कबीरपंथ की गंगोत्री बांधवगढ़

चित्र:देवेन्द्र जैस्वाल
कबीरपंथ की गंगोत्री बांधवगढ़

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  1. बांधवगढ़ मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय उद्यान होने के साथ-साथ कबीरपंथ की आस्था का प्रमुख केंद्र भी है, कबीर पंथ में बांधवगढ़ का नाम बड़े ही प्रेम और श्रध्दा से लिया जाता है, कबीरपंथ का उदगम स्थल होने के कारण इस पवित्र स्थल को “कबीर पंथ की गंगोत्री” कहा जाता है। सदगुरु कबीर साहेब जी के प्रमुख सिष्य कबीर पंथ के मुख्य प्रचारक धर्मदास साहेब जी का जन्म बांधवगढ़ में वि.सं.१४५२ की कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था, वि.सं.१५१९ में व्यापर व तीर्थाटन के दौरान मथुरा में पहली बार सदगुरु कबीर साहेब जी से भेट हुये। वि.स.१५२० में काशी में हुई दूसरी मुलाक़ात ने सदा के लिए आपको सद्गुगुरु का अनुगामी बना दिया, कबीर साहेब ने आपको आत्मसात किया और सत्यनाम धन के साथ अटल बयालीस वंश का आशीर्वाद दिया। सत सिष्य को सदगुरु मिले धर्मदास साहेब जी ने भावपूर्वक सद्गुरु कबीर साहेब जी को अपने गृह बांधवगढ़ आने का निवेदन किया,धर्मदास साहब की श्रद्धा भक्ति प्रेम विश्वास और लगन को देखकर सदगुरू कबीर साहब संवत 1520 में धर्मदास साहब के निवेदन पर उनके गृह बांधवगढ़ पधारे। सद्ग्रंथो में इस घटना का विवरण इस प्रकार उल्लेखित है "संवत पन्द्रह सौ बीस की साला, बांधवगढ़ किन्ही धर्मशाला। धर्मनि को सब कहे प्रसंगा, तुम मोरे हो भक्ति के अंगा।।" धरमदास साहेब जी और माता आमीन अपनी हवेली में एकाग्र मनसे निरंतर कबीर साहेब का सत्संग सुनने लगे। कबीर साहब जैसे परम ज्ञानी को पाकर धर्मदास साहब की जिज्ञासा बढती गयी,वे अति विनय के साथ धर्म और जीवन के विषय में बार बार अनेक शंकाये व्यक्त करते, धर्मदास साहेब की सच्ची लगन श्रध्दा भक्ति देखकर कबीर साहब उनकी प्रत्येक शंका का समाधान करते तथा परीक्षा की कसौटी पर भी कसते जाते, सद्गुरु कबीर साहब जैसे आत्मज्ञानी सद्गुरु पाकर धर्मदास साहब जी ने उन के चरणों में आत्म समर्पण कर दिया अपने छप्पन करोड़ की दौलत छोड़ कर सद्गुरु की शरण में आ गये और संत समागम समारोह का आयोजन कर बाँधवगढ़ में विधिवत चौका-आरती करवाकर धर्मदास साहब तथा आमीन माता ने कबीर साहब का सिष्यतत्त्व ग्रहण किया। "संवत पंद्रह सौ के आगे, बीस विक्रमी माह अनुरागे। सुदी वैशाख तीज कहाई, धर्मदास गुरु दीक्षा पाई।।" कबीर साहब द्वारा प्रथम बार चौका आरती का स्थल आज भी बांधवगढ़ में सुरक्षित है। कबीर साहब के आशीर्वाद से बांधवगढ़ में स्तिथ धर्मदास साहब की गृह हवेली को सत्धर्म प्रचार का मुख्य केंद्र चुना गया, यही पर गुरु-सिष्य परंपरा का प्रादुर्भाव हुआ तथा यही से कबीरपंथ के विस्तार की शुरुवात हुई, इसी स्थान में ज्ञानी गुरु एवं विवेकी सिष्य के मध्य महान ज्ञान गोष्ठी हुई, "धर्मदास तुम बड़े विवेकी, तुम्हरे घट बुद्धि बड देखि। खोजत खोजत तुमको पाया, सकल भेद खोल बतलाया।।" धर्मदास साहब शिक्षित थे तथा वेद पुराण शास्त्र के ज्ञाता थे उनका जीवन शीतल, शांत तथा गंभीर था, प्रत्येक स्तर पर उनमे पात्रता थी,योग्यता थी। (कबीर धर्मदास संवाद) इसी पावन स्थल पर धर्मदास साहेब जी ने सदगुरु कबीर साहेब जी के श्री मुख से निकले कल्याण कारी वचनों को लिपिबद्ध किया धर्मदास साहेब ने ही सर्वप्रथम कबीरपंथ में सर्वाधिक चर्चित ग्रन्थ “बीजक” के संग्रह का कार्य वि.सं. १५२१ में प्रारम्भ किया जिसका विवरण सद्ग्रंथो में इस प्रकार से वर्णित है | "संवत पंद्रह सौ इक्कीसा। जेठ सुदी बरसाइत तीसा।। ता दिन भयो बीजक अरंभा। धर्मदास लेखनी कर थंभा।। बीजक मूल नाम यह देखा। धर्मदास कृत संग्रह एका।।" धर्मदास साहेब जी ने यही पर कबीर साहेब जी के वचनों को संगृहीत करते हुए कबीर सागर, शब्दावली, ग्रंथावली आदि कई ग्रंथो की रचना की जिसके फलस्वरूप आज हम सभी को कबीर साहेब जी के ज्ञान का भंडार मिल रहा है। सदगुरु कबीर साहेब ने संवत १५४० में पंथ प्रचार के लिए धर्मदास साहब जी को गुरुवाई सौप दी। "संवत पन्द्रह सौ चालीसा। भादो शुक्ल पक्श दिन तीसा।। पूर्णमासी पूर्ण कहाई। गुरु बासर गुरुवाई पाई।। धर्मदास कहँ कीन्ह निहाला। गुरुवाई दई आप दयाला।।" वि.सं.१५३८ की अघहन पूर्णिमा दिन रविवार को वंशगुरु प्रणाली के प्रथम वंश गुरु पूज्यनीय पंथश्री हुजुर चुरामणि नाम साहेब जी का प्राकट्य आपके गृह द्रुतीय पुत्र के रूप में हुआ। (चूरामणिनाम साहब जी का ही नाम मुक्तामणि नाम साहब है) "संवत पन्द्रह सौ अड़तीसा, धर्मनि भयो निहाल। अघहन सुदी पूनो कहँ, मुक्तामणि अवतार।।" पिता धर्मदास साहेब जी के सत्यलोक गमन के उपरांत आपको सदगुरु कबीर साहेब व माता आमीन ने समस्त संत समाज के समक्ष बांधवगढ़ में वि. सं.१५७० में गद्दी पर बैठा कर तिलक किया और कबीरपंथ के प्रथम आचार्य के रूप में ताज पहनाकर प्रतिष्ठित किया, इसे ग्रंथो में इस प्रकार कहा है। "संवत पन्द्रह सौ सत्तर सारा। चूरामणि गादी बैठारा।। वंश बयालीस दिनहु राजू। तुमते होय जिव कह काजू।। तुमसे वंश बयालिस होई। सकल जिव कंहा तारे सोई।।" (अनुराग सागर) प्रथम वंशगुरु पूज्यनीय हुजुर चुरामणि नाम साहेब जी के प्राकट्य दिवस अघहन पूर्णिमा के अवसर पर बांधवगढ़ राष्ट्रिय उधान में प्रति वर्ष “बांधवगढ़ दर्शन यात्रा” आयौजित की जाती है, वर्तमन में वंश परंपरा प्रणाली के गददी में विराजमान १५वे वंश गुरु परमपूज्य पंथ श्री हुजुर प्रकाशमुनि नाम साहेब जी के सानिध्य में हजारो की संख्या में साधू संत महंत एवं भक्त गन बांधवगढ़ दर्शन यात्रा कर राष्ट्रिय उधान के अन्दर स्तिथ सदगुरु कबीर साहब गुफा मंदिर, धर्मदास साहब एवं आमीन माता मंदिर, कबीर चबूतरा (उपदेश स्थल) कबीर तलइया के दर्शन का लाभ लेते है, पूजा अर्चना करते है. बांधवगढ़ में आज भी कबीर गुफा मंदिर है जिसके अंदर सदगुरु कबीर साहब जी द्वारा धर्मदास साहेब जी को सार शब्द प्रदान किया गया था साथ ही वह स्थल जंहा सदगुरु कबीर साहब जी द्वारा चौका आरती हुई थी तथा चुरामणि नाम साहेब जी का तिलक कर पंथ प्रचार हेतु आचार्य बनाया गया था स्थल सुरक्षित है | प्रति वर्ष अघहन पूर्णिमा चुरामणि नाम साहब जी के प्राकट्य दिवस के उपलक्ष बांधवगढ़ में १५वे वंश गुरु पंथ श्री हुजुर प्रकाशमुनि नाम साहब जी के सानिध्य में दर्शन यात्रा का आयोजन किया जाता है। देवेन्द्र बाबुदास जैस्वाल (सेवक कबीरपंथ) (सेमिनरी हिल्स) नागपुर