Babangoraman
क्रांतीवीर समशेरसींग पारधी वे प्रथम आदिवासी पारधी समाज के क्रांतीवीर . समशेरसींग पारधी जिन्होने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ १८५७ की स्वतंत्र स्वराज संग्राम की नींव रखी । उन्होंने अपने जीवन काल मे आदिवासी पारधी समाज के रक्षा हेतु १८५७ के लढाई मे अग्रेजोंके खिलाफ लढाई का नेतृत्व किया था ।
मराठी साहित्यकार श्री.भास्करजी भोसले की किताब आदिवासी संस्कृति, इतिहास आणी वेदना (पृष्ठ ९४-१०१)का आशय लेते हुए -
द्वारका के ओखा बेेट पर वााघरी, वाघेेर यह जमात केे लोग संस्थान मे रहते थे। इसी संस्थान के लिए गायकवााड, अंग्रेज और वाघेर के बीच सन १८०३ से १८५८ तक संघर्ष होता रहा । १८०३ मे द्वारका के ओखा नामक बेटपर वाघेर इन लड़ाकू लोगों का राज्य था। उन्होंने अंग्रेजों का जहाज लुटें थे। उनके राजा नारायण माणेक की अंग्रेजो ने हत्या करी थी। बादमे १८४८ मे ओखा बेट को जोधा माणेक ने फिर से अंग्रेज और गायकवाड़ से अपना प्रदेश छुडवाय अपीतू फिर अंग्रेज सैनिकों साथ गायकवाड़ की फौज ने पून्ह आक्रमण कर जोधा माणेक को मारकर ओखा किल्ला हथीयालीया ।
बादमे १८५८ अपने द्वारका ओखा बेट हथीयाने के लिए वाघरी, वाघेर के लोगों ने समशेरसींग की ३००/३५० सैनिकों (पारधी) फौज की मदत ली इसलिए वाघरी और समशेरसींग पारधी की बैठक हुई । उस बैठक में पारधी राजा समशेरसींग पारधी के साथ माणेक वाघेर, राजा गंगू बापू मकवाना, वाघरी सेनापती जो सोमनाथ के पास मिठापूर गाव के रहीवासी थे। यही पहली बार स्वराज्य के लिए बैठक हुई।
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भोसले बेेेडाा के समशेरसींग पारधी वे सोमनाथ के नजीक मिठापुर के थे। दस पंद्रह ग्राम ,वाघरी और पारधी समाज के सहयोग से समशेरसींग के पिताजी वहा रहते थे। उनके पीता एवं दादाजी वे पेशवाई के दरबार मे नौकरी करचुके थे।
अंग्रेजों और मराठाा के १८१८ की लढाई उपरांत अनेक सरदारों ने अपने संस्थान निर्माण कीऐ थे। उनमें से समशेरसींग भी (पारधी का) अपना अलग संस्थान निर्माण कीया था। वे अपने आस पास के पश्चिमी गीर प्रदेश के रहनेवाले वाघरी ,पारधी टोलीयौंका प्रमुख था।
अपने बिस साल की आयु में अपना स्वतंत्र संस्थान हो ईस लिए प्रयास कर रहे थे । क््योकी गायकवाड़ जो अंग्रेज सरकार के साथ थे वहा उन्हे नही रहना था। जहा पहले से जुनागड के नवाब और गायकवाड़ की बनती नही थी उपर से आदिवासी टोलीीी या स्वतंत्र प्रदेश के पक्ष में थी ।
समशेरसींग पारधी यूवा गणनायक था । वो ४००० से ५००० तक पारधी और फासेपारधी परिवार का रक्षक था । सौराष्ट्र मे वे स्थानिक थे।
उनके पास सिर्फ ७०० से ८०० के आसपास सैनिक थे । जब उनको पता चलता है की अंग्रेज फौंज हथीयार के साथ आ रही है तब उन्हे अपना संस्थान छोड कर गीर प्रदेश जाना पडा था। तब उनके साथ औरतों ,बच्चे, बुढे, युवा सभी ने मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ पहली लढाई की बिना हथियार के सिर्फ पत्थर, गोफन, तलवार, भाला, पेड़ की डालियां एवं साल से समशेरसींग के साथ खडे हूए थे। बावजूद उन्हें पता था की वे अंग्रेजी फौज से नही लढ पायेंगे फीर भी वे अपने भाईयों के साथ पारधी ,वाघरी आसपास के वाघेर के ईखठ्ठा करके अपनी फ़ौजी संख्या १०००से १५०० तक करी तब वे काठेवाडी मे १जानेवारी १८५७ को पून्ह बैठक कर लढाई की रणनीति बनायी।
सौराष्ट्र मे पारधी, फासेपारधी ,वाघरी,काठेवाडी पारधी सभीभाईसमशेरभोसले सींग को अपना मुखिया मानत। सभी मीलकर स्वराज्य संस्था निर्माण के हेतु एकजूट हूये थे।
समशेरसींग पारधी ने अपनी तेजस्वी भाषण से सभीको संबोधित किया और अंग्रेज के खिलाफ अपना स्वतंत्र स्वराज्य बनाने के लिए सभी को उस लढाई मे सामिल होने के लिए आवाहन कीया । "मारा वाघोडाहो, आपळं कालतक हिंदू राजो शाहूमहाराज, प्रधान पेशवानी सेवा करूकथा, गायकवाड़ आपंळोच यो राजो मणिकभी आपंळो छं. पंळ हामक्या गोरावय आपळू खारु लुटीलीदू.हिनाकरता आज आपळं हां गोळा ह्युयाला छं मारा वाघरी हो, आपळं जिवत रगत पिनारा, लाडींन रगत पिलाईन गोरावनं वाढो, जिवमं जिवछं ततपर लढो, जेतरा आदमी गोळाहुशे तेतरा गोळा करो, देवीना कृपेथी आपळंच लढाई जिकनारा छं. आपळं स्वतानू राज्य मळसे.आपळं राज्यमं देखमं स्वताहा सुखी हुशो जयसोमनाथ !"
द्वारकापर जनवरी के पहीले सप्ता मे हलमा कीया उस समय गायकवाड़ की एक छावनी समशेरसींग के साथ मील गई वे स्थानिक वाघेर व माणेक वाघेर थे उसी के साथ समशेरसींग भोसले के साथ लगभग ३५०० सैनी फौज थी पर अब उनके पास थोडी बंदूके और तौफे थी और उसीसे उनका हौसला बुलंद था जब यह बात गायकवाड़ और अंग्रेज अफसरों को लगी तो उन्होंने समशेरसींग और बाकी बंडखोर पारधी फासेपारधी को मारने का हूक्म दिया और दोनों फौजों की द्वारका के ओखाबेट मे आमणे सामने खडे होगये । अंग्रेजों ने समशेरसींग की फौज को निसते नाबुत करणा शुरू किया उसमे समशेरसींग भोसले की पहली पत्नी, बडा बेटा मारे गये । समशेरसींग भोसले भाला चलाने मे निपुण थे वे बहुत ही शालिनता से अंग्रेजी फौज से लढ रहे थे । उस लढाई मे उनकी पत्नी,दो भाई,चार बच्चे शहीद होगये फीर भी वे डटकर लढते रहे और ओखाबेट हथियालीया बादमे वे माणेक राजा वाघेर के आश्रय मे रहे। बादमे फीरसे सैन्य जमा कर अंग्रेजों से लढते रहे । समुंदर मे डूब कर अचानक से ब्रिटिश सैनिकों पर हमला करना ऐसा करते करते वे अंग्रेजी फौज से लढते रहे कभी ओखा बेट के पेडपर चढ़ कर फास लटकाके हमला करना।कभी समुंदर मे डुबके पपई के पेड की डाल से सांस लेते हुए अंग्रेजों के नांव तक जाकर उसे पानी मे डुबादेना तो कभी पेड़ो की साल से रस्सी बनाकर पेडपर लटककर आनेवाले अंग्रेजी फौजों पर तीर, पत्थर, भाला,बरछे या फिर तलवार से हमला करते ।
आखिर कुछ खबरी की सहायता से अंततः महान क्रांतिकारी समशेरसींग भोसले को पकडवाया गया । बादमे उन्हे १ एप्रील १८५८ को उनके सेनापति गंगू बापू मकवाना और वाघेरा माणेक के साथ और सात क्रांतीकारी को फांसी दि गयी ।[2]
- ↑ Pardhi, Krantivir Samshershingh (2021). Samshershingh Pardhi "Krantivir Samshershingh Pardhi" जाँचें
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