आशिष अशोक नागदेवते एक महाराष्ट्रियन लेखक, कवि, फ़िल्म निर्माता और पटकथा लेखक हैं, जिनकी 'भिकारी' लघु फिल्म आनेवाले समय मे समाज के लिए प्रेरणादायक रहेगी.


''विश्वास''  :-


'विश्वास' रिश्तो में एक अटूट बंधन है; जो रिश्तों को मजबूत बनाता है और रिश्तों को खिलने में मदद करता है। 'आस्था' शब्द को कहना कितना आसान है? कहने में जितना आसान लगता है, यह शब्द रिश्तों को निभाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है और जब तक हम इसकी गंभीरता, इसके महत्व को नहीं समझेंगे, तब तक इसका इस्तेमाल होता रहेगा। और यहीं से 'अविश्वास' की उत्पत्ति होती है।


आस्था और अविश्वास एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक रिश्तों की मिठास को बरकरार रखने में मदद करता है तो दूसरा खिलते रिश्तों में पलभर में दरार पैदा कर देता है। क्योंकि कोई भी रिश्ता जो केवल भरोसे का आभास पैदा करता है, मजबूती से स्थापित नहीं हो सकता। क्योंकि किसी भी रिश्ते की नींव विश्वास होती है और जब यह टूटता है तो रिश्ते की इमारत स्वाभाविक रूप से ढह जाती है। हम अपने दैनिक जीवन में विश्वास की भाषा बहुत आसानी से बोलते हैं। "क्या तुम मुझ पर विश्वास नहीं करते?" "मेरा विश्वास करो" "क्या तुम विश्वास नहीं करते!" इस तरह के कई वाक्य बोलकर हम दूसरे व्यक्ति के विश्वास को, भरोसे को संपादित करते हैं। क्योंकि विश्वास के सहारे हम रिश्ते को बचाए रखना चाहते हैं। इसकी मिठास को बरकरार रखना है। कई लेन-देन भी भरोसे के आधार पर चलते हैं। लेकिन अक्सर हम उस इंसान के व्यवहार से भी उस पर भरोसा कर लेते हैं और धीरे-धीरे रिश्ता इतना मजबूत हो जाता है कि भरोसे की भाषा बोलने की जरूरत ही नहीं रह जाती। लेकिन अगर यह व्यवहार अस्पष्ट है, तो चाहे आप विश्वास के साथ कितनी भी बातें करें, अविश्वास तो होगा ही। समाज को देखें तो अक्सर आस्था के आधार पर इसका फायदा उठाया जाता है; और यह हमेशा वही व्यक्ति होता है जो विश्वास करता है कि पीड़ित कौन है; और जो केवल विश्वास का खोखला रूप बनाता है, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। अक्सर हम आसानी से अविश्वास करते हैं या चीजों पर संदेह करते हैं, उन्हें जांचे बिना भी और फलती-फूलती दुनिया की राख पर बैठ जाते हैं। अगर किसी रिश्ते में पारदर्शिता नहीं है, अगर रिश्ते में अस्पष्टता है तो जाहिर सी बात है कि विश्वास की जगह अविश्वास आ जाएगा।


      अगर हम आज समाज को देखें तो हम कई मामले देखेंगे या कई दुर्घटनाएं देखेंगे। कई बार मानसिक विकार भी जिम्मेदार होते हैं। अक्सर ऐसे लोग होते हैं जो समाज में आस्था से खिलवाड़ करते हैं। जो ईमान तोड़कर फिर उठ खड़े होते हैं और दूसरे को ठोकर खिलाते हैं। आज समाज में आस्था का मुखौटा पहनने वाले तो बहुत हैं, लेकिन भरोसा किस पर किया जाए, यह सवाल भी उठता है। समाज को आज विश्वास की आवश्यकता है, अविश्वास की नहीं। क्योंकि अविश्वास से परिवार को नष्ट करने में देर नहीं लगती, तो विश्वास से फूलने में देर लगती हैं। जीवन में उतार-चढ़ाव आना-जाना स्वाभाविक है, लेकिन कठिन यात्रा के दौरान भी विश्वास बनाना, विश्वास करना और रखना उतना ही महत्वपूर्ण है।


✍️ आशिष अशोक नागदेवते