आचार्य इच्छाराम जी द्विवेदी!

उत्तरप्रदेश के जनपद इटावा के यमुना तटवर्त्ती ग्राम इकनौर( एकचक्रापुरी)में वैदिक परंपरानुयायी, ब्राह्मण कुल में आचार्य श्री लालबिहारी द्विवेदी एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कृष्णादेवी के यहां 15/11/1961 को श्री इच्छाराम द्विवेदी का

जन्म हुआ।प्रपितामह आचार्यवर्य श्री कालिकाप्रसाद द्विवेदी वैयाकरण,पितामह आचार्य श्री वेणीमाधव द्विवेदी,वैयाकरण तथा पिताश्री लालबिहारी द्विवेदी व्याकरण ,ज्योतिष,कर्मकाण्ड,धर्मशास्त्र एवं पुराणों के विश्रुत विद्वान् थे जिन्हें सन्1974 में भारतगणराज्य के तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति श्री फखरुद्दीन अली अहमद द्वारा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

     ऐसे विद्यावंश में श्री इच्छाराम द्विवेदी की शिक्षादीक्षा

संपन्न हुई।नव्यव्याकरण,साहित्य,धर्मशास्त्र,पुराणेतिहास,

दर्शनशास्त्र,भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा के तलस्पर्शी अध्ययन के साथ ही अंग्रेजी, उर्दू और हिन्दी साहित्य में धाराप्रवाह लेखन,भाषण,साहित्यसृजन, तथा 

अनुसंधान श्री द्विवेदी का व्यसन रहा है ।प्राथमिकशाला से अनुसंधान स्तर तक निरन्तर प्रथमश्रेणी में परीक्षाएं उत्तीर्ण करते हुए स्नातकोत्तर परीक्षा आचार्य में स्वर्णपदक प्राप्त किया ।

       1971 से 1983 तक अध्ययन पूर्ण करने के पश्चात् 

श्री एकरसानन्द आदर्श संस्कृत महाविद्यालय मैनपुरी उ०प्र० में 1 सितम्बर 1983 से 7अगस्त 2000 ई० तक व्याख्याता, वरिष्ठ व्याख्याता, एवं पुराणेतिहास विभागाध्यक्ष के रूप में सेवाऐं प्रदान की ।तदनन्तर 8/8/2000 से 9.03.2019तक प्रो० द्विवेदी प्रवाचक, प्रोफे सर,विभागाध्यक्ष तथा संकायप्रमुख के रूप में श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विश्व विद्यालय नव देहली मे सेवाऐं दे रहे थे। अभी वे वरिष्ठ प्रोफेसर के रूप में इसी संस्था में कार्यरत थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रो० द्विवेदी अपनी किशोरावस्था से ही साहित्य सृजन में संलग्न रहे हैं ।आपकी प्रथम रचना 1973 में इटावा से छपने वाले दैनिक समाचारपत्र "दिनरात" में छपी थी जो ब्रजभाषा में छन्दोबद्ध शारदा स्तवन के रूप में थी।1975 में आपके दो हिन्दी उपन्यास गीता तथा टूटती रूढियाँ नाम से धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुए। 1974 में अपने पिता के अस्वस्थ होने से द्विवेदी जी को श्रीमदभागवतम् के व्यासपीठ पर उपस्थित होना पडा ।आज तक वे संपूर्ण भारत एवं विदेशों में श्रीमद्भागवतम् के 500 से अधिक साप्ताहिक व्याख्यान दे चुके हैं। इसके अतिरिक्त पुराणेतिहास के मर्मज्ञ विद्वान् होने के कारण वेदव्यास.कृत अष्टादश महापुराणों की कथायें संपन्न कर चुके हैं । उनके प्रवचन में एक सम्मोहन रहता है ।उनकी भाषा,शैली,भावप्रवणता,व्याख्या,श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती है । आज देश विदेश में उनके लाखों प्रशंसक हैं ।

रचनाएँ-

एक साहित्यकार के रूप में प्रो० द्विवेदी अब तक पचासी ग्रन्थों की रचना कर चुके हैं । खण्ड काव्य, महाकाव्य, दूतकाव्य, गीत संग्रह, अन्योक्ति, स्तोत्र, लघुकथा,कथा, हास्य व्यंग्य चम्पूकाव्य, उपन्यास, समीक्षा, निबन्ध ,जैसी सभी विधाओं में संस्कृत में 55,हिन्दी में 15 उर्दू में 7 तथा अंग्रेजी में 4 पुस्तकें लिख चुके हैं ।इनके अतिरिक्त ब्रह्मज्योति, सुरभारती, वैशारदी, पुराणपीयूषम् ,आचार्यश्री अभिनन्दनग्रन्थ, देववाणीसुवास,तथा हीरकप्राभृतकम् जैसे विपुलकाय ग्रन्थों का संपादन कर चुके हैं।उनकी प्रमुख रचनाओं में दूतप्रतिवचनम्, मित्रदूतम्, वामनचरित महाकाव्यम्, सुदामचरितमहाकाव्यम्, अन्योक्तिरत्नावली, 

गीतमन्दाकिनी, समुज्ज्वला, प्रश्नचिह्नम्, तंत्रभागवतम्, प्रणवभागवतम्,कर्मसंजीवनी,धर्मसंजीवनीनित्यसंजीवनी, द्वादशज्योतिर्लिंगस्तोत्रम्, रामार्चामाहात्म्यम्, महागणपति वरिवस्यारहस्यम्,जयभीमसेनशिव,पंचदेवोपासनारहस्यम्, हा हा ,एकादशी, वोढा, ओ महाकवि!, प्रेरणा के रंग, समुद्र मन्थन, सोनमछरी, ओ मछेरे , प्रतिध्वनि, निर्भया,.तुम हो या नहींं हो , मृत्यु मेरी सहचरी है, शिवेतरक्षतये, जैसी रचनाऐं प्रमुख हैं।

      प्रो० द्विवेदी ने श्री एकरसानन्द संस्कृत महाविद्यालय और श्री लालबहादुरशास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्लाय नव देहली के अतिरिक्त डाँ हरी सिंह गौर विश्व विद्यालय.सागर

म० प्र० में अतिथि प्राध्यापक के रूप में रहे हैं ।उ०प्र० संस्कृत संस्थान, म०प्र० संस्कृति परषद् ,कालिदास अकादेमी उज्जैंन, दिल्ली संस्कृत अकादमी, राजस्थान संस्कँत अकादमी, हरयाणा संस्कृत अकादमी , काशी हिन्दू विश्व विद्यालय, संपूर्णानन्द सं.वि.वि, , लखनऊ विवि. जौनपुर विवि. इलाहाबाद विवि., आगरा विवि, जीवाजी वि.वि., दयालबाग विवि, गुरु घासीदास विवि .विलासपुर, रानी दुर्गावती विवि.जबलपुर, सागर विवि., उज्जैन विवि.,पंजाबी विवि पटियाला आदि संस्थाओं में विभिन्न शैक्षिक प्रशासनिक कार्यों में स्मरण किया जाता है ।आकाशवाणी ,दूरदर्शन, जी टी वी, लाइव इण्डिया ,लोकसभा टी वी , सुदर्शन टीवी, तथा अन्यान्य संचार माध्यम उके व्याख्यान,कविता, तथा वार्ताओं को लगातार प्रदर्शित करते हैं ।

साहित्यिक उपलब्धियाँ-

प्रो० द्विवेदी की अनेक कृतियाँ पुरस्कृत हैं , उत्तर प्रदेश संस्कृत अकादमी द्वारा ,1992 1993, 1994, 1996 तथा2004 में पुरस्कृत, दिल्ली संस्कृत अकादमी पुरस्कार 1997' सरस्वती साधना परिषद् पुरस्कार 1996 , विद्वद्भूषण सम्मान 2010 ,वाकोवाक्यम् सम्मान् 2011, अखिलभारतीयकाशीविद्वत् परिषद् द्वारा महमहोपाध्याय उपाधि2017 में प्राप्त ।24.10.2018को देववाणीपरिषद्, दिल्ली ने आपको"पण्डितराज-सम्मान2018"सेअलंकृत किया। आपकी कृतियों पर विभिन्न विवि में अब तक 29 शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किये जा चुके हैं । भारतीय ज्ञानपीठ, साहित्य अकादेमी, देववाणी परिषद् सुरभारती सेवा संस्थानम् जैसी संस्थाओं में आपकी सहभागिता बनी रही है ।

 2006 में त्रयोदश विव्व संस्कृत सम्मेलन में भारत सरकार द्वारा प्रेषित प्रतिनिधिमण्ल के सदस्य के रूप में आपने एडिनबर्ग विवि स्काटलैण्ड, की यात्रा की । अपने व्यस्ततम जीवन में अनवरत श्रमशीलता के पर्याय प्रो० द्विवेदी अपनी कैशोर्य वय से ही मैनपुरी, इटावा, जालौन, आगरा, भिण्ड, ग्वालियर, झांसी ,शिवपुरी, मुरेना जैसे 

दस्यु प्रभावित क्षेत्र में , पदयात्रायें, भागवत प्रवचन, तथा सद्गुण प्रचार प्रसार के सामाजिक कार्त्र में सतत संलग्न लहे हैं । आपके द्वारा संकल्प पत्र भरवा.कर हजारों व्यक्तियों को ,तंबाकू सेवन, भाँग, मदिरा सेवन, मांस भक्षण, अवैध शस्त्र निर्माण, देसी शराब निर्माण जैसे अवैधानिक दुष्कर्मों से विमुख किया गया । आज भी उस दुर्गम बीहड क्षेत्र में लोग प्रो० द्विवेदी को बडी ही श्रद्धा और प्रेम से स्मरण करते हैं ।

     आप संप्रति जिन संस्थाओं से जुडे हैं , वे  सभी कल्याणकारी साहित्यिक या धार्मिक संस्थाएँ हैं , यथा- सुरभारती सेवा संस्थान मैनपुरी, रामलीला समिति मैनपुरी, श्री भीमसेन मन्दिर समिति मैनपुरी, श्री द्वारकाधीश मन्दिर मैनपुरी, परमार्थनिकुंज,वृन्दावन, श्री हनुमान् टेकरी वृन्दावन, श्री पीताम्बरापीठ दतिया, श्रीकृष्ण आश्रम ब्रजघाट, देववाणीपरिषद् दिल्ली, अखिल भारतीय सनातनधर्म मन्दिर समिति,जनकपुरी दिल्ली, प्रभुप्रेमीसंघ अंबाला, श्री हरिहर आश्रम हरिद्वार, परमार्थ आश्रम हरिद्वार,तथा परमार्थ निकेतन ऋषीकेश ।
    महामहोपाध्याय , विद्वद् भूषण आचार्य श्री इच्छाराम द्विवेदी उपनाम महाकवि प्रणव से मिलना, सुनना, कहना, उन्हें पढना, पढाते देखना ,प्रवचन मंच से बोलते देखना एक अविस्मरणीय अनुभव होता था।। मानवता, धर्म, जीव दया और ईश्वरीय प्रेम को समर्पित उनका जीवन एक प्रेरणा है , प्रतिमान है । ऐसे अजातशत्रु व्यक्तित्व देश की धरोहर सदृश हैं ।

देहावसान

 6.01.2019 को विश्व पुस्तक मेले में आयोजित एक भव्य समारोह उनके नवीन संस्कृत काव्यसंकलन"प्रणवपरिस्पन्दः"का लोकार्पण पद्मश्री डॉ रमाकान्त शुक्ल के द्वारा किया गया।

आचार्य द्विवेदी जी ने १०.०३.२०१९को मैनपुरी स्थित अपने निवासस्थान "उपनिषद्"में अंतिम श्वास लेकर साहित्य,संस्कृति और अध्यात्म जगत् को अपूरणीय रिक्तता दे दी।