डॉबेराइनर के त्रिक जर्मन रसायनज्ञ जॉन डॉबेराइनर ने सन् 1829 मे समान तत्वो के परमाणु भारों में नियमितता पायी। इन्होने समान गुणधर्म वाले तत्वो को तीन तीन के समूहो में व्यवस्थित किया जब समान गुण वाले तत्वो को परमाणु भार के बढते क्रम मे रखा जाता है तो बीच के तत्व का परमाणु भार पहले तथा तीसरे तत्व के परमाणु भार का औसत होता है। सीमाए - डॉबेराइनर का त्रिक का नियम कुछ तत्वो तक सीमित था तथा उस समय तक ज्ञात सभी तत्वो को त्रिक के रूप मे व्यवस्थित नही किया जा सका; अतः इस त्रिक के नियम को अधिक महत्व नही मिला।

  = न्यूलैण्ड का अष्ठक नियम - अग्रेज रसायनज्ञ जॉन एलेक्जेंडर न्यूलैण्ड ने सन् 1865 मेअष्ठक नियम प्रतिपादन किया है। इसके अनुसार जब तत्वो को उनके परमाणु भार के बढते हुए क्रम मे व्यवस्थित किया जाता है तो प्रत्येक आठवॉ तत्व से गुणो मे समानता रखता है। यह सम्बन्ध उसी प्रकार है जैसा संगीत में आठवे स्वर का सम्बन्ध प्रथम सगींत स्वर के साथ  होता है। इसी कारण न्युलैण्ड ने इसे 'अष्टक का नियम , नाम दिया 
 यदि बोरॉन से शुरूआत करें तो आठवॉ तत्व एलुमिनियम आता है और इन दोनों तत्वो के गुणधर्म आपस में समान हैं।                        सीमाएँ(1)यह नियम केवल कैल्शियम तक ही सफल रहा । कैल्शियम के पश्चात प्रत्येक आठवॉ तत्व अपने समुह में ऊपर आने वाले तत्व के समान गुणधर्म नही रखता है। (2)अज्ञात तत्वों के लिए इस वर्गीकरण मे कोई स्थान सुरक्षित नही रखा गया । (3)यह नियम अधिक परमाणु भार वाले तत्वो पर लागु नही होता हो (4)अक्रिय तत्वो की खोज के पश्चात यह नियम पूर्ण रूप से असफल हो गया क्योकि अब नवॉ तत्व के समान था न कि आठवॉ।

मेण्डलीफ की आवर्त सारणी -रूसी रसायनज्ञ दमित्री मेण्डलीफ ने सर्वप्रथम आवर्त सारणी को प्रतिपादन किया इन्होने तत्वो के रासायनिक गुणों को उनके परमाणु भार से सम्बन्धित किया और एक नियम दिया जिसे मेण्डलीफ आवर्त नियम कहते है। तत्वो के भौतिक व रासायनिक गुण उनके परमाणु भारों के आवर्ती फलन होते है।" आवर्ती फलन से तात्पर्य है कि तत्वो केभौतिक एवं रासायनिक गुणधर्म की एक निश्चित अन्तराल के बाद पुनरावृति को आवर्तिता कहते है।

मेण्डलीव की मुल आवर्त सारणी

  सन् 1871 में मूल आवर्त नियम की सहायता से ज्ञात 63 तत्वो को बढ़ते हुए परमाणु भारों के क्रम में एक सारणी के रूप में व्यवस्थित किया जिसे मेण्डलीफ की आवर्त सारणी कहते हैं।