कण्णूर की संस्कृति

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कण्णूर केरल मे॑ स्थित एक छोटा ज़िला है। कण्णूर का केरल के कला और स॑स्कृति में बहुत बडा योगदान है॑। कण्णूर में समृद्ध संस्कृति, इतिहास और परंपराएं हैं जो अक्सर इस क्षेत्र के कई विद्वानों और किंवदंतियों से जुड़ी हुई हैं।


कलारूपों

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तेय्यम कलारूप

कई सदियो॑ से कण्णूर लोक-नृत्य और लोक-कला का के॑द्र रहा है॑। भिन्न प्रकार के लोक नृत्य व गाने यहाॅ॑ के लोगो॑ मे॑ प्रसिद्ध हैै॑। यहॉ॑ हर जाति का अपना अपना लोक नृत्य पाया जाता है॑॑, जो वह प्रस्सन्नता पूर्वक अपने त्योहारो॑ मे॑ प्रस्तुत करते है॑। यहाॅ॑ लोक नृत्य एव॑ जनकथा का एक अत्भुत मेल देखा जाता है॑। कण्णूर के म॑दिरो॑ मे॑ प्रस्तुत किए जानेवाले नृत्य मे॑ तेय्यम नृत्य का विशिष्ट स्थान है॑। यह कण्णूर मे॑ ही उत्प्पन्न एक प्राचीन नृत्य कला है॑। इसे प्रस्तुत करनेवालेे लोग र॑गीन वस्त्र धारण करते है॑ और अपने भक्तो॑ को आशीर्वाद देते है॑।तेय्यम के लगभग 400 प्रकार हैं, जिनमें पल्लीवेट्टेक्कोरुमकन, विष्णुमूर्ती और श्री मुत्तप्पन त्य्यम शामिल हैं।

प्रसिद्धि

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कण्णूर 'करघे और लार्स' शहर के रूप में जाना जाता है जो कि यहां पर स्थित वस्त्रों के उद्योगों की ओर संकेत करते है॑। पश्चिमी घाट और लक्षद्वीप सागर के बीच अपने प्राकृतिक स्थान के कारण यह 'केरल के मुकुट' के रूप में भी जाना जाता है।कण्णूर अपने हथकरघा उद्योगों के लिए लोकप्रिय है। यहा॑ के हथकरघा कपड़े अंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता अर्जित किए हैं।

स॑स्कृति

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अतीत के नायकों की प्रशंसा में गाया गया वड़क्कन पाट्टुकल कण्णूर जिले में प्रसिद्ध है।कुछ अन्य कला रूपों में कथकली, कलरिप्पयट्ट, पूराक्कली आदि शामिल हैं। माना जाता है कि कलरिप्पयट्ट की उत्पत्ति कण्णूर के तलश्शेरी मै॑ हुआ है॑। लोगों की संस्कृति आर्यों और गैर-आर्यों से विकसित हुई है। इसमें जैन और बुद्ध तत्वों का भी प्रभाव है।और यहॉ॑ के लोग महान अतिथि-सत्कार दिखाते हैं। मिथकों और किंवदंतियों जिले में प्रचुर मात्रा में हैं। ये कला रूपों का एक हिस्सा बन जाते हैं। जैसा कि पुराने दिनों में हुआ था, मंदिरों को संस्कृति के प्रतीक के रूप में अच्छी तरह से जोड़ा गया था। जिले में अच्छी तरह से संरक्षित जंगलों भी हैं। राज्य के राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और औद्योगिक विरासत में जिला का महत्वपूर्ण योगदान है। यह 12 वीं और 13 वीं सदी के दौरान अरब और फारस के साथ व्यापार करने के लिए अरब सागर पर एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था। यह 1887 तक भारत के पश्चिमी तट पर ब्रिटिश सैन्य मुख्यालय के रूप में कार्य करता था। यह हमारी स्वतंत्रता संग्राम के कई महत्वपूर्ण घटनाओं को भी देखा है। और यह केरल में नमक सत्याग्रह का जगह भी बन गया। कण्णूर के कोट्टयम प्रांत के शासक पष़श्शि राजा द्वारा गुरिल्ला युद्ध, अंग्रेजों के खिलाफ कण्णूर के इतिहास में बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा।

पर्यटकों के आकर्षण

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सेंट एंजलोस फोर्ट्

कण्णूर का प्राकृतिक सौंदर्य अविश्वसनीय है। जिले में पहाड़े, मैदानें और नदियाँँ हैं जो प्रकृति की विविधता को दर्शाती हैं। कण्णूर में कई ऐतिहासिक स्मारक हैं। सेंट एंजल्स किले कण्णूर में महत्वपूर्ण स्मारकों में से एक के रूप में चित्रित किया गया है। १५०५ में पहली पुर्तगाली वाइसराय, डॉन फ्रांसिस्को डी आल्मेडा ने किला को चालू किया था। अरककल महल, गुंडरेट बंगलो, तलश्शेरी किला आदि ऐतिहासिक स्मारक हैं जो कण्णूर में स्थित हैं। कण्णूर में समुद्र तटों, महलों, मंदिर आदि जैसी और भी जगहें हैं। परश्शिनीक्कटवु श्री मुत्तप्पन मंदिर कण्णूर में प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। वहां विभिन्न धर्मों से कई आगंतुक हैं। कण्णूर के मुख्य त्योहारों में विषु त्योहार और अक्करे कोट्टयूर मंदिर महोत्सव हैं।

शिक्षा और साहित्य

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14 वीं और 15 वीं शताब्दी के दौरान कण्णूर की शिक्षा और संस्कृति का प्रमुख केंद्र तलिर्प्परंबा था। प्राचीन काल में यहाँ कई व्यायामाशाला और वैदिक स्कूल थे। 16 वीं शताब्दी के मध्य में यहां पश्चिमी शिक्षा शुरू हुआ। पहला अंग्रेजी विद्यालय तलश्शेरी में था। इसका नाम बेसल जर्मन मिशन अंग्रेजी स्कूल था। वर्तमान में कण्णूर में कई स्कूल और कॉलेज हैं। कण्णूर में साक्षरता दर भी बहुत अधिक है। यह 95.41 प्रतिशत है।कण्णूर अपनी खाद्य वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है । 'तलश्शेरी दम बिर्यानी' केरल में एक प्रसिद्ध खाद्य पदार्थ है।कण्णूर में कई प्रसिद्ध व्यक्ति हैं। कण्णूर के प्रमुख लेखकों में एसके बालकृष्णन, के.एम. कुमारस्वामी और के.के. सुकुमारन शामिल हैं।कण्णूर में मैंगलोर, बैंगलोर और कोचीन से जुड़ा एक अच्छा सड़क संजाल है। रेलवे स्टेशन भी भारत के सभी भागों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। एक हवाई अड्डा भी जल्द ही मट्ट्रन्नूर् में शुरू हो जाएगा।

https://en.wikipedia.org/wiki/Kannur https://en.wikipedia.org/wiki/Category:Culture_of_Kannur