मणिमेकलई

मणिमेकलई (तमिल: மணிமேகலை), एक प्रमुख सा तमिल - बौद्ध महाकाव्य है जिसका संगटन दूसरी शताब्दी और छठी शताब्दी के बीच में हुई थी। इस महाकाव्य को उस युग में तमिल लेखक तथा बौद्ध संत, कुलवणिकं सीतलै सातंर ने लिखा था। तमिल की विकसित हुई साहित्यिक परंपरा में अलग सा पांच महाकाव्यों को पांच रत्नों की तुलना की जाती है, जिसमें इस काव्य कि सबसे बड़ा गहना है। मणिमेकलई, का अर्थ भी 'रत्नों कि करधनी' होती है।

ये काव्य "शिलप्पादिकारम" (सबसे पहला महाकाव्य) कि अगली कड़ी है और एक सुन्दर सा प्रेम विरोधी कहानी है। इस महाकाव्य में अकवल मीटर में 4,861 पंक्तियाँ हैं, जो 30 सर्गों में व्यवस्थित है।

कहानी 

ये कथा आध्यात्मिकता, धर्म और निस्सवार्थता (अनत्ता) के बारे में बात करती है। "मणिमेकलई" शीर्षक कि इस कहानी की केंद्रीय चरित्र का नाम भी मणिमेकलई है और वो कोवलन तथा माधवी (शिलप्पादिकारम के चरित्र) कि पुत्री थी। माधवी बहुत लोकप्रिय थी अपनी नृत्य कलाकार के लिए जिससे उसकी बेटी भी ऐसी ही मार्ग पर अनुसरण की। मणिमेकलई को अपनी बाप कि मृत्यु के बाद बड़ी प्रभाव पड़ी और अपनी मां को बौद्ध भिक्षुणी बनकर देखके, उसकी जीवन को आत्मत्यागी कि समान व्यतीत करनी चाहती थी। इस कहानी की प्रारम्भ में मणिमेकलई की विशेषकर शारीरिक सुंदरता और उसकी कलात्मक उपलब्धियाँ के वर्णन मिलती है और इससे चोल राजकुमार, उदयकुमारन का ध्यान को आकर्षित करती है। वो राजकुमार उससे पाने का ज़्यादा कोशिश करता है पर मणिमेकलई को बौद्ध भिक्षुणी बनने में ही प्रतिबद्ध इच्छा थी। उसके अग्रिमों से बचने के लिए मणिमेकलई, भगवान से प्रार्थना करती है और अपनी बौद्ध शिक्षक की सहायता मांगती है। फिर 'मणिमेकला' देवी मणिमेकलई की आध्यात्मिक यात्रा को पूर्ण करने के लिए, उसको लेकर मणिपल्लवम द्वीप में छोड़ देती है।

इस जगह में पिछली जन्म की यादें और विभिन्न कर्म की घटनाएँ विचार आती है। यहां, उसको किसी और के रूप में प्रकट होने की शक्ति भी मिल सकता है, खुद को राजकुमार से रक्षा करने के लिए। बुद्ध की स्तुति गाने के बाद, एक जादुई भिक्षापात्र मिल जाती है जो अन्न से भरती रहती है। इसके बाद मणिमेकलई कावेरीपट्टिनम वापस उड़ान भरता है और वो अपनी मां और दोस्त (सतमति) को अपनी अनुभवों के बारे में बताती है।

एक भिक्षुणी बनकर ,मणिमेकलई  भिक्षापात्र को लेकर शहर की अंदर जाती है। राजकुमार उदयकुमारन को खबर मिलती है कि मणिमेकलई कावेरीपट्टिनम में मौजूद है और वह गरीबों और बेसहारा लोगों की मदद कर रही है। राजकुमार उससे मिलने जाता है पर मणिमेकलई खुद को कायासंदिगाई (विवाहित औरत) के रूप में प्रच्छन्न करती है। वो कायासंदिगाई की पति राजकुमार कि व्यवहार को देखते हुए, राजकुमार को उसकी पत्नी कि दूसरी प्रेमी सोचकर मार देता है। राजा और रानी इस दुखी संभव को सुनकर मणिमेकलई को गिरफ्तार करने कि कोशिश करते हैं। पर वो गायब हो जाती है और उसकी बौद्ध शिक्षक, अरवाना अडिकल के पास जाकर बौद्धी धर्म का पालन करती है। उन्होंने निर्वाण (पुनर्जन्म से मुक्ति) प्राप्त करने के लिए कठोर आत्म-त्याग का भी अभ्यास की सकती है।


महत्वपूर्ण तत्व

महाकाव्य के अंत में मणिमेकलई आध्यात्मिक ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करती है। वो अपने जीवन को आदमियों को मदद करने की समर्पित करती है उसकी भिक्षापात्र और कई अन्य तरीकों से और बौद्धी धर्म की संदेश को प्रसार करती है।  ऐसा ही इस काव्य हमको ये सिखाता है कि सामाजिक अपेक्षाओं का पालन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। हम जीवन को अपनी तरफ जीने चाहिए और जितना संभव हो, करुणा से गरीब और जरूरतमन्द लोगों की उपकार करनी चाहिए। भौतिक वास्तविकता को जितना भी उतना छोड़ देनी चाहिए और आध्यात्मिकता की महत्व को नहीं भूलना चाहिए।



ग्रंथ सूची

  • N. Balusamy, Studies in Manimekalai, Madurai: Athirai Pathippakam, 1965.
  • Brenda E.F. Beck. The three twins : the telling of a South Indian folk epic, Bloomington, Indiana University Press, 1982.
  • Hikosaka, Shu (1989), Buddhism in Tamilnadu: a new perspective, Madras: Institute of Asian Studies
  • Manimekhalai: the dancer with the magic bowl, translated by Alain Danielou, Penguin Books, 1993, ISBN 9780811210980
  • Manimekalai - மணிமேகலை, tamilnation.org/literature/epics/manimekalai/. Accessed 10 Oct. 2024.
  • Wikipedia contributors. (2024, September 12). Manimekalai. Wikipedia. https://en.wikipedia.org/wiki/Manimekalai#:~:



संदर्भ

Manimekalai: the dancer with the magic bowl, Alain Danielou (Translator) 1993

https://en.wikipedia.org/wiki/Manimekalai

https://tamilnation.org/literature/epics/manimekalai/

Shu Hikosaka (1989). Buddhism in Tamilnadu: A New Perspective. Institute of Asian Studies. p. 93.

Tamil Literature, Kamil Zvelebil 1974