली शाह के

संरक्षण में हुआ था।

- जयपुर घराना: जयपुर घराना अपनी तेज पदचाप और जटिल तालों के लिए जाना जाता है। इस घराने में नर्तक अपनी

तकनीकी कुशलता और शक्तिशाली प्रदर्शन से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। जयपुर घराना अपनी वीर रस और तांडव

शैली के लिए भी प्रसिद्ध है।

- बनारस घराना: बनारस घराना, जिसे वाराणसी घराना भी कहा जाता है, ताल और भाव-भंगिमाओं के संतुलन के लिए

प्रसिद्ध है। इस घराने में अभिनय और पदचाप का अद्वितीय समन्वय देखा जाता है। बनारस घराना अपने ठुमरी और

दादरा गायन के लिए भी जाना जाता है।


कथक का आधुनिक रूप

आज के समय में, कथक ने अपनी पारंपरिक जड़ों को बनाए रखते हुए आधुनिकता के साथ भी तालमेल बिठाया है। नृत्य

के इस स्वरूप में विभिन्न प्रकार के संगीत और नृत्य शैलियों का सम्मिश्रण देखा जा सकता है। कथक न केवल भारत में

बल्कि विश्वभर में भी लोकप्रिय हो चुका है। अनेक नर्तक और नर्तकियां इस कला को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत कर रहे हैं

और इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचा रहे हैं।


कथक का महत्व

कथक न केवल एक नृत्य शैली है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। इसके माध्यम

से न केवल नृत्य की कला को सीखा जा सकता है, बल्कि भारतीय इतिहास, धर्म, और समाज की गहरी समझ भी प्राप्त की

जा सकती है।


कुल मिलाकर, कथक उत्तर प्रदेश की एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण नृत्य शैली है, जिसने अपनी विशिष्टता और सुंदरता के

कारण विश्वभर में मान्यता प्राप्त की है। यह नृत्य शैली आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी और

भारतीय संस्कृति की धरोहर को संजोए रखेगी।