स्वामी ब्रह्मानंद ने बुंदेलखंड में जगाई शिक्षा की ज्योति

राठ(हमीरपुर) । स्वामी ब्रह्मानंद महाराज ने बुदेलखंड में शिक्षा की ज्योति जलाने के साथ अंधविश्वास और अशिक्षा जैसी सामाजिक कुरीतियों का आजीवन प्रबल विरोध किया था। इस निष्काम संत योगी ने जीवन भर अपने हाथ से पैसा नहीं छुआ। दलितों और गरीबों के प्रति उनके ह्रदय में अपार प्रेम था। संसद के पहले गेरुआ वस्त्रधारी सांसद स्वामी ब्रहमानंद महाराज ने अपना जीवन समाज के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया था।

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शनिवार 13 सितंबर को उनके 31 वें निर्वाण दिवस पर उनका जीवन दर्शन और शिक्षाएं पहले की अपेक्षा कहीं अधिक प्रासंगिक हो गई हैं।

स्वामी ब्रह्मानंद महाराज का जन्म चार दिसंबर 1894 को सरीला तहसील के बरहरा गांव में साधारण किसान परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्होने समाज में व्याप्त अंध विश्वास और अशिक्षा जैसी कुरूतियों का डटकर विरोध किया। बुंदेलखंड के मालवीय के नाम से प्रख्यात संत प्रवर स्वामी ब्रहमानंद महाराज ने संसद में बुंदेलखंड को जो विशिष्ट पहचान दी वह अविस्मरणीय है। बुंदेली भाषा के समर्थक और आध्यामिक विचार धारा वाले महान संत ने स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। माता यशोदा की कोख से जन्मे शिवदयाल लोधी को उनके पिता मातादीन उर्फ लाड़ने ने उच्च शिक्षा ग्रहण कराकर अधिकारी बनाने का स्वपभन देखा था। लेकिन शिवदयाल उच्चाधिकारी तो नहीं बन सके लेकिन उन्होने अपने पिता के देखे सपने से कहीं

आगे जाकर गांव और क्षेत्र का नाम रोशन किया। बाल्यावस्था में विवाह होने के बाद 23 वर्ष की आयु में शिवदयाल ने पुत्र और पत्नी का मोह त्याग गेरूए वस्त्र धारण कर सन्यास ले लिया। वह शिवदयाल से स्वामी ब्रहमानंद क्या बने उनके पीछे जमाना चल पड़ा। सन्यासी चोला पहन आध्यात्म से जुड़ने के बाद जब उन्होने देश की आजादी के लिए अपने तेवर दिखाए तो उनकी हुंकार से अंग्रेज सरकार भी थर्रा उठी। महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू और गणेश शंकर विद्यार्थी आदि दिग्गज नेताओं के संपर्क में आने के बाद उनके साथ कंधे से कंधा मिला कर काम किया।

1932 में सविनय अविज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में उन्हें जेल जाना पड़ा। 1966 में गौहत्या के विरोधी आंदोलन के दौरान व कई बार जेल गए। स्वामी ब्रहमानंद ने 1938 में ब्रहमानंद विद्यालय की स्थापना कर 1960 में उसे महाविद्यालय का रूप दिया। स्वामी जी 1967 से 1977 तक हमीरपुर से संासद रहे। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति वीवी गिरि के अभिन्न थे। उनकी निजी संपत्ति नहीं थी। सन्यास ग्रहण करने के बाद उन्होने पैसा कभी हाथ से नहीं छुआ। उन्होने अपनी पेंशन छात्र- छात्राओं के हित में दान में दे दी। समाज सुधार तथा दलित उत्थान के लिए उन्होने अपना जीवन अर्पित कर दिया। वह कहा करते थे मेरी निजी संपत्ति नहीं है, यह तो सब जनता जर्नादन की है। पंचायती राज आधारित न्याय पालिका और गरीबों के लिए रोजी रोटी के पक्षधर महान संत ने 13 सितंबर 1984 को संसार से विदा ले ली। लेकिन उनका जीवन और शिक्षाएं आज भी अज्ञानता के अंधकार में प्रकाश दिखाती हैं।