Amitksachin
बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है। इसकी असीम शक्तियों के कारण इसे राष्ट्रीय पशु की उपाधि दी गई है। बाघ बिल्ली की प्रजाति का जीव होता है। यह एक मांसाहारी जानवर है जो अपने भोजन के लिए अन्य वनजीवों के शिकार पर निर्भर होता है।
हर बाघ के शरीर पर अलग-अलग प्रकार की धारियां होती हैं। इन धारियों का रंग सामान्य रूप से तो काला और हल्का भूरा होता है लेकिन इसकी कुछ अन्य प्रजातियों में नीला व सफेद रंग देखने को भी मिलता है। भारत में पाई जाने वाली प्रजाती का नाम पेंथेरा टाइग्रिस है।
वहीं देश कुछ चिडि़या घरों में जैसे कि नंदनकानन(ओडिशा) में भिन्न-भिन्न देशों के बाघों को रखा गया है। आम तौर पर सफेद रंग के बाघ भारत में कही देखने को नहीं मिलते लेकिन भारत के ओडिशा राज्य में कुछ सफेद बाघ देखने को मिलते हैं। बाघ अनेकों खूबियों से निपुण हैं जिसकी वजह से वह जानवर ही नहीं, इंसानों के लिए भी खतरा बन सकता है। कुछ आंकडो़ं कहते हैं कि नर बाघ का वजन मादा बाघ की तुलना में औसतन 1.7 गुना ज़्यादा पाया गया है। यूं तो बाघों के दौड़ने की गति बहूत तीव्र होती है, लेकिन अपने वजन के कारण वह थक भी जल्दी जाता है।
इसलिए बाघ हमेशा धीरे-धीरे छुप कर अपने शिकार के करीब जाता है और थो़डी़ दूरी शेष रहने पर शिकार को दबोचने के लिए झपट पड़ता है। बाघ अक्सर अकेले और अपने ही निश्चित क्षेत्र में रहना पसंद करते हैं। बाघ संरक्षण समस्या को मध्यनज़र रखते हुए विभिन्न दैशों की सरकारों ने अपने अनुसार अनेकों कदम उठाए। भारत सरकार द्वारा सबसे पहले 1973 में बाघ परियोजना प्रारंभ की गई थी। इसके अंतर्गत भारत में बाघों के निवास के मुख्य राज्यों के केंद्र सरकार द्वारा सहायता दी गई।उसके बाद भी सरकार ने इस विषय में काफी कठोर कदम उठाए जैसे इनके शिकार पर प्रतिबंध और ऐसा करने वाले को कानून द्वारा सजा का प्रावधान भी बनाया गया। इसके लिए वन्यजीव सरंक्षण अधिनियम, 1972 में संशोधन किया गया था। हाल ही में 28-29 जनवरी, 2019 को नई दिल्ली में बाघ संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय समीक्षा सम्मेलन का आयोजन किया गया था। छह साल पहले इन क्षेत्र के जंगल में 37 बाघ थे। उसी साल संरक्षण के प्रयास बढ़े और आठ जून 2014 को इस क्षेत्र को टाइगर रिजर्व घोषित कर दिया गया। तब एक बार फिर गिनती हुई तो 42 बाघ मिले। वर्ष 2017-18 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के निर्देश पर गणना हुई तो कुनबा एक बार फिर बढ़ा और 54 बाघ पाए गए। वैसे तो पिछले एक साल में गणना के बाद कितने बाघ मिले, इसका आंकड़ा राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण 29 जुलाई को दिल्ली में बताएगा, मगर स्थानीय अधिकारियों की मानें तो इस बार कुल बाघों की संख्या 65 हो चुकी है। माना जा रहा है कि बाघों की संख्या में वृद्धि के संकेत इनके संरक्षण के लिए चलाए जा रहे प्रयासों के कारगर साबित होने का संकेत हैं।
पीलीभीत टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर एच. राजामोहन के मुताबिक, बाघ गणना के लिए जंगल के कोर और बफर दोनों जोन में लेजर तकनीक पर आधारित ट्रैप कैमरे लगाए जाते हैं। बाघ की आहट होते ही कैमरा स्वत: सक्रिय हो जाता है। जैसे ही बाघ कैमरे के सामने आता है, उसकी तस्वीर कैद हो जाती है। एक निश्चित अवधि तक कैमरे लगे रहने के बाद हटा लिए जाते हैं। कई बार एक ही बाघ की तस्वीर कैमरों में कैद हो जाती है।