मूली (राफानुस सैटियस) ब्रैसिसेकी परिवार की, मिट्टी के भीतर पैदा होने वाली एक सब्जी है। वास्तव में यह एक परिवर्तित जड़ है । मूली दुनिया भर में उगाई और खपत की जाती है। मूली की कई किस्में हैं जो प्रजनन के आकार, रंग और समय में भिन्न होती हैं। कुछ प्रजातियाँ तेल उत्पादन के लिए भी उगाई जाती हैं।

मूली
मूली
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: वनस्पति
अश्रेणीत: फूल फुल्ने वनस्पति
अश्रेणीत: युडिकोट्स
अश्रेणीत: रोसिड्स
गण: ब्रासिकल्स
कुल: ब्रासिकासिया
वंश: र्याफनस
जाति: R. sativus
विविधता: R. sativus var. longipinnatus[1]
त्रिपद नाम
Raphanus sativus var. longipinnatus
L.H.Bailey


जीनस रैफानस वर्णनात्मक ग्रीक नाम "का अर्थ है जल्द ही प्रकट होना और इन पौधों के तेजी से अंकुरण को संदर्भित करता है। एक ही ग्रीक रूट रैपैनिस्ट्रम एक पुराना नाम है जो किसी समय इस जीनस के लिए उपयोग किया जाता है। सामान्य नाम" मुला "लैटिन (मूल = जड़) से लिया गया है। हां।

यद्यपि मूली से हेलेनिस्टिक और रोमन काल से खेती अच्छी तरह से स्थापित है, यह धारणा कि इसकी खेती पहली बार लाई गई थी, "इसमें लगभग कोई पुरातात्विक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं"। निर्धारित इतिहास और पतलापन। शहतूत और शलजम टॉर्टिल और शलजम के जंगली रूप पूरे पश्चिम एशिया और यूरोप में पाए जा सकते हैं, यह सुझाव देते हैं कि उन क्षेत्रों में कहीं-कहीं उनकी पर्णवृष्टि हुई थी। हालांकि, इन पौधों की उत्पत्ति के रूप में जोहरी और हॉपफ के निष्कर्ष आवश्यक रूप से भाषाई आधार पर आधारित हैं। [2]

मूली द्वारा घरेलू चिकित्सा

संपादित करें

मूली सभी प्रकार के बवासीर में फायदेमंद होती है, इसे कच्चा या पका कर खाया जाता है। इसके पत्ते की सब्जी बनाई जाए। यदि गुर्दे की विफलता से मूत्र बनना बंद हो जाती है, तो मूली के रस को दो औंस प्रति मात्रा पीने से लाभ होता है। मधुमेह के रोगियों को इससेसे लाभ होता है। अगर आप रोज सुबह एक कच्ची मूली खाते हैं, तो यह कुछ ही दिनों में पीलिया को ठीक कर सकता है। गर्मी का असर खट्टे डकार हो तो एक क कप मूली के रस में चीनी मिलाकर पीने से लाभ होता हैा

 
daikon (मूली) अक्षरशः : जड़
 
मूली के फल।

मासिक धर्म की कमी के कारण लड़कियों के यदि मुहाँसे निकलते हों तो प्रातः पत्तों सहित एक मूली खाने से लाभ होता है।

कोमल मूली का अचार भी बनाया जाता है। बहुत से लोग मुली के पत्ते काटकर उसमें चने का आटा डालकर स्वादिष्ट सब्जी बनाते हैं। कुछ लोग उसकी मुठिया (मुटकुळी)और थालिपीठे भी बनाते हैं।

शास्त्रीय मतानुसार उसमें प्रोटिन, कर्बोहायड्रेट,फॉस्फरस और लोह होता है।उसकी राख क्षारयुक्त होती है।मुली उष्ण गुणधर्म की है।मुली के ताजे पत्तों के रस और बिजो से मूत्र स्वच्छ होता है। पथरी भी ठीक होती है। भोजन में कच्ची मुली खाना चाहिए। कोमल मुली खाने से अच्छी भूख लगती है।अन्न भी अच्छी तरह से पचता है। मुली में ज्वरनाशक गुण है इस कारण बुखार आने पर मुली की सब्जी खाना लाभदायक होता है। ठंड के समय मूली खानी चाहिए क्योंकि इससे वायु विकारादी भी कम होती है। मुली के पत्ते पचने में हल्के, रुची निर्माण करनेवाले और गरम होते हैं। वह कच्चे खाए तो पित्त बढता है, पर यही सब्जी घी में बनाई तो सब्जी के पौष्टिक गुणधर्म में बढ़ोतरी होती है।


सावन मास में मुली खाना अच्छा होता है।


मूली के सलाद के लिए सफेद मुली स्वच्छ धोकर कद्दूकस करके या पीसकर उसमें नारीयल का कीस और बारीक कटी हरी धनिया मिक्स करे इसके उपरांत स्वादनुसार मिश्रण में नमक और शक्कर डालें।कम तेलपर जिरे, हिंग, राई और कढीपत्ते की बघार करके वह किसे हुए मूलीपर डाले इस सलाद में हल्दी न डाले। इस प्रकार लाल मुली की सलाद भी बना सकते हैं। इस सलाद में मीठा दही डालने से स्वाद और बढता है।

मूली की सब्जी बनाने के लिए मूली पत्तेसहीत धोकर बारीक काट ले। प्याज़ बारीक काट ले उसमें दो चमचे तुअर की दाल गरम पानी में भिगोकर रखे। तेल की बगार में लहसुन की कली पीसकर डाले। उस पर बघार में हरी मिर्च, हल्दी, तूअर दाल और बारीक कटा प्याज़ डाल कर बघार अच्छी तरह भूने। अच्छी तरह भूनी प्याज़ पर मूली की कटी सब्जी डाले। थोडा पानी का छिडकाव करके पहले पर ढक्कन रखे। ढक्कन पर पानी डालकर भाप में सब्जी पकाएं। सब्जी पकने पर उसमें थोडी शक्कर वे व खोपरे का तेल डालें।

मूली के थालिपीठ(मुठीया) रुचिकर लगती है। दो मध्यम आकार की मूली किस ले व रस निचोड़ ले। किस निचोडने पर उसका तेज कम होता है। किस में एक बारीक कटा प्याज़, एक कटोरी चावल का आटा, ज्वार का आटा, बेसन, अाधा चमचा धनिया जिरे पावडर, पाव चम्मच हल्दी अर्धा चम्मच शक्कर, नारीयल के टुकड़े,बारीक कटी हरी मिर्च अाधी कटोरी बारीक कटी हरी धनिया और स्वाद के अनुसार नमक ऐसी सब सामग्री एकत्र करके छान ले आवश्यकतानुसार पानी डालकर मिश्रण गेंद ले प्लास्टिक के कागजपर थालीपीठ बनाएं।[उद्धरण चाहिए]


  1. Mish, Frederick C., Editor in Chief. “Daikon.” Webster’s Ninth New Collegiate Dictionary. 9th ed. Springfield, MA: Merriam-Webster Inc., 1985. ISBN 0-87779-508-8, ISBN 0-87779-509-6 (indexed), and ISBN 0-87779-510-X (deluxe).
  2. डैनियल Zohary र मारियामा Hopf, पुरानी दुनियामा बिरुवाहरूको पातलू, तेश्रो संस्करण (ओक्सफोर्ड यूनिभर्सिटी प्रेस, 2000), पृ. 139