समानता : "व्यबहार " और "लक्षण " में ...

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" समानता " जब यह शब्द हमारे मस्तिष्क में आता है तो मन में सामान व्यबहार , सामान संस्कृति , सामान विचार आदि आधारों पर एकता का प्रतीकात्मक चिन्ह उभारना प्रारम्भ हो जाता है ,और हमारा व्यबहार एक दुसरे के प्रति भावनात्मक हो जाता है | किन्तु जब यही बात हमारे धर्म के साथ जोड़कर की जाती है तो कही न कही हमारा विभाजित होना प्रारम्भ हो जाता है |

तब एक सबल उठता है .. केसी समानता चाहते है हम ..?

समानता परिभाषा

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वर्तमान समय वैश्वीकरण का समाय है इस समय आर्थिक , सामजिक , राजनितिक एवं धार्मिक समानताओ के विपरीत मानवीय समानता पर अधिक बल दिया जा रहा है अर्थात मनुष्य का मनुष्य के साथ स्थाय्तिव , स्वामित्व , एक दुसरे के प्रति पारदर्शिता , समान विचार , सामान कार्य आदि आधार पर एकरूपता ही समानता है |

लेकिन भारत के सन्दर्भ में यह बात कहना सही नहीं होगा क्युकी भारत विविधताओ एवं प्राचीन परम्पराव के आधर पर विभाजित है | "अनेकता में एकता " सुनने में कितना अच्छा लगता है लेकिन अम्ल करने पर नही

समानता में समस्या

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भारत एक जातिगत आधार पर समंध , विचार , संघठन का निर्माण करने वालो का एक देश है , जहा विवाह सामान जाती में किया जाता है | भोजन सामान जाती वालो के यह किया जाता है | इस प्रकार हर स्तर पर हम विभाजित है

सामाजिक स्तर पर हम सभी समानता की बात करते है किन्तु वह जब हमारे घर तक पहुच जाती है तो वह कलेश का कारन बन जाती है 

प्रेम विवाह का उदाहरण लेना वर्तमान समाये में ठीक होगा

क्या प्रेम विवाह करने वालो को हमारा समाज स्वीकारता है ..?? "नहीं "

हमे ज्ञात होना चाहिए जब तक “रोटी और बेटी” का रिश्ता नही होगा तब तक समानता केसे आयगी ..???

संविधान किसी देश की आत्मा भी होती है और आयना भी और शायद भारत की आत्मा से उसने समाज को आयना दिखाने का प्रयाश भी किया है

भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुछेद 14-18 में समानता और समता की बात कही गयी है ...

ये व्ही मूल्य है जिनका लक्ष्य ही हमारे जीवन को सुदूर बनाना है |

वर्तमान परिद्र्स्य

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क्या 70 वर्ष पहले जिन लक्ष्यों को लेकर हम चले थे उन्हें आज हमने इस भोतिक जीवन में प्राप्त किया है या नही .....

यदि हा तो कहा है ये आदर्श ..????

यदि नही तो क्यों नही ...???

विचार कीजिये शायद हमें आयना दिख जाये ..........