एन.सिंह'

        एन. सिंह हिन्दी दलित साहित्य के प्रतिनिधि समीक्षक है. हिन्दी दलित साहित्य के विकास तथा उसकीं स्थापना में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है. उन्होंने अपने लेखन और

सम्पादन से हिन्दी दलित साहित्य कों एक आन्दोलन का रूप दे दिया. अपनी समीक्षाओ के द्वारा एक ओर उन्होंने दलित साहित्य कों प्रतिस्थापित किया. वही उसकी वैचारिकी कों भी स्पष्ट किया. उन्होंने उ०प्र० के विश्वविधालयो में दलित साहित्य कों पाठ्यक्रम में लगवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उनके जीवन और साहित्य पर पाच विश्वविद्यालयो में ऍम.फिल.तथा एक विश्वविद्यालय में पी.एच०डी. हो चुकी है तथा छ: विश्वविद्यालयों में उन पर शोध कार्य चल रहा है. हिन्दी दलित साहित्य का इतिहास लिखने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है .बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ॰एन. सिंह कों हिन्दी दलित साहित्य में एक आन्दोलनधर्मी रचनाकार की संज्ञा प्राप्त हें"1

     अनुक्रम
    1- आरम्भिक जीवन
    2- दलित साहित्य की अवधारणा
    3- रचनात्मक अवदान
    4-सम्मान
    5- बाहरी कडियां
   आरभिक जीवन
       एन. सिंह का जन्म 01 जनवरी १९५६ कों सहारनपुर के (उत्तर प्रदेश ) जिले के चतरसाली गाव में एक अछूत परिवार में हुआ .इनका पूरा नाम नगीना सिंह है .

इन्होने अपनी प्रारभिक शिक्षा गाँव तथा सहारनपुर में प्राप्त की इन्होने पी.एच०डी० (1980) में मेरठ विश्वविद्यालय मेरठ से तथा डी०लिट्० की उपाधि हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय , श्रीनगर (उतराखंड) से प्राप्त की. सन १९८६ में वे राजकीय कालेज में हिन्दी प्राध्यापक हो गये और महाराष्ट्र तथा गुजराती के दलित लेखको के सम्पर्क में आए तथा डॉ० अम्बेडकर के साहित्य का अध्ययन किया. इससे इन के नजरिये में आमूलचूल परिवर्तन हुआ. इससे पूर्व वे जो प्रेम कविताए लिख रहे थे उसका स्थान हिन्दू धर्म की विषमताओ ने ले लिया और उन्होंने "दर्द के दस्तावेज " (हिन्दी दलित कविता का प्रथम समवेत संकलन ) 2 का सम्पादन किया . वे 1990 से राजकीय महाविधालय में हिन्दी के प्राध्यापक हुए तथा सन 2000 से उत्तर प्रदेश राजकीय महाविधालय में प्राचार्य के पद पर कार्यरत हें . इसी अवधि उ०प्र० सरकार ने इन्हे दो वर्ष के लिये उ० प्र० माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड का सदस्य नियुक्त कर दिया .अभी वे उ० प्र० के राजकीय महाविधालय में प्राचार्य के पद पर कार्यरत है. दलित साहित्य की अवधारणा

          एन.सिंह के अनुसार दलितों द्वारा लिखा जाने वाला साहित्य ही दलित साहित्य है .उन्होंने अपनी पुस्तक  ' दलित साहित्य के प्रतिमान ' में लिखा है कि "दलित का अर्थ 

है जिसका दलन , शोषण और उत्पीडन किया गया हो .सामाजिक .आर्थिक और मानसिक धरातल पर .दलित साहित्य ऐसे ही उत्पीडित और शोषित लोगो के लिए दलित लेखको द्वारा लिखा गया साहित्य है ....दलित जातियों में उत्पन्न लेखको द्वारा दलित जीवन की विसंगतियों पर लिखा गया साहित्य ही दलित साहित्य है .जो दलितों में पर परम्परागत शोषण परक मान्यताओ के विरुद्ध विद्रोह की भावना जाग्रत करने का प्रयास करता है .जिसमे आक्रोश का भाव .जो विभेद के प्रति संघर्ष करता है और शोषण से मुक्ति प्राप्त कर समतापूर्ण जीवन जीने के सूत्र सौपता है .जो जातपात का विरोधी हें और सब कों समान मानता है ."3 एन .सिंह का सम्पूर्ण साहित्य , चाहे वह कविताए हो ,या लेख अथवा समीक्षाए उनकी इन्ही मान्यताओ कों रूपायित करती है .

     रचनात्मक अवदान 
           एन.सिंह ने सर्जनात्मक साहित्य के साथ ही आलोचनात्मक लेखन भी किया है . उनकी भाषा पूर्णरूपेण परिस्कृत तथा प्रांजल है .अपने सम्पादन के कारण भी एन.सिंह 

कों हिन्दी दलित साहित्य में प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है .उनकी प्रमुख रचनाए -- सतह से उठते हुए (कविता संग्रह -१९९१ ),सन्त कवि रैदास :मूल्याकन और प्रदेय (आलोचना - १९८३ ), मेरा दलित चिन्तन (लेख संग्रह -१९९८ ), विचार यात्रा में (लेख संग्रह -१९९८), कठौती में गँगा (नाटक -१९९८), दलित साहित्य के प्रतिमान (आलोचना -२०१२ ),सन्त शिरोमणि रैदास :वाणी और विचार (आलोचना -२०१३)

       सम्मान   
             उन्हें सन १९९५ में डॉ .अम्बेडकर विशिष्ट सेवा सम्मान ,( भारतीय दलित साहित्य अकादमी ,दिल्ली ),सन -१९९८ में सर्जना पुरस्कार (उ०प० हिन्दी सस्थान 

,लखनऊ ) शिक्षक श्री सम्मान -२००९ (उत्तरप्रदेश सरकार ) से अलकृत किया जा चुका है

     सन्दर्भ   
     1- www.drnsingh.com
     2- समकालीन भारतीय साहित्य ,दिव्मासिक ,मई -जून -१९९६ ,पृष्ठ -१७०
     3-दलित साहित्य के प्रतिमान ,पृष्ठ -६९ -७० 
  बाहरी कड़ियाँ    
   1- www.drnsingh.com 
   2- facebook.drnsingh