साबुदाना - शाकाहारी है या नहीं  ?

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लेखक: गोपाल साबु,सेलम नवम्बर-2011

साबुदाना निश्चित रूप से बिना किसी सन्देह के एक शाकाहारी उत्पादन है, जिसे हम भगवान के प्रसाद में भी शामिल कर सकते हैं ।

गत कुछ वर्षों से बीच-बीच में अचानक इस प्रकार के भ्रामक प्रचार देखने में आते रहे हैं कि साबुदाना का निर्माण लटों-कीडों से होता है या इसके बनाने में कीडे पडते हैं, यह शाकाहारी उत्पाद नहीं है। जाने या अनजाने में किये गये इस प्रकार के भ्रामक प्रचारों से, किसी भी सात्विक ह्रदय व्यक्ति का सन्देह करना स्वाभाविक है।

वैसे तो साबुदाना की पूरी निर्माण-प्रक्रिया सचित्र विस्तार से साबु ट्रेड (सच्चामोती साबुदाना वालों) ने अपनी वेबसाइट “साबुइन्डिया.कॉम” (http://www.sabuindia.com) पर सन 1999 से डाल रखी है, फिर भी अनेक लोगों के इस विषय में इ-मेल या पत्र आते रहते हैं कि उन्हें फॉरवार्ड किया हुआ ई-मेल मिला या उन्होने कहीं सुना, कृपया बतायें, साबुदाना शाकाहारी है या नहीं ? अत: यह परिपत्र इस प्रकार की शंकाओं का समाधान करने हेतु लिखा गया है ,ताकि सभी सुधि-पाठक यथार्थ से परिचित हो कर भ्रम-मुक्त हो सकें।

निर्माण प्रक्रिया :

एकमात्र कच्चा माल  :

साबुदाना के निर्माण में कच्चा माल सिर्फ “टेपीयो का रूट” जिसका वानस्पतिक नाम “मेनीहोट एस्कुलेंटा क्रांज सायन उटीलिस्मा” है । विश्व के अलग-अलग हिस्सों में इसे विभिन्न नामों से जैसे कसावा, युका, रूमु, मेनीयोका, मेन्डीयोका, बीकैटेला, कास्पे आदि नामों से जाना जाता है । इसे हिन्दी में “साबुदाना का जमीकन्द” कह सकते हैं। मूलत:यह दक्षिण अमेरिका का पौधा है, जिसे पुर्तगाली व्यापारी अमेरिका से अफ्रीका ले गये और वहाँ से 19वीं शताब्दी में यह भारत पहुँचा, जहाँ केरल, तमिलनाडु और आँध्रप्रदेश में यह विकसित हुआ।

टेपीयोका पौधा विपरीत परिस्थतियों में जैसे कम पानी-सूखा, तेज धूप,पथरीली मिट्टी, विपरीत मौसम आदि में भी टिकने की क्षमता रखता है । कन्द में करीब 30% से 35% स्टार्च (कम्पलेक्स कार्बोहाइड्रेट), नगण्य मात्रा में विटामिन सी,प्रोटीन तथा फैट और 65% से 70% तक पानी होता है, इसके छिलके में हल्की मात्रा में एक जहरीला रसायन “साइनोजेनिक ग्लायकोसाईड” पाया जाता है । इसलिये जमीन से निकालने के बाद शीघ्र ही इसे उत्पादन प्रक्रिया में लेना पडता है, अन्यथा बिगड जाता है । इसकी फसल करीब 9 से 10 महीने में तैयार होती है।

ओद्यौगिक पृष्ठभूमि:

भारत में सबसे पहले “टेपीयो का रूट” केरल में व्यवसायिक रूप से 19वीं शताब्दी में विकसित हुआ। वहाँ इसे उबाल कर (छिलका उतार कर) खाने की और अतिरिक्त फसल को छोटे-छोटे टुकडों में काट कर धूप में सूखा कर संरक्षित करने की विधा पनपी । वहाँ से यह तमिलनाडु आदि दक्षिणी राज्यों में मंडीयों में बिकने आता था । करीब सन 1940के आसपास तमिलनाडु राज्य के सेलम शहर में सर्वप्रथम टेपीयो का रूट से स्टार्च (जिसे हम बोलचाल की भाषा में “आरारोट” कहते हैं) बनाने का लघु-उद्योग विकसित हुआ। यह तकनीक पूरी स्वदेशी थी और इसमें कंद के छिलके उतार कर, रस (जिसे हम कंद का दूध कह सकते हैं) निकाल कर धूप में पूरा सूखाने से स्टार्च बनता था । स्टार्च उद्योग के विकास के साथ यह जानकारी हुई कि कन्द के दूध को गोली बना कर हल्का सा सेक कर धूप में सूखा दिया जाय तो वह साबुदाना बन जाता है और उसमें वह सभी गुण हैं जो उस समय तक विदेशों से आयातित “पाम सागो” में हैं (यह छोटे कद के पाम सागो नामक पेड के तने के दूध से तैयार होता था,जो अब लुप्तता की कगार पर हैं)। इस तरह भारत में साबुदाना का निर्माण प्रारंभ हुआ और मांग बढने के साथ-साथ सेलम शहर के आसपास कंद की कृषि और ऊद्योग का विकास हुआ । वर्तमान 2011में सेलम और आस-पास करीब 450फैक्टरीयां मिला कर कुल वार्षिक करीब 80से 95हजार टन साबुदाना का निर्माण करती है । इसके अतिरिक्त अब तो आँध्रप्रदेश के वेस्ट गोदावरी जिले में सामलकोट के आस-पास करीब 26तथा महाराष्ट्र के पूणे-सांगली के आस-पास 2 फैक्टरीयाँ स्टार्च-साबुदाना बनाती हैं । भारत के बाहर थाईलैंड,वियतनाम,चीन आदि में भी टेपियो का रूट से स्टार्च-साबुदाना बनता है, लेकिन वह सभी प्राय: छिलका सहित कंद का ही बनता है ।

भारतीय निर्माण विधि:

साबुदाना (Tapioca Sago) बनाने के लिये एकमात्र कच्चा माल टेपीयो का रूट (जमीकंद) है । स्टार्च बनाने के लिये कंद का छिलका उतारने की जरूरत नहीं पडती,जबकि साबुदाना चूँकि खाद्य वस्तु है अत: कंद का छिलका उतारना आवश्यक है ।

1. खेतों से सीधे आये हुए कंद को पानी से अच्छी तरह धो कर करीब 6 से 8 इँच के टुकडों में काटा जाता है ।

2. वहाँ से इन धोये हुए कंद के टुकडों को पीलिंग (छिलका उतारने की) मशीन में से निकाला जाता है,जिससे छिलका अलग और छिला हुआ कंद अलग निकल जाता है । इसे वापस पानी से अच्छी तरह धुलाई किया जाता है ।

3. कंद को पानी के साथ क्रशिंग (पीसने वाली) मशीन में पीस कर इसका रस (कंद का दूध) निकाला जाता है ।

4. इस कंद के रस को अलग-अलग नाप के छाननी (Filter) में से निकाला जाता है, ताकि सम्पूर्ण रेशे और रस (दूध) अलग-अलग हो जाता है । रेशे (Tapioca Waste) सुखने पर पशु-खाद्य (Cattle-feed ) के काम आते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में “तिप्पी” कहते हैं ।

5. छना हुआ रस का अतिरिक्त पानी 4 से 6 घंटे में अपने आप अलग से उपर आ जाता है, जिसे बाहर निकाल दिया जाता है और कंद का दूध नीचे केक की तरह जम जाता है, जिसमें करीब 35% नमी होती है ।

6. इस जमे हुए कंद के दूध को वापिस एक टँकी (Tank) में डाल कर पानी से अच्छी तरह प्रेशर देकर फेंटा जाता है, ताकि दूध पूरी तरह साफ हो जाये । कंद के रस का रंग सामान्य दूध के रंग जैसा होता है । यहां यह उल्लेखनीय है कि साबू ट्रेड की फैक्टरी में आज भी सिर्फ पानी से ही दबाव दे कर धोया जाता है, जबकि आधुनिक तकनीक के विकार स्वरूप, साबुदाने को ज्यादा सफेद करने के लिये, अन्य प्राय: सभी फैक्टरीयों में अलग-अलग तरह के रसायनों जैसे ब्लीचिंग, हाइपो, सल्फर,यिस्ट आदि के साथ प्रेशर से साफ किया जाता है । इससे साबुदाना तो ज्यादा सफेद हो जाता है लेकिन उसके स्वाद और विशेषताओं में काफी कमी हो जाती है ।

7. इस जमे हुए परिष्कृत कंद के दूध को टुकडों मे तोड कर पाउडरिंग मशीन से चूरा किया जाता है ॥

8. इस चूरे से (जो कि हल्का नम रहता है) साइजिंग मशीन द्वारा वांछित साइज के गोल दाने बनाये जाते हैं ।

9. यह बने हुए कच्चे दाने , बडी भट्टी पर रखे गरम मोटे तवे पर हल्का सा नारियल तैल लगा कर , उस पर सेक लिये जाते हैं । कुछ फैक्टरीयों ने स्थानीय निर्मित रोस्टर-ड्रायर (सेकने-सूखाने की मशीन) द्वारा सेकने का भी प्रयोग आरम्भ किया है । तलने वाले साबुदाने (नायलॉन साबुदाना) के लिये कच्चे दानों को बडी-बडी मेटल ट्रे में रख कर, बॉयलर द्वारा भाप से सिजाया जाता है और फिर हवा में ठंडा किया जाता है ।

10. इस तरह सेके हुए ( नायलॉन के लिय सिजाये हुए ) साबुदाना को अच्छी धूप में बडे-बडे प्लेटफार्म पर फैला कर सुखाया जाता है । जितनी अच्छी धूप होती है, तैयार साबुदाना की सफेदी और चमक उतनी बढ जाती है और नमी कम होने से गुणवत्ता भी बढ जाती है । बारिश में भीगने से साबुदाना सुखने पर काला पड जाता है । आजकल पारदर्शी शीट से कवर्ड प्लेटफार्म बना कर उसमें सुखाने का प्रयोग चल रहा है, लेकिन उसमें गुणवत्ता लाने में सफलता नहीं मिली है ।

11. इस सुखे माल को मशीन द्वारा जुड़े हुए दानों को अलग-अलग कर के, नीचे लगे छाननी से टुकडी, पाउडर और अच्छे दानों को अलग कर के बाजार के लिये पैक कर दिया जाता है ।


आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, कृपया निम्न पते पर ई-मेल करें : sabutrade-at-sabuindia.com या gopalsabusalem-at-gmail.com

धन्यवाद ॥