सदस्य:Hindustanilanguage/भली नीयत पर विश्वास

भली नीयत पर विश्वास संपादित करें

इस छोटे से निबंध में इस बात का प्रयास किया गया है कि यह दिखाया जाए कि कैसे वातावरण क्राँतिकारी रूप से परिवर्तित हो सकता है जब हम दूसरों के कार्यों को लेकर उन्हें दण्डित या अपमानित करने के बजाए उनमें अच्छी नीयत ढूँढने लगते हैं।

मैं अपने वास्तविक जीवन में कई पदों पर सेवार्थ रहा हूँ। उनमें स्नातकोत्तर के छात्र के शिक्षक से लेकर एक ऐसी संस्था के सामग्री प्रबंधक का पद शामिल है जो भारतीय छात्रों को संयुक्त राज्य अमरीका द्वारा प्रमाणित पाठ्यक्रम के लिए तय्यार करती है। परन्तु एक स्वयंसेवक के रूप में मैंने विकिपीडिया की खोज से पहले कई शैक्षिक जालस्थलों के लिए सामग्री का विकास किया था। जब मैंने विकिपीडिया तथा अन्य विकिमीडिया परियोजनाओं की खोज की, तब से यह परियोजनाएँ मेरे जीवन का अनिवार्य भाग बन गई हैं। मेरी सम्पादन यात्रा में विकिपीडिया के नीति-नियम "पंचशील" न केवल सामग्री जाड़ने या उन्हें बदलने के समय मार्गदर्शक बने, बल्कि इनका कुछ हद तक प्रभाव मेरे अंतर्वैयक्तिक सम्बंधों पर भी पड़ा है।

विकिपीडिया के इन पंचशीलों में से एक के अनुसार "हर लेखक को अन्य लेखकों के साथ शिष्टता और आदर के साथ व्यवहार करना चाहिए। अपने विकिसाथियों के साथ शान्त रहिये और उनसे नम्रता से बात करने की चेष्टा कीजिये, विशेषकर जब आपका उनसे मतभेद हो। विकिपीडिया सभ्याचार का पालन कीजिये और व्यक्तिगत स्तर पर लड़ाई मत कीजिये। दूसरों के साथ मिल कर आम सहमति हासिल करने का प्रयत्न कीजिये और बार-बार संपादन-पूर्ववतन के चक्रों वाली झडपों में मत पड़िए। तीन-पूर्ववतन नियम का पालन कीजिये। जहाँ तक संभव हो यह मान कर चलिए कि अन्य लेखक विकिपीडिया में सच्चे हृदय से योगदान देना चाहते हैं और उनकी नीयत पर संदेह मत कीजिये ... "

दुर्भाग्य से न तो "शिष्टता और आदर" न ही "अच्छी नीयत" मानने की बात अंग्रेज़ी विकिपीडिया पर हमेशा देखी गई है जिसका सौभाग्य है कि किसी भी समय 30,000 से अधिक सक्रिय योगदानकर्ता परियोजना से जुड़े रहे हैं। यह एक खुला रहस्य है कि कई मुख्य लेखक चर्चाओं के दौरान छोटी-छोटी बात पर संयम खो चुके हैं और समुदाय के सामने आपत्तिजनक भाषा के प्रयोग कर चुके हैं। यही हाल कई अन्य भाषाओं में मौजूद विकिपीडिया परियोजनाओं में देखा गया है।

"दूसरों के बारे में अच्छी नीयत" मानने का महत्व समझने के लिए मैं दो वास्तविक जीवन के उदाहरण देकर यह बताना चाहूँगा कि कैसे वातावरण क्राँतिकारी रूप से परिवर्तित हो सकता है जब हम दूसरों के कार्यों को लेकर उन्हें दण्डित या अपमानित करने के बजाए उनमें अच्छी नीयत ढूँढने लगते हैं। कुछ वर्ष पूर्व मैं एक विचित्र समस्या का साक्षी रहा था। मैं जिस कॉलेज में पढ़ा रहा था वहाँ मेरे एक सहकर्मी को कॉलेज प्रशासन से कुछ गम्भीर मतभेद प्रकट हुए थे। एक दोपहर वे मेरे पास आए और उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वे आगे से कोई क्लास नहीं लेंगे। जब मैंने उनसे पूछा कि क्या आप पद छोड़ रहे हैं? तो उनका उत्तर दो टूक "नहीं" में था। इस परिस्थिति से प्रसन्न न होते हुए भी मैंने दोपहर में अपने सहकर्मी की क्लास ली। यह सज्जन अगले दो दिनों तक उपेक्षापूर्ण और असहयोग तेवर दिखाते रहे। यह ऐसा समय था जिसमें मैंने यह महसूस किया कि मैं उनकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं कर सकता, क्योंकि एक शिक्षक के रूप में मुझे स्वयं के क्लासेज़ लेने ही थे।

दो दिनों के पश्चात कॉलेज के प्रधानाचार्य ने मेरे नाराज़ सहकर्मी को चाय के लिए बुलाया। प्रधानाचार्य ने उनसे कहा: "हमारे कॉलेज के विद्यार्थी बिल्कुल ग़ैर-संजीदा हैं। उनकी सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि यह लोग किसी के भी विरुद्ध अनाब-शनाब कह जाते हैं। उनमें में कुछ मेरे पास आए और आपके विरुद्ध शिकायत करने लगे कि आप क्लासों से भाग रहे हैं। परन्तु मैंने अपना अटल निर्णय उन्हें सुना दिया है कि मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है और इस प्रकार की निराधार शिकायतों को मैं नहीं सहूँगा। मैंने उनसे यह भी कहा है कि यदि अगली बार इसी विषय पर मुझसे सम्पर्क किया गया तो मैं कड़े अनुशासनात्मक क़दम उठाऊँगा।" इस बात-चीत का परिणाम जादू जैसा था - मेरे सहकर्मी का व्यक्तिव ही बदल गया। क्लासों से दूर रहने की जगह पर मेरे मित्र अपनी क्लास आरंभ होने से 10-15 मिनट पहले ही कक्षा के बाहर खड़े रहने लगे। मुझे शंका है कि यदि प्रधानाचार्य डाँटते या "कारण-बताओ नोटिस" देते तो शायद इस प्रकार का हृदय परिवर्तन नहीं देखा जाता।

एक और दु:खत घटना भी रही थी जिससे मुझे काफ़ी मानसिक तनाव से होकर गुज़रना पड़ा था। कुछ वर्ष पूर्व मैं एक खचाखच भरी बस में यात्रा कर रहा था। बस में इतने लोग थे कि मुझे खड़े रहने तक की जगह नहीं मिली। यह ऐसा समय था जब मैंने एक महीने का पूरा वेतन किसी जेब-कतरे के हाथों खो दिया। जब मैं बस से उतरा, मेरे पास जेब में केवल कुछ रेज़गारी रह गई थी। एक उदास चहरे के साथ मैं घर लौटा क्योंकि मेरे एक पूरे महीने का परिश्रम व्यर्थ हो गया था। मेरी पत्नी हमारे पहले बच्चे को उसी साल जन्म देने जा रही थी और मुझे पैसों की अत्याधिक आवश्यकता थी ताकि नए खर्चों को हम झेल सकें। मेरा उतरा हुआ चहरा देखकर मेरी पत्नी ने इसका कारण पूछा और जब मैंने उसे बताया तो उसने ढारस बाँधते हुए कहा कि हम यह महीना किसी भी प्रकार से गुज़ार ले सकते हैं।

मैं सारी रात जागता रहा। जैसे ही मेरी पत्नी सो गई, मैं चुपके से बग़ल वाले कमरे में गया। नकारात्मक भावों से मैं इतनी पीड़ित था कि मैं जेब-कतरे को हर प्रकार की गाली और ईश्वर से उसके लिए कड़े से कड़े दण्ड की प्रार्थना करना चाह रहा था। फिर भी, अपने क्रोध और तनाव को शांत करने के लिए मैंने एक प्याली चाय की बनाकर पी ली। तभी अचानक से एक नया परिवर्तन सामने आया - अपने स्वभाव के विपरीत मैंने एक पेन और डायरी हाथ में ली। मैंने एक छोटी-सी कहानी लिखी जिसका अंग्रेज़ी शीर्षक “Untamed by Time” ("समय से अप्रशिक्षित") लिखी।

 
एक शामियाने के वातावरण में एक अमीर लड़के के जूतों को एक गरीब आदमी पॉलिश कर रहा है। यह चित्र निबंध में वर्णित एक घटना का प्रतिबिम्ब है।

यह कहानी एक ऐसे लड़के की है जो गुज़र-बसर के लिए एक व्यस्त सड़क पर आने-जाने वालों के जूतों की पॉलिश करता है। एक दिन एक धनवान व्यक्ति से इस लड़के की अपनी सेवा के बदले दिए जाने वाले पैसों पर विवाद उठ खड़ा होता है। उसी दिन धनवान व्यक्ति काफ़ी सारा पैसा अपनी ही लापरवाही के कारण खो देता है। खोया जाने वाला सारा धन, जो एक बटवे में था, इस ग़रीब लड़के को मिलता है जो उसके वास्तविक मालिक को ज्यों का त्यों लौटा देता है। न तो को धन-पुरस्कार और ना ही नौकरी की पेशकश इस लड़के को आकर्षित करती है क्योंकि उसका मानना है कि किसी व्यक्ति द्वारा कठोर परिश्रम से कमाए गए पैसों का लौटाना इतना बड़ा काम है कि उसके लिए किसी से कोई और भलाई की आशा की जाए।

जैसा-जैसा मैं "सड़क के जूते पॉलिश करने वाले लड़के" और वास्तविक जीवन के जेब-कतरे के बारे में सोचने लगा जिसने मेरा पूरा वेतन उड़ा लिया था, मुझे दो संसारों का अंतर दिखने लगा - वही अंतर जो सच्चाई और कल्पणा के बीच होता है। फिर भी लघु-कथा लिखने की अभिप्रेरण अपने आप में इतनी संतोषजनक थी कि मैंने पूरे दिल से उस जेब कतरे को क्षमा कर दिया। मेरे लिए सबसे सुखद बात यह थी की मैं अपनी कहानी को कन्टेन्टराइटर डॉट इन नामक जालस्थल पर छपवा सका जिसकी कड़ी यहाँ पर देखी जा सकती है:
http://www.contentwriter.in/articles/short-stories/untamed-by-time.htm

मैंने इस लघु-कथा की कड़ी अपने कुछ दोस्तों को दिखाई जिन्होंने प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। आशा करता हूँ कि उन्होंने कहानी को पूरा पढ़ा और मेरे समक्ष अपने वास्तविक भाव व्यक्त किए थे।

जब मैं इन दो घटनाओं का विश्लेषण करता हूँ, तो मैं यह पाता हूँ कि पहली घटना शायद "अच्छी नीयत मानने" का अधिक रूप से प्रतिबिम्ब है और इसके अच्छे प्रभाव को दिखाती है। विकिपीडिया पर मैंने लोगों को स्वतः रचित काव्य सामग्री या गद्य पाठ को अपने आपको स्रोत बनाकर पेश करते देखा है। यदि इन नए "विकिपीडिया-सदस्यों" को विकिपीडिया ज्ञानकोशीय प्रकृति और दूसरे स्रोतों से जानकारी जोड़ने का महत्व समझाया जाता है तो कई बार यही लोग अपने रवैयों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाते हैं और समर्पित योगदानकर्ता बन जाते हैं। दूसरी घटना शायद कुछ हटकर है या "अच्छी नीयत" की परिभाषा से मेल नहीं खाती क्योंकि यहाँ एक व्यक्ति ने कुछ ऐसा किया है जो दुष्टता के निकट है। फिर भी उन मामलों में जहाँ पर आगे-पीछे की जानकारी, पूरा घटनाक्रम और इसके फलस्वरूप होने वाले परिणाम बिना किसी संदेह के नकारात्मक हों, तब भी सकारात्मक रूप से सोचने का प्रयास कुछ अच्छा ही परिणाम दे जाता है। और मैं समझता हूँ कि यह बात विकिपीडिया और हमारे वास्तविक जीवन पर - दोनों पर - बराबर रूप से लागू होती है।