बिहार छात्र संघर्ष समिति(BCSS) बिहार छात्र संघर्ष समिति एक छात्र संघ जो छात्र हित की बात समाज के सामने लाता है। BCSS की स्थापन 5 जून 2017 की गई। इसकी स्थापन के पीछे एक बड़ा की रोचक कहानी है,जो हम आपसे साझा करेंगें। Bcss की स्थापन वर्ष 2017 एक उस विकट अस्तिथि में किया गया जब 12वीं व 10वीं के परिणाम निराशा जनक थे।उस वक्त बिहार के छात्रों की मदद करने वाला कोई नही था। उस विकट परिस्थिति में ये निर्णय लिया गया कि ,अगर हम एक साथ ना आयें तो हमारे साथ सरकार इसी प्रकार की दुर्व्यवहार करती रहेगी। 31 मई 2017 से सरकारी वेतनमान लोगों की फटकार सुनते और डंडा के प्रहार को सहते हुए 5 जून तक आ गए। लेकिन सबसे मुख्य बात ये की सारे छात्र हमारी वर्तमान अधयक्ष राजश्री जी के साथ थे।तब हमने सभी की एकजुटता और हौसला देख के ये निर्णय लिया कि अब हम इसे छात्र संघ के रूप में बदले ,और अपने लड़ाई को हर एक छात्र की लड़ाई बनाये। इसके सुरु की लड़ाई जो दनांक 31 may 2017 चली

उस में हमारी वर्तमान अधयक्ष राजश्री ,उपाधयक्ष -विजयवर्धन,नीतीश ,आशुतोष रंजन,सुमित, देवेंद्र, पूजा ,भाग्यश्री,सत्यम रंजन,आशुतोष भारद्वाज,जितेंद्र,अमृतांशु,राहुल मिश्रा, संजना भारती, विशाल धर और भी बहुत सारे लोग थे।
परंतु उनमे कितनो को केबल अपने 12वीं के अंकपत्र से मतलब था,वो हमारी लड़ाई को वहीं छोड़ कर चले गाएं। लेकिन लड़ाई  थमा नहीं;हम और भी अच्छे रणनिति से काम मे जुट गए।कितनो ने हमे  अनेक संज्ञा से पुकारा,बिना मदद के हम आगे बढ़ते रहे सिर्फ एक व्यक्ति जो  युवा मोर्चा के अधयक्ष नितिन नवीन जी का साथ हमे शुरू से मिला और आज भी जगह पे मिल रहा है,जिसके लिए bcss उनका आभारी है और रहेगा।

परंतु लड़ाई अभी खत्म नही हुई है,हमारा संघर्ष जरी है और हा अभी कहानी भी बाकी है। उस अंकपत्र की लड़ाई में हम वहाँ से कितने दफ्तर कितने पदाधिकारी से मिलें।यहाँ तक कि हमे कालकोठरी के चक्ककर तक काटने पड़े ,हा कुछ ही घंटे सही।पर परिणाम कुछ नही;सिवाये नायें अनुभव के ।परन्तु वही अनुभव,वही दिक्कत हमें आगे चलने इस जंग को लड़ने में हमारी मदद करता है।

  ‎हम अपने आत्म विश्वास को संजोए हुए,बुद्धिबल का प्रयोग करते हुए आगे बढ़ रहे थे,तभी हमें दिनांक 1जून 2107 को एक उच्चाधिकारी से मिलने का अवसर मिला।जो इस राज्य बिहार के मुख्य शिक्षा अधिकारी थे जिनका नाम श्री आनंद किशोर था।वह व्यक्ति आज भी bseb के चेयरमैन के पद पर है।उनसे जब हमारे छात्र संघ के छात्रों से बात हुई तो उन्होंने  बहुत ही नीच स्वर में कहा "यहाँ के बच्चे पढ़ते ही नही हैं'।परंतु उन्हें शायद पता ही नही था ,की बच्चें उनके पास गए हुए थे सारे के सारे bseb में फेल अपितु iit व medical में पास थे।क्या था ,उन छात्रों के सावल के आगे उन्हें अपना सर नीचे झुकाना पड़ा और तो और उनकी शब्द शैली पूर्ण रूप से बदल गयी,जो एक प्रकार से हम अपनी जीत मानते हैं।अगले दिन एक नोटिस आया की ₹ 120  में होने वाला स्क्रूटिनी अब मात्रा ₹70 में होगा ।
  ‎

कुछ छात्र इससे संतुष्ट थे क्योंकि उनका ₹50 बच जो रहा था। परंतु हम नही;क्यों कि हमारा मांग पुनः जांच था न कि स्क्रूटिनी।जसमे पहले से दिए गए मार्क्स को बस दुबारा से जोड़ कर आपके सामने प्रस्तुत कर दिया जाता।

  ‎हम अपनी लड़ाई को जारी रखे ,अंग्रेजी नारे के साथ"we want recheck" ,और अपनी लड़ाई आगे लड़ते गए।हमने अपनी अधिकार की बात करते हुए एक और नारा दिया"हम अपना  अधिकार मांगते,नही किसी से भीख मांगते"।तथा और भी जिंदाबाद और मुर्दाबाद जैसे पारंपरिक नारों को अपने जुवान पे ला के इस अंकपत्र रैली में हम आगे चलते गए। ये रैली की अंतिम कदम हम सब ने bjp आफिस में रखा।वो उस वक्त विपक्ष के कुर्सी पर विराजमान थे।हमने उनसे अपनी समस्या को बताया और उन्होंने हमे दिलासा दिया कि चलो हम तूम्हारे इस बात को महामहिम तक पंहुचायेगें।हम सब एक आस मन मे रखते हुए वहाँ से चल दिये।परन्तु मन मे जरा खुशी तब जागी जब हमारे बात को विपक्ष ने अपनी तरीके से महामहिम तक पंहुचाया और पुनः जांच की मांग की।परन्तु ढीठ सत्ता के कान में जु कहां से रेंगें।नतीजा वही,फिर अगले दिन निराशा,उदास मुखड़ा परंतु दिल मे एक आस।उसी दिन हमारी वर्तमान  अधयक्ष  राजश्री ने हमसभी के सामने ये प्रस्ताव रखा कि क्यों न हम भी अपनी बात को महामहिम के सामने अपने तरीके से प्रस्तुत करें।हम सब ने हा में अपना जबाब भर दिया और एक प्रयश के तौर पे हम वहां से नीकल गए पटना गांधी मैदान की तरफ । हमने एक नोटिस पैड तैयार किया और उस पे अपने मुद्दे को लिखा ,परंतु हमे कहाँ पता था कि हमारी बात महामहिम तक ना पंहुच पाए इसलिए पहले से लोग मौजूद है।इस बात का आभास हमे उनके दोगले वार्ता शैली से हुई।क्योंकि बिहार सरकार में कार्यगत एक sdm को हमारी बात को सुनने को भेज गया,परंतु नही पता कहाँ से एक मजिस्ट्रेट पंहुच गया।

Sdm साहेब द्वारा कहा गया कि 4 लड़के गाड़ी में बैठो और महामहिम के दफ्तर चलो,पर उस मजिस्ट्रेट के आने के बाद सारा बात ही बदल गया।वो यकीन में बोला जाने वाला शब्द दिलासा दिलाने वाला कब बन गया पता नहीं लगा।कहा गया कि 5 लड़के का मोबाइल नंबर दे दी हम तूम्हे बुला लेंगें।इन शब्दों के माध्यम से हमे दिलासा दे कर शांति रूप से जाने को कहा गा।हम वहां से से शांति तरीके से गर्दनीबाग की ओर निकल रहे थे ,तभी पुलिस की एक झुंड हमे incometax गोलम्बर पे रोका गया।इस प्रकार का व्यवहार मानो हम दंगाई है,और तो और किसी दंगा को अंजाम देने आए है।वज्र बाहन,पुलिस के अनेकों गाड़ियां,जिसे हमने अपने सपने में भी नही देखा था।आज वो हमारे रास्ते को रोकने के लिए आगे पीछे कर रही थी।हमे incometax गोलम्बर पे रुकने को कहा गया।हम उनके बात को मानते हुए कुछ समय वहां रुके।थोड़ी देर बाद वहां कुछ मीडिया चैनल वाले आये और हम सब से कुछ सवाल पूछे जो सायद उस समय का ट्रेंड बन गया था पर हमारी बात कहीं भी सामने नही आ रही थी ।चर्चा तो बस बिहार के टॉपर गणेश का था। जहां हमारी मांग पुनः मूल्यांकन का था वहां वे केबल छात्रों का हंगामा व गणेश टॉपर बार बार दोहरा रहे थे।मानो इन्हें भी कहा गया हो ,मुख्य मांग छात्रों का दरकिनार कीजिये।लोग भी वही जानो जी हम जनाना चाहे। इसकी चर्चा हम बाद में करेंगे पहले गम अपनी कहानी की ओर बढ़ते है।

 इंकॉमेटैक्स गोलम्बर से उठने के बाद हम सब गर्दनीबाग होते हुए cm ऑफिस जाबे का सोचा।पर सोचा हुआ बात होता कहाँ है।हम अभी 10 कदम चल के मिलर हाई स्कूल के पास पंहुचे ही थे कि हम पे पुलिस के अंधाधुन लाठियां बरसना सुरु हो गया।हम में से कुछ लोग भाग के अपने आप को बचाएं परंतु उसमे से कितने लोग घायल ही गए।बाद में हमे पता चला  की पुलिस हमारी वर्तमान अधयक्ष राजश्री,सत्यंम रंजन,भाग्यश्री  और देवेंद्र को पुलिस पकड़ के ले गयी। सायद ये सबसे मुश्किल कड़ी था हमारे लिए।परंतु इस वक़्त क्या किया जाए कुछ पता नही चल रहा था।तभी कुछ ने कहा कि हम 5 लोग नितिन नवीन सर के ऑफिस जाते है,और आप सब कोतबाली पंहुचाये।नितिन नवीन के पास जाने वाले लड़के वहाँ के लिए निकल गए तभी उधर से एक गाड़ी आयी ।जिसमे फिर से पुलिस।हमने सोचा कि अब जो होगा सो देख लिया जाएगा।आने दो उन्हें।परंतु इस बार समझदार पुलिस वाले लग रहे थे।वो हम से अच्छे तरीके से बात करते हुए अपने साथी को पहचानने हेतु 4 लड़के को अपने साथ ले गए।

नितिन भैया और हम छात्रों के मदद से 2 से 3 घंटे तक इंतजार के बाद हम सभी को छुड़ा लिए।वहाँ छुड़ाने के बाद हम सब दुबारा bjp ऑफिस पंहुचे।जहां हमारा इंतजार पहले से ही कुछ छात्र कर रहे थे।उसी वक़्त नितिन भइया का आगमन bjp के ऑफिस में हुआ।वो हमसे बातें कर रहे थे।कुछ घंटों में घटिट घटना के विषय में।हमने भी बिना कुछ छुपाये सभी बातों को एक एक कर उनके सामने रख दिया।और प्रशासन के बरबर व्यवहार की दास्तां हमने सुनाई अथवा अपने घाव को आज तक याद आती है,उसे भी दिखया।

 कुछ देर विचार करने के बाद हमे एक न्यूज इंटरव्यू के लिए भेजा गया।वहा पर हमारे इंटरव्यू के लिए एक महिला रिपोटर आयीं।उन्होंने हमारे समस्या की सुना देखा और फिर उस इंटरव्यू के लिए हमे आगे (न्यूज़ रूम से) खड़ा किया गया।हमने अपनी बात को मीडिया के सामने रखा।और इस बात पे भी जोड़ दिया कि हम 7लाख बच्चो की बात सरकार और मीडिया ना कर केबल अपने टॉपर गणेश की बात ही आगे रख रही है। कुछ खुश ही कर वहाँ से निकले और हम सब एक चाट के दुकान पे चाट खाने की चल दिये।बस खुशी इससे बात की थी अगर हमारी बात को सही तरीके से सामने लाया गया तो हमारी रिजल्ट को कोई नही रिकेगा।कम से कम आम अबाम जी आज तक घर मे बैठ कर छात्रों को कोष रहे थे,वो तो जागेगें।हम सब वहाँ से निकल गए।बस इंतज़ार था उस 10बजे का जब हमारे बातों को tv पर प्रसारित किया जाता।
घड़ी 10 बजा दिया ।हम सब tvके पास ।उस न्यूज़ चैनल पे हम अपने को ढूंढ रहे थे।तभी हमारा इंटरव्यू प्रसारित किया गया। वो हिंदी फिल्म वाली गाना याद आया"दिल के अरमा आसुओं में बह गए"। हम जिस बात पे ज्यादा जोड़ दे रहे थे,उसे दिखाया ही नही गया।

दिखा मात्रा क्या तो वो हमारी घाव और एंकर का चेहरा।7लाख बच्चो के रिजल्ट की चिंता कहीं नही दिखा।दिखा मात्र गणेश का रूप जो 45 वर्ष का था और 24 वर्ष का बन के बिहार भूमि का टॉपर कहाया।

क्या उसकी चर्चा करना,हम अपनी बात पे आते हैं। उन दिनों के संघर्ष को, हम दोबारा याद दिलाते हैं। घर में बिस्तर मिलती थी,जब घड़ी बजाता 12 था। सुबह 5 बजे उठ कर के,फिर संघर्ष को जाना था।

करें भी तो क्या करें।एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई थी।घर ने भी बस डाट के सिवा कुछ नही मिलने वाला था।2साल की तपास्य ,मेहनत मानो बेकार सा नजर आने लगा।समाज मे लोग क्या सोचे गें।गोतिया,रिस्तेदार क्या सोचे गा।गाओं वाले किस प्रकार की बात करेंगे।इत्यादि चीज़ों को सोचते हुए फिर सुबह से अपनी मांग को ले कर फिर इंटर कौंसिल के पास। उसी घिसी पीटी नारों को मानो थका हुआ आवाज़ से जोड़ लगा के बोल जा रहा था।छात्रों की संख्या भी दिन प्रतिदिन कम होती गयी।पर जो थे ,उनमे विस्वास कम नही था।कुछ समय धरना के बाद हम सब अपने अपने घर जा के कुछ खा पी कर दुबारा शाम 5 बजे कारगिल चौक पे मिलने हेतु कहा गया।यह निर्णय नितिन भइया का था।उन्होंने कहा की आज साम 5 बजे तुम सब एक कैंडल मार्च निकालो। और हमारे तरफ से एक बैनर बनबा दिया जाएगा और कुछ पेपर पे तुम्हारी बातों को लिख कर रख दिया जाएगा।हम सब ने हामी भर दी।साम के 5 बजे कैंडल मार्च हेतु अच्छे लड़के आ गए।यह देख कर मन जरा प्रसन्न हुआ की अभी भी कुछ में आश बाकी है।हमने शांति पूर्ण तरीके से साम के 7 बजे तक इस कैंडल मार्च को पूरा किया।और इस सरकार को मृत बतत्ते हुए बढ़ते चल दिये। करते भी क्या एक तरफ ऐसे गठबंधन की सरकार जिसके मन और विचार में भी गाठ पड़ा हुआ था और दूसरी तरफ bseb ।जसके अंदर लापरबाही दीमक की तरह सब में चिपका पडा था बस इंतज़ार थी स्क्रूटिनी रिजल्ट की।क्या कुछ सुधार हित भी है य नही। अगले दिन एक और अच्छा खबर अखबार में,और न्यूज़ चैनलों पे बना रहा।जसमे कंपार्टमेंटल परीक्षा का तिथि और फॉर्म भरने का रक्म प्रदर्षित किया गया।हमारी मांग 3 विषयों के कंपार्टमेंटल की थी परंतु यहाँ 2 विषय की पुरी हुई।परंतु हा, पहले की रिजल्ट की तरह इस अंकपत्र पे किसी भी प्रकार से ये सूचित नही रहेगा कि ये कंपार्टमेंटल का अंकपत्र है।साथ लीगों की एक आश दिखी चलो कम सेकम पास तो हो जाएं गे।